यदि आपने कभी अपने माता-पिता में से किसी को देखा है जो वित्त से संबंधित सभी मामलों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार हैं, तो आपने देखा होगा कि उनके सभी आर्थिक निर्णय और गतिविधियाँ Economic Decisions and Activities उनके बजट पर आधारित होती हैं। तो, यहां बजट सभी खर्चों और आय के योग के अलावा और कुछ नहीं है। हर व्यक्ति का अपनी आय और व्यय के अनुसार अलग-अलग बजट हो सकता है।
इसी प्रकार, सरकार को एक राष्ट्र चलाना होता है और सभी विकासों और आर्थिक गतिविधियों का समर्थन करने के लिए वित्त की आवश्यकता होती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 312 में वार्षिक वित्तीय विवरण यानी भारत के बजट की प्रक्रिया India's budget process और कार्यप्रणाली का विस्तार से उल्लेख किया गया है।
प्रत्येक देश का लक्ष्य अपने लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना और गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, आय असमानता आदि जैसे मुद्दों को खत्म करना है। बजट उपाय सरकार को इन लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करते हैं। बजट सरकार की राजकोषीय नीति government fiscal policy का एक ओवरव्यू देता है।
जनता देख सकती है कि पिछले वित्तीय वर्ष में सरकार ने कितना और किस मद में खर्च किया। बजट मदवार रसीद भी दिखाता है, जो उत्पन्न हुए इन व्ययों के लिए राजस्व के स्रोतों का खुलासा करता है।
हर साल हर आम और ख़ास को बजट का बेसब्री से इंतज़ार रहता है। चाहे वह गरीबी की रेखा के नीचे का व्यक्ति हो या कोइ बड़ा बिज़नेस मैन हर किसी पर बजट का असर कमोबेश पड़ता है। 1 फ़रवरी 2024 को भारत की पहली महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण Nirmala Sitharaman द्वारा छठी बार बजट पेश किया जायेगा जिसका सभी को इंतज़ार है।
बजट की महत्ता को ध्यान में रखते हुए आज इस ब्लॉगपोस्ट में हम बजट से जुड़े कुछ सामान्य लेकिन महत्वपूर्ण तथ्यों common but important facts related to the budget पर प्रकाश डालेंगे।
तो आइये शुरू करते है अपनी यात्रा जिसमे हम बजट की परिभाषा से ले कर उसके प्रकार और देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले उसके संभावित प्रभावों को समझेंगे।
सरकार की आय एवं व्यय का विवरण जिस दस्तावेज में एकत्रित किया जाता है, उसे बजट कहते है। दरअसल बजट में केंद्र सरकार के 3 वर्ष के आय और व्यय का लेखा जोखा होता है। पिछले साल सरकार की आय और व्यय कितनी थी, वर्तमान में कितनी है और अगले साल आय और व्यय कितनी होने की उम्मीद है।
बजट किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि यह उसके वित्तीय मामलों की योजना बनाने और नियंत्रित करने में मदद करता है।
बजट में निर्धारित की गयी राशि से अधिक धन व्यय नहीं किया जा सकता है। यदि अधिक धन की आवश्यकता होती है तो पुनः संसद से अनुमती लेनी पड़ती है। बजट एक विवरण है। जिससे आम तौर पर एक वर्ष की अवधि के लिए राजस्वा और व्यय का पूर्वानुमान होता है।
1 फ़रवरी 2024 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट पेश किया जायेगा और यह पहली बार होगा की किसी महिला वित्त मंत्री Finance Minister ने लगातार छठा यूनियन बजट sixth union budget संसद में पेश होगा । चुनाव के कारण सरकार इस बार केंद्रीय बजट के जगह पे अंतरिम बजट संसद में पेश किया जायेगा ।
"बजट" शब्द की उत्पत्ति स्पष्ट नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह फ्रांसीसी शब्द "बौगेट" से आया है, जिसका अर्थ है "छोटा बटुआ।" यह शब्द पहली बार 17वीं शताब्दी में अंग्रेजी में सामने आया और तब से यह आम उपयोग में है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में बजट निर्माण के विषय में बताया गया है। अनुच्छेद 112 में बजट को ‘वार्षिक वित्तीय’ के रूप में परिभाषित किया गया है।
भारत का पहला बजट वित्त मंत्री 'आर के पजमुख चेट्टी' R K Pazhmukh Chetty ने 28 नवंबर 1947 को पेश किया था।
बजट पेपर पहले राष्ट्रपति भवन में ही छापे जाते थे। लेकिन 1950 में बजट पेपर लीक हो जाने के बाद से इन्हे दिल्ली स्थित सिक्योरिटी प्रेस में छापा जाने लगा शुरुआत में बजट अंग्रेजी में बनाया जाता था। लेकिन 1955 -56 से बजट दस्तावेज हिंदी में भी तैयार किए जाने लगे।
हलवा समारोह को समझना:
हलवा समारोह कई महीनों तक चलने वाली बजट तैयारी की विस्तृत प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण प्रस्तावना है। यह औपचारिक आयोजन सिर्फ परंपरा से कहीं अधिक है; यह बजट के अभिन्न अंग विभिन्न दस्तावेजों के लिए मुद्रण प्रक्रिया की आधिकारिक शुरुआत के रूप में कार्य करता है।
समारोह से परे: बजट निर्माण प्रक्रिया की एक झलक
हलवा समारोह महज़ हिमशैल का सिरा है। बजट बनाने की प्रक्रिया एक जटिल, बहु-चरणीय यात्रा है:
प्रारंभिक इनपुट: मंत्रालय, राज्य और रक्षा बल जैसी विभिन्न संस्थाएँ अपने बजट अनुमान प्रस्तुत करती हैं।
आंतरिक बातचीत: वित्त मंत्रालय प्राथमिकताओं और संसाधन आवंटन को संतुलित करते हुए इन अनुमानों को सावधानीपूर्वक संशोधित और बातचीत करता है।
प्रधान मंत्री की मंजूरी: एक बार अंतिम रूप दिए जाने पर, बजट प्रस्ताव को मुद्रण चरण में जाने से पहले प्रधान मंत्री की मंजूरी मिल जाती है।
बजट दस्तावेज छपने के लिए भेजे जाने से पहले वित्त मंत्रालय में हलवा खाने की इस रस्म के बाद बजट पेश होने तक वित्त मंत्रालय के अधिकारी किसी के संपर्क में नहीं रहते इस दौरान वे अपने परिवार से भी दूर रहते है, और वित्त मंत्रालय में ही ठहरते है।
वर्ष 2000 तक अंग्रेजी परंपरा के हिसाब से बजट शाम 5 बजे पेश किया जाता था। यह प्रथा सर बेसिल ब्लेंकेट ने 1924 में शुरु की थी इसके पीछे का कारण रात भर जागकर वित्तिय लेखा जोखा तैयार करने वाले अधिकारियों को अराम देना था।
अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने इस परंपरा को तोड़ा। 2000 में पहली बार यशवंत सिन्हा ने बजट सुबह 11 बजे पेश किया।
वर्ष 2017 से पहले बजट फ़रवरी महीने के आखिरी कामकाजी दिन पेश किया जाता था। 2017 में इसे फ़रवरी के पहले कामकाजी दिन पेश किया जाने लगा।
रेल बजट को आम बजट में शामिल करना Inclusion of Railway Budget in General Budget
2017 के बजट से ही केंद्र सरकार ने रेल बजट को आम बजट में सम्मिलित कर दिया। 1924 में एकवर्ष समिति की सिफारिशों के आधार पर रेल बजट को आम बजट से पृथक कर दिया गया था।
कॉमन बजट Common Budget -इस बजट का मुख्य उदेश्य सरकारी खर्चो पर नियंत्रण करना तथा विकास कार्यो को गति प्रदान करना है।
निष्पादन बजट Performance Budget - इस बजट का मुख्य उदेश्य सरकार जिन कार्यो को पूरा करना चाहती है उस पर अधारित होता है यह बजट कार्य के परिणामो के आधार पर बनाया जाता है।
जीरो बेस बजट Zero base Budget - आय कम होने और व्यय अधिक होने की परिस्थती में इस बजट को जारी किया जाता है । जिससे व्ययों पर कटोती करके घाटों पर रोक लगाया जा सके।
जेंडर बजट Gender Budget - भारत सरकार द्वारा निर्मित ऐसा बजट जो कार्यो और योजनाओ को बाटना लिंग के आधार पर करता है। इस बजट के द्वारा महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जाता है।
भारत का यह विभाग 'आर्थिक मामलो के विभाग ' हर साल भारत का बजट तैयार करता है।
