समाज को एक साथ रखने की अधिकांश जिम्मेदारी महिलाएं ही उठाती हैं, चाहे वह घर हो, स्कूल हो, स्वास्थ्य सेवा हो या हमारे बुजुर्गों की देखभाल। ये सभी कार्य वे आमतौर पर बिना वेतन के करती हैं। और इन कामों का हमारे समाज में कोई मूल्य नहीं समझा जाता था। पर अब समय बदल रहा है, महिलाओं ने बीते दशकों में स्वयं को आत्मनर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाये है। महिलाएं सांगठनिक स्तर पर अधिक मजबूती से आगे बढ़ रही है। उनके सामूहिक प्रयास बड़े पैमाने पर सामाजिक, आर्थिक और काफी हद तक राजनैतिक परिदृश्य पर बड़े बदलाव के साक्षी बन रहे है। Shri Mahila Griha Udyog Lijjat Papad और इस जैसे भारत में महिलाओं के समूहों ने अपने स्वयं के प्रयासों और सीमित संसाधनों के साथ सामाजिक विसंगतिओं से जूझते हुए जो कीर्तिमान स्तापित किये वो अतुलनीय हैं। और उनसे प्रेरणा ले कर न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनियां में महिलाओं का व्यापार जगत में दबदबा स्थापित हुआ और महिलाओं को उद्यमिता के क्षेत्र में नई पहचान मिली।
समाज को एक साथ रखने की अधिकांश जिम्मेदारी महिलाएं ही उठाती हैं, चाहे वह घर हो, स्कूल हो, स्वास्थ्य सेवा हो या हमारे बुजुर्गों की देखभाल। ये सभी कार्य वे आमतौर पर बिना वेतन के करती हैं। और इन कामों का हमारे समाज में कोई मूल्य नहीं समझा जाता था। पर अब समाय बदल रहा है, महिलाओं ने बीते दशकों में स्वयं को आत्मनर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाये है। महिलाएं सांगठनिक स्तर पर अधिक मजबूती से आगे बढ़ रही है। उनके सामूहिक प्रयास बड़े पैमाने पर सामाजिक, आर्थिक और काफी हद तक राजनैतिक परिदृश्य पर बड़े बदलाव के साक्षी बन रहे है। महिलाये संगठित हो कर ही अपनी दिशा और दशा बदल सकती है यह बात महिलाएं समझ चुकी हैं। शुरुआत में औपचारिक रूप से संचालित समूहों formally driven groups ने समय के साथ अपनी पहचान बनाई और बाद में सरकार ने भी इसकी महत्ता और शक्ति को समझते हुए औपचरिक स्वरुप प्रदान कर इन्हे मान्यता दी और प्रोत्साहित करने हेतु विभिन्न योजनाओं से जोड़ा और महिलाओं को अधिक सशक्त करने हेतु प्रयास तेज किये। इसी के साथ देश में स्वयं सहायता समूहों Self-Help Groups की अवधारणा ने जन्म लिया और इससे महिलाओं ने सांगठनिक स्तर पर एकजुट होकर अपने सर्वांगीण विकास all-round development की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाना शुरू कर दिया। भारत में महिला उद्यमिता और आत्मनर्भरता Women's entrepreneurship and self-reliance की अलख जगाने वाले कुछ सामूहिक प्रयास किये गए हैं, जहाँ से महिला उद्यमिता की नींव पड़ी और एक सिलसिला शुरू हो गया। इसी कड़ी में श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ Shri Mahila Home Industries Lijjat Papad एक मिसाल के रूप में आज हमारे सामने है, आज हम इसी संगठन की सफलता की कहानी आपसे सांझा कर रहे है।
यह ब्रांड महिला सहकारी कार्यकर्ताओं women cooperative workers द्वारा चलाया जाता है जिसे श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ कहा जाता है। 1959 में वापस, मुंबई के गिरगांव Mumbai's Girgaum में रहने वाली 7 महिलाओं के एक समूह ने अपने जीवन की जिम्मेदारी लेने का फैसला किया। लिज्जत पापड़, महिलाओं को आत्मनिर्भर करने वाली भारत की सबसे पुरानी सहकारी समितियों में से एक है, जिसकी स्थापना 1959 में मुंबई में सात महिलाओं द्वारा सिर्फ 80 रुपये की पूंजी (वो भी उधार ली गई थी) के साथ की गई थी। आज के समय में इस पर यकीन कर पाना आसान नहीं है पर ये सच है। 