आज के डिजिटल युग में, संगीत सुनने के तौर-तरीके में क्रांति आ गई है। OTT म्यूजिक स्ट्रीमिंग ऐप्स ने दुनिया भर के लाखों लोगों को अपनी पसंद के गानों तक तत्काल पहुंच प्रदान की है। लेकिन क्या यह प्रगति सभी के लिए फायदेमंद है? क्या हमारे बुजुर्गों को भी इस बदलते परिदृश्य में अपनी जगह मिल पा रही है?
हमारे ज्यादातर बुजुर्गों का मानना है कि तमाम संगीत स्ट्रीमिंग ऐप music streaming apps और तत्काल उपलब्धता के इस युग में बहुत सारे संगीत वास्तव में गायब हो गए हैं। उन्हें लगता है की आज इस डिज़िटल युग digital age में उनकी प्राथमिकताओं की उपेक्षा हो रही है। जहाँ अपनी पसंद का संगीत सुनने जैसे सरल कार्य भी बहुत जटिल हो गए है और वे इससे असंतुष्ट, भ्रमित और निराश भी हैं।
यह सच है कि OTT म्यूजिक स्ट्रीमिंग ऐप्स बुजुर्गों के लिए कुछ फायदे भी प्रदान करते हैं। इन ऐप्स के माध्यम से, वे दुनिया भर के संगीत तक पहुंच प्राप्त कर सकते हैं, जो पहले उनके लिए संभव नहीं था। वे विभिन्न शैलियों और कलाकारों का पता लगा सकते हैं और अपने पसंदीदा गानों की प्लेलिस्ट बना सकते हैं।
अनेक बुजुर्गों के लिए, OTT म्यूजिक स्ट्रीमिंग ऐप्स का उपयोग करना एक चुनौतीपूर्ण अनुभव हो सकता है। इन ऐप्स की जटिल इंटरफेस, छोटे टेक्स्ट और अस्पष्ट नेविगेशन उन लोगों के लिए मुश्किलें पैदा करते हैं जो तकनीक के साथ सहज नहीं हैं।
2022 के एक अध्ययन में पाया गया कि 57% बुजुर्गों का मानना है कि OTT म्यूजिक स्ट्रीमिंग ऐप्स का उपयोग करना मुश्किल है।
इसके अलावा, कई बुजुर्गों को यह निराशाजनक लगता है कि उनके पसंदीदा पुराने गाने अक्सर इन ऐप्स पर उपलब्ध नहीं होते हैं। स्ट्रीमिंग सेवाएं आमतौर पर नवीनतम रिलीज और लोकप्रिय कलाकारों पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जिससे पुराने गानों और कम-ज्ञात कलाकारों को ढूंढना मुश्किल हो जाता है।
OTT म्यूजिक स्ट्रीमिंग में सभी के लिए जगह हो सकती है, यदि हम बुजुर्गों की आवश्यकताओं और चुनौतियों को ध्यान में रखते हैं। सरल इंटरफेस, बेहतर नेविगेशन और पुराने गानों तक पहुंच प्रदान करके, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि बुजुर्ग भी इस संगीत क्रांति का हिस्सा बन सकें और अपने पसंदीदा गानों का आनंद ले सकें।
अपनी पिछली जिंदगी की भाग दौड़, जद्द्दोजहद को भूल कर बस कुछ पल अपनी आराम कुर्सी पर बैठ कर, आखें बंद कर "कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन" सुनना चाहते है और कोई तकनीक इस पल के सुकून और आंनद में बाधा बने तो ये एक ज्यादती ही होगी।
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Let us know how OTT Music is Ringing the Bells in the Hearts of the Elderly Community in India and Worldwide.
"वक्त ने किया क्या हसीं सितम तुम रहे न तुम हम रहे न हम" गीतकार कैफी आज़मी Kaifi Azmi, गीता दत्त Geeta Dutt की सुरीली आवाज़ और सचिन देव बर्मन Sachin Dev Burman के मधुर संगीत से भरा फिल्म "कागज के फूल" का 1959 का यह गीत शायद आज के 21 वीं सदी के नौजवानों ने सुना भी न हो और अगर सुना हो तो वो उसको कितना पसंद करते हों या उसके मर्म को समझ पाते हों, उससे जुड़ पाते हों, कहना मुश्किल है। पर वो लोग जो उस दौर से गुजरे है, वो इस गीत से जरूर जुड़ जाते है।
"कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे" स्वर्गीय गोपाल दास नