अगर आप भी इस दिवाली की छुट्टियों में अपने परिवार को लेकर अहमियत बढ़ाना चाहते हैं तो 'हम दो हमारे दो' आपके दिल को छू लेगी। फिल्म को देखने के बाद आपको एहसास हो जाएगा कि जिंदगी में परिवार ना हो तो इंसान को क्या कुछ झेलना पड़ता है।
अभी हाल ही में ओटीटी (OTT) प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई फिल्म 'हम दो हमारे दो' परिवार को लेकर एक बेहद अच्छा संदेश देकर जाती है। अगर आपके मन में भी परिवार को लेकर कोई खटास पैदा हो गई है या आप अपने परिवार के साथ समय व्यतीत नहीं करते, तो एक बार जरूर 'हम दो हमारे दो' देख सकते हैं। फिल्म यह बताती है कि हमारे लिए मां-बाप, भाई-बहन हमारा परिवार कितना कीमती है।
अक्सर देखा जाता है कि आजकल लोगों के बीच में अनबन बनी रहती है। लोग एक दूसरे पर भरोसा नहीं कर पाते, यहां तक कि परिवार में भाई-बहन तक एक दूसरे से खुश नहीं रह पाते। मां-बाप के लिए समय निकाल पाते। कुछ बच्चे मां-बाप को छोड़कर भी चले जाते हैं। कई ऐसे किस्से और आंकड़े हैं जो बताते हैं कि आजकल के नए दौर के बच्चे अपने मां बाप की कदर करना भूल गए हैं, लेकिन यह फिल्म इन आंकड़ों को दूर करती है और कहती है कि परिवार ही सब कुछ है। अगर आप भी इस दिवाली की छुट्टियों में अपने परिवार को लेकर अहमियत बढ़ाना चाहते हैं तो 'हम दो हमारे दो' आपके दिल को छू लेगी। फिल्म को देखने के बाद आपको एहसास हो जाएगा कि जिंदगी में परिवार ना हो तो इंसान को क्या कुछ झेलना पड़ता है।
एक अनाथ बच्चा बनता है बड़ा उद्यमी
फिल्म की शुरुआत एक छोटे से ढाबे से होती है जहां पर काम करने वाला बच्चा जीवन में कुछ बड़ा करना चाहता है और वह सफल भी होता है आने वाले भविष्य में वह एक बड़ा उद्यमी बन कर सामने आता है। जहां उसे एक लड़की से प्यार हो जाता है और प्यार होने के बाद लड़की की इच्छा यह होती है कि वह ऐसे घर में शादी करना चाहती है जहां उसे अच्छा परिवार मिले, लेकिन यहां समस्या यह होती है कि हीरो के पास परिवार नहीं है, क्योंकि वह एक अनाथ बच्चा है, वह अपने परिवार को चुनने के लिए अपने पार्टनर से झूठ बोल देता है और कहता है कि उसके मां बाप बाहर रहते हैं।
कहानी में मां बाप को ढूंढता है हीरो
कहानी के बीच में अपनी हीरोइन की मांग पर हीरो मां-बाप ढूंढने निकल जाता है, लेकिन उसे कहीं मां-बाप नहीं मिलते और आखिर में जिस ढाबे पर वह काम करता है उसके मालिक को ही उसे बाप बनाना पड़ता है। कहानी में उसकी मां का किरदार निभाने वाली महिला वह बनती है जो ढाबे के मालिक का पुराना प्यार है। यहां ढाबे के मालिक और उसके पुराने प्यार को मिलाने का भी अच्छा दृश्य दिखाया गया है। फिल्म आगे बढ़ती है और हीरो के बनाएं हुए मां-बाप लड़की के घरवालों से मिलते हैं। दोनों ही परिवारों के तालमेल में कहीं ना कहीं हंसी मजाक का दृश्य काफी मजेदार है।
धीरे-धीरे अच्छा-खासा मेलजोल हो जाने के बाद दोनों परिवार राजी हो जाते हैं, लेकिन आखिर में ट्विस्ट आ जाता है और लड़की के घर वालों को पता चल जाता है कि यह हीरो के असली मां-बाप नहीं हैं। इतने बड़े झूठ को परिवार का समर्थन नहीं मिलता और फिल्म दुखद दौर में चली जाती है।
आखिर में होती है फिल्म की सुखद समाप्ति
आखिर में लड़की के परिवार वाले उसकी शादी कहीं और करवाने लगते हैं, लेकिन बाद में लड़की और उसके परिवारों को एहसास होता है कि जब किसी का परिवार नहीं होता तो वह परिवार को चुनने की इच्छा भी रख सकता है और चुन भी सकता है। अगर लड़के ने अपने परिवार को अपनी पसंद से चुना है तो इसमें कुछ गलत नहीं है।
यहां समाज के उस पहलू को दिखाया गया है जहां लोग यह कहते हैं कि अगर आपके पास मां-बाप नहीं है तो आप अनाथ हैं, जो सरासर गलत है, बल्कि आपको अपने परिवार चुनने का पूरा हक है। भावनात्मक तरीके से जिन दृश्यों को पिरोया गया है वह दिल छू लेते हैं और परिवार के प्रति असीम समर्पण की समझ को जगाते हैं। आखिर में हीरो और हीरोइन शादी के बंधन में बंध जाते हैं और एक सुखद समाप्ति होती है।
अगर आप बहुत अच्छी तरह समझना चाहते हैं तो आपको यह पूरी फिल्म देखनी होगी। इस फिल्म की खासियत है परिवार, अगर आप भी परिवार की कीमत को समझने में कहीं ना कहीं भूल कर रहे हैं, तो इस फिल्म को एक बार जरूर देखा जा सकता है।