हर मंत्रालय की कोशिश होती है कि बजट में अधिक से अधिक फंड पाये इसके लिए इसके लिए अक्टूबर - नवम्बर में वित्त मंत्रालय अन्य मंत्रालयों के साथ बैठक करके एक खाका तैयार करता है कि किस मंत्रालय को कितनी राशि बजट में आवंटित कि जाएगी। इसके लिए प्रत्येक वित्त मंत्रालय के साथ मोलभाव करते है। सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों के बीच यह प्रक्रिया नवम्बर तक चलती है।
दिसंबर आते ही पहली ड्राफ्ट कॉपी वित्त मंत्री के सामने रखा जाता है। ड्राफ्ट कॉपी का पेपर नीले रंग का होता है।
वार्षिक वित्तीय विवरण नामक यह विवरण मुख्य बजट दस्तावेज होता है इसमे सरकार की प्राप्तियों और अदायगियों को तीन भागो में बाटा है जो इस प्रकार है - संचित निधि, आकस्मिकता निधि, लोक लेखा
सरकार को प्राप्त होने वाले सभी राज्यों से सरकार द्वारा लिये जाने वाले उधार से उसके द्वारा दिये गए ऋणों की वसूलियों से जो धनराशियां प्राप्त होती है वे सब संचित निधि में दिखाई जाती है। सरकार का सभी व्यय संचित निधि से किया जाता है और जब तक विधान सभा की स्वीकृति नहीं मिल जाती तब तक इस निधि में कोई भी राशि खर्च नहीं की जा सकती है।
कभी कभी ऐसे अवसर भी आ सकते है जब सरकार को विधान सभा की स्वीकृति मिलने के पहले ही कुछ ऐसा अत्यंत आवश्यक व्यय करना पढ़ता है जिसका पहले से अनुमान नहीं रहता तथा जिस व्यय का किया जाना लोकहित की द्रष्टि से अपरिहाय्र हो एवं जिसे टाला जाना संभव न हो।
सरकार की सामान्य प्रापित्यों और व्यय के अतिरिक्त जिनका संबंध संचित निधि से होता है सरकारी खातों में कुछ अन्य लेन देनो जैसे भविष्य निधियों के संबंध में लेंन देंन कर्मचारी समूह बीमा योजना अन्य जमा आदि का हिसाब भी रखा जाता है। सरकार इन लेन देनो के संबंध में लगभग बैंकर के रूप में कार्य करती है। इस तरह जो राशि प्राप्त होती है उन्हे लोक लेखा में दिखाया जाता है।
अनुदान की मांग वह प्रपत्र है जिसमे संविधान के अनुछेद 113 के अनुसरण में समेकित निधि से व्यय का अनुमान, वार्षिक वित्तीय विवरण में शामिल किया जाता है और जिस पर मतदान की अवश्यकता होती है। इस अनुदान की आवश्यकता तब होती है जब संसद द्वारा वर्तमान वित्त वर्ष के लिये किसी विशेस सेवा हेतु विनियोग अधिनियम के माध्यम से अधिकृत राशि अपर्याप्त पाई जाती है। यह अनुदानवित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले संसद द्वारा प्रस्तुत और पारित किया जाता है।
भारत का पहला बजट स्वतंत्रता-पूर्व भारत में 7 अप्रैल, 1860 को घोषित किया गया था, जब ईस्ट इंडिया कंपनी के स्कॉटिश अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ जेम्स विल्सन ने इसे ब्रिटिश क्राउन के सामने पेश किया था। स्वतंत्रता के बाद, भारत का पहला बजट 26 नवंबर, 1947 को तत्कालीन वित्त मंत्री आर के शनमुखम चेट्टी द्वारा पेश किया गया था।
भारत की पहली महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण Nirmala Sitharaman के नाम सबसे लंबा भाषण देने का रिकॉर्ड है, जब उन्होंने 1 फरवरी, 2020 को 2020-21 केंद्रीय बजट पेश करते समय दो घंटे और 42 मिनट तक भाषण दिया था। दो पृष्ठ अभी भी शेष होने के कारण, उन्हें अपना भाषण छोटा करना पड़ा। उन्होंने जुलाई 2019 का अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया - अपना पहला बजट - उन्होंने दो घंटे और 17 मिनट तक बात की थी।
पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह भले ही कम बोलने वाले व्यक्ति थे, लेकिन वित्त मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने 1991 में सबसे अधिक शब्दों - 18,650 - के साथ भाषण दिया था।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के वित्त मंत्री Finance Minister of the first term of Modi government - अरुण जेटली - 18,604 शब्दों के भाषण के साथ दूसरे स्थान पर आते हैं। जेटली एक घंटे 49 मिनट तक बोले.