15 मार्च 1959 को, गर्म तपती दोपहर में ये सातों महिलाये बड़ी गर्मजोशी और मज़बूत इरादों के साथ, अपने मकान की खुली छत पर इकट्ठा हुई और अपनी ऐतिहासिक सफलता के पहले पड़ाव के रूप में अपना पहला उत्पादन 4 पैकेट पापड़ के साथ शुरू किया। धीरे-धीरे इसमें इज़ाफ़ा होना शुरू हुआ। एक के बाद एक इस काम को करने में और भी कई महिलाएं जुट गयी। इस काम से महिलाओं को बहुत खुशी होती थी और उन्हें यह काम करने के लिए बाहर भी नहीं जाना पड़ता था। काम और आसान हो इसके लिए उन्होनें थोड़ा-थोड़ा काम आपस में ही बांट लिया था। पापड़ बनाने के लिए कुछ महिलाएं एकजुट होकर आटा गुथती थी और गुथे हुए आटे को सभी औरतों में बराबर बांट देती। औरतें गुथे हुए आटे को अपने घर ले जाकर पापड़ बनाती थी और अगले दिन बनाये हुए पापड़ लाकर जमा कर देती थी। अपनी पहली बिक्री उन्होंने मुंबई के एक लोकप्रिय बाजार भुलेश्वर के एक जाने-माने व्यापारी से शुरू की ।
असवंतीबेन जमनादास पोपट,
पार्वतीबेन रामदास थोडानी,
उजाम्बेन नरंदादास कुंडलिया,
बानुबेन एन तन्ना,
लगुबेन अमृतलाल गोकानी,
जयबेन वी. विठ्ठलानी,
दीवालीबेन लुक्का
किसी भी संगठन की शुरुआत किसी एक विचार से होती है वो कभी व्यक्तिगत हो सकता है, तो कभी सामूहिक। लिज़्ज़त पापड़ की स्थापना के पीछे जिसका सबसे महत्वपूर्ण योगदान था वो थी इसकी संस्थापक सह सदस्य जसवंतीबेन जमनादास पोपट Jaswantiben Jamnadas Popat। इनके अथक प्रयासों की बदौलत एक छोटा सा समूह आज हज़ारों महिलाओं की आत्मनिर्भरता का जरिया बन गया है। पिछले साल नवंबर में, लिज्जत पापड़ उद्यम की 90 वर्षीय सह-संस्थापक जसवंतीबेन जमनादास पोपट को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद President Ram Nath Kovind द्वारा प्रतिष्ठित पद्मश्री Padma Shri पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
आप सोच रहे होंगे की फिर तो ये महिलाएं काफी स्किल्ड और पढ़ी लिखी होंगी। पर सच तो ये है की उस समाया 1950 के दशक में, इन महिलाओं के पास खाना पकाने का एकमात्र कौशल था और जिसे किसी कौशल या दक्षता की श्रेणी में रखा ही नहीं जाता था उस समय उन्होंने इसी कौशल का उपयोग करके एक स्थायी आजीविका sustainable livelihood बनाने के लिए, बॉम्बे की सात गुजराती महिलाओं Seven Gujarati women ने पापड़ बनाने के व्यवसाय में कदम रखा। और धीरे धीरे इन सात महिलाओं के शुरू किये गए अभियान से प्रेरणा लेते हुए और महिलाएं आती गई और कारवां बनता गया।
लिज्जत पापड़ के संस्थापक जसवंतीबेन जमनादास पोपट, जो अब पद्मश्री पुरस्कार विजेता हैं, ने सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी Servants of India Society के सदस्य और एक सामाजिक कार्यकर्ता छगनलाल करमसी पारेख Social Activist Chhaganlal Karamsi Parekh से 80 रुपये उधार लिए।
महिला उद्यमियों ने उस समय एक ऐसा व्यवसाय करने का निर्णय लिया जो बुरी तरह घाटे में चल रहा था और पापड़ बनाने के लिए आवश्यक सामग्री और बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा किया। इसका परिणाम आगे चलकर यह हुआ कि लिज्जत पापड़ दृढ़ संकल्प और समर्पित महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए महिलाओं द्वारा स्थापित और संचालित एक ऐतिहासिक कंपनी बनी जो आज सबके सामने है। फेमिना की एक रिपोर्ट A report by Femina के अनुसार, यह ब्रांड तेजी से बढ़कर 1,600 करोड़ रुपये के कारोबार तक पहुंच गया, जिससे यह एक प्रसिद्ध घरेलू नाम बन गया।
सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी के सदस्य और एक सामाजिक कार्यकर्ता छगनलाल पारेख, जिन्हें छगनबापा के नाम से भी जाना जाता है, उनके मार्गदर्शक बने। इन्होने ही 80 रुपये की पूंजी इन महिलाओं को उधार के रूप में अपना व्यवसाय शु
रु करने को दी थी। शुरुआत में महिलाएं अपनी बिक्री बढ़ने के लिए पापड़ों को सस्ते दामों पर बेचने के लिए दो अलग-अलग तरह के पापड़ बना रही थीं। जिनकी क्वालिटी बहुत अच्छी नहीं थी तब छगनबापा ने उन्हें एक मानक स्तरीय पापड़ बनाने की सलाह दी और कहा कि गुणवत्ता से कभी समझौता न करें। उन्होंने उन महिलाओं को एक व्यावसायिक उद्यम commercial enterprise के रूप में पूंजी का उचित मैनजमेंट करने और निरंतरता को बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया। आगे चलकर लिज्जत पापड़ के संस्थापक जसवंतीबेन जमनादास पोपट ने भी इस परंपरा को कायम रखते हुए इसकी गुणवत्ता को कायम रखा।
किसी भी उद्यम को शुरू करने के लिए पहली ज़रुरत आम तौर पर पूंजी यानी इन्वेस्टमेंट मानी जाती है। और बहुत से लोग यही आ कर हार मान बैठते है और अपने बिज़नेस के विचार को छोड़ कर कुछ और करने के तफ बढ़ जाते है। ये महिलाये बहुत साधारण परिवारों से ताल्लुक रखती थी। पर उनकी सोच असाधारण थी और इसी असाधारण सोच ने उन्हें अपने लक्ष्य के मार्ग में आने वाली बाधाओं से पार पाने में मदद की। एक कहावत है की ‘जब आप अपनी मदद ख़ुद करते है तो भगवान् भी आपकी मदद किसी ना किसी रूप में करते है उनके जज़्बे और लगन से प्रेरित होकर एक सामाजिक कार्यकर्ता छगनलाल कमरसी पारेख ने उन्हें 80 रुपये उधार दिए। इस रकम से पापड़ को एक उद्योग में बदलने के लिए जरूरी सामग्री खरीदी गई। इन महिलाओं के हुनर और मेहनत के दम पर काम चल निकला और कंपनी खड़ी हो गई। 15 मार्च 1959 को मशहूर मर्चेंट भूलेश्वर जो कि मुंबई में एक मशहूर मार्केट है में इस ब्रांड के पापड़ बेचे जाने लगे। पहले साल कंपनी ने 6196 रुपये का बिजनेस किया।
धीरे-धीरे लोगों के प्रचार, सहयोग और समाचार पत्रों में लिखे जाने वाले लेखों और अपनी गुणवत्ता के माध्यम से यह ब्रांड मशहूर होने लगा और आलम यह रहा कि दूसरे वर्ष में इस कंपनी में जो सिर्फ सात महिलाओं से शुरू हुई थी 300 महिलाएं काम करने लगीं। धीरे-धीरे वे कुछ सैकड़ों से बढ़कर हजारों महिलाएं हो गईं जिन्होंने उत्पाद बनाया और सह-मालिक के रूप में कमाई की। याहू Yahoo की एक रिपोर्ट की मानें तो लिज्जत पापड़ के सफल सहकारी रोजगार ने करीब 43 हजार महिलाओं को काम दिया।
वर्ष 1962 में पापड़ का नाम लिज्जत और संगठन का नाम श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ रखा गया था। वर्तमान में बाजार में इस ब्रांड के पापड़ समेत अन्य उत्पाद भी उपलब्ध हैं।
महिलाओं ने पहले दिन 4 पैकेट के साथ शुरुआत की और पहले साल में 6,000 रुपये से थोड़ा अधिक के पापड़ बेचे। साठ साल बाद, यह 2019 में 1,600 करोड़ रुपये का कारोबार कर रही थी, जिसके सह-स्वामित्व में 45,000 महिलाएं (2021) थीं, जो हर दिन 4.8 मिलियन पापड़ बनाती हैं। 1962 में, नकद पुरस्कार प्रतियोगिता से चुने जाने के बाद ब्रांड नाम 'लिज्जत' को अपनाया गया था। उस समय इसकी बिक्री 2 लाख रुपये के करीब थी।