1977 का बजट भाषण, वित्त मंत्री हीरूभाई मुल्जीभाई पटेल ने दिया था, मात्र 800 शब्दों का था।
पूर्व प्रधान मंत्री मोरराजी देसाई के नाम अब तक सबसे अधिक बजट पेश करने का रिकॉर्ड है। उन्होंने 1962-69 के दौरान वित्त मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान 10 बजट पेश किए, उनके बाद पी.चिदंबरम (9 बार ), प्रणब मुखर्जी (8 बार ) रहे।
1 फरवरी को पेश होने वाला भारत का वार्षिक बजट बेहद महत्व रखता है। यह महज़ संख्याओं का लेखा-जोखा नहीं है; यह एक सावधानीपूर्वक तैयार की गई कथा है, जो देश के आर्थिक भविष्य की तस्वीर चित्रित करने के लिए सरकारी खर्च, कराधान और नीतिगत बदलावों के धागों को बुनती है। लेकिन यह जटिल टेपेस्ट्री वास्तव में रोजमर्रा के नागरिकों के जीवन को कैसे प्रभावित करती है? आइए हमारी अर्थव्यवस्था पर बजट के बहुमुखी प्रभाव को गहराई से समझें।
निवेश और बुनियादी ढाँचा: बजट सड़क, रेलवे और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों के लिए लक्षित आवंटन के माध्यम से बुनियादी ढाँचे के विकास को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे न केवल नौकरियां पैदा होती हैं बल्कि कनेक्टिविटी में भी सुधार होता है, जिससे समग्र आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिलता है।
बजटीय आवंटन के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और कौशल विकास में निवेश भविष्य की पीढ़ियों को सशक्त बनाता है और एक कुशल कार्यबल बनाता है, जो दीर्घकालिक आर्थिक विकास में योगदान देता है।
रणनीतिक कर कटौती या छूट लोगों की जेब में अधिक पैसा डाल सकती है, जिससे खपत बढ़ेगी और बाजार में मांग बढ़ेगी। इससे पिछड़े क्षेत्रों को पुनर्जीवित किया जा सकता है और आर्थिक विकास को गति दी जा सकती है।
राजकोषीय घाटे, राजस्व और व्यय के बीच के अंतर को प्रबंधित करने की बजट की क्षमता महत्वपूर्ण है। कम घाटा जिम्मेदार राजकोषीय प्रबंधन को इंगित करता है, जो निवेशकों के विश्वास को प्रेरित करता है और विदेशी पूंजी को आकर्षित करता है।
बजटीय आवंटन और कर नीतियां अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित ब्याज दरों को प्रभावित कर सकती हैं। कम ब्याज दरें उधार लेने और निवेश को प्रोत्साहित करती हैं, जिससे आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिलता है। अच्छी तरह से संतुलित राजकोषीय नीतियों के माध्यम से प्राप्त नियंत्रित मुद्रास्फीति, बचत के मूल्य की रक्षा करती है और स्थिर आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है।
भोजन, रसोई गैस और अन्य आवश्यक वस्तुओं पर लक्षित सब्सिडी गरीबी को कम कर सकती है और कमजोर वर्गों के जीवन में सुधार कर सकती है। पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल जैसे सामाजिक सुरक्षा जाल में निवेश सुरक्षा की भावना प्रदान करता है, सामाजिक स्थिरता को बढ़ावा देता है और आर्थिक कल्याण में योगदान देता है।
बजट में हरित पहल और नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान बढ़ाने से जलवायु परिवर्तन से निपटने और पर्यावरण के प्रति जागरूक क्षेत्रों में नई नौकरियाँ पैदा करने में मदद मिल सकती है, जिससे अधिक टिकाऊ अर्थव्यवस्था बन सकती है।
लैंगिक समानता कार्यक्रमों के लिए आवंटन और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए समर्थन वंचित समूहों को सशक्त बना सकता है और समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
निष्कर्ष Conclusion:
किसी देश का बजट उसकी अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। बजट घाटे से राष्ट्रीय ऋण में वृद्धि हो सकती है, जिसका अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। दूसरी ओर, बजट अधिशेष बचत की अनुमति देता है और बेहतर भविष्य बनाने में मदद कर सकता है।