लिज्जत पापड़ उद्योग की प्रत्येक महिला सदस्य अपनी पापड़ बनाने की क्षमता और संगठन में स्थिति के अनुसार कमाती है। हर महिला आज इस उद्यम से इतना कमा रही है की वो अपने ज़रूरी खर्चों के साथ साथ परिवार का भी भरण पोषण करने में समर्थ है। इस काम में जितना मुनाफा होता है वह काम करने वाली औरतों में बराबर बांट दिया जाता है। इनमे से कुछ महिलाएं तो ऐसी हैं जो अपने पति से अधिक कमाती हैं। इस संगठन ने पुरुषों को भी रोजगार के अवसर प्रदान किये है पर पुरुषों को केवल ड्राइवर, दुकान सहायक और अन्य सहायक के रूप में भर्ती करता है। उद्यम की 82 शाखाएँ हैं और यह अमेरिका और सिंगापुर America and Singapore जैसे देशों में विदेशों में भी निर्यात करता है। यह डिटर्जेंट साबुन और ब्रेड Detergent Soap and Bread जैसे अन्य उत्पाद भी बनाती है। इस संस्था की सबसे ख़ास बात ये है की संस्था में काम करने वाली सभी महिलाएं कंपनी के सह मालिक के रूप में काम करती हैं। एक पितृसत्तात्मक समाज के रूप में पहचाने जाने वाले देश में यह महिला सशक्तिकरण और एक बेहतरीन बिजनेस मॉडल Best Business Model का बेहतरीन उदाहरण है।
लिज्जत पापड़ की सफलता से बहुत लोगों को प्रेरणा मिली है। यही कारण है की इस संगठन के प्रयासों और उपलब्धि से प्रभावित हो कर एक फिल्म बन रही है जिसका नाम 'कर्रम कुर्रम' 'Karram Kurram' है। नामी फिल्म डायरेक्टर आशुतोष गोवारिकर 'Karram Kurram' इस फिल्म को प्रड्यूस करने जा रहे हैं और फिल्म में कियारा आडवाणी Kiara Advani उस महिला का किरदार निभाने जा रही हैं जिन्होंने मशहूर लिज्जत पापड़ को शुरू किया था।
आपको पता है कि लिज्जत पापड़ के विज्ञापन की टैग लाइन Tag Line में भी 'कर्रम कुर्रम' का इस्तेमाल किया जाता रहा है। महिला सशक्तीकरण के विषय पर बन रही इस फिल्म में दिखाया जाएगा कि किस तरह से श्री महिला गृह उद्योग के लिज्जत पापड़ ने हजारों लाखों गरीब महिलाओं की जिंदगी बदल दी। इस फिल्म का डायरेक्शन ग्लेन बैरेटो और अंकुश मोहला Directions Glenn Barretto and Ankush Mohla करेंगे।
लिज़्ज़त पापड़ की शुरुआत तो शहरी कुटीर उद्योग Urban Cottage Industry के रूप में हुई और प्रारम्भ में ये शहरो तक था धीरे-धीरे यह ग्रामीण क्षेत्रों में भी फैल गया है, साल 2019 में इसका 800 मिलियन (INR 80 करोड़) का निर्यात हुआ।
यह लगभग 42,000 लोगों को रोजगार प्रदान करता है। लिज्जत का मुख्यालय मुंबई में है और पूरे भारत में इसकी 81 शाखाएं और 27 डिवीजन हैं। भारत के अलावा विदेशों में ही इसके उत्पादों की मांग है इसके कुल उत्पादन का लगभग 30-35% पापड़ अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर, थाईलैंड USA, UK, Singapore, Thailand आदि जगहों पर निर्यात किये जाता है।
आज अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम Startup Ecosystem बन गया है। पर इस उपलब्धि तक पहुंचे की यात्रा बड़ी लम्बी है और इसका श्रेय सालों पहले छोटे-छोटे समूहों के द्वारा किये गए भागीरथी प्रयासों को दिया जाये तो ये अतिश्योक्ति नहीं होगी। श्री महिला गृह उद्योग; लिज़्ज़त पापड़ और इस जैसे भारत में महिलाओं के समूहों ने अपने स्वयं के प्रयासों और सीमित संसाधनों के साथ सामाजिक विसंगतिओं से जूझते हुए जो कीर्तिमान स्तापित किये वो अतुलनीय हैं। और उनसे प्रेरणा ले कर न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनियां में महिलाओं का व्यापार जगत में दबदबा स्थापित हुआ और महिलाओं को उद्यमिता के क्षेत्र में नई पहचान मिली।
Lijjat Papad - उड़द, 200 ग्राम पाउच 64 रुपये - बिगबास्केट।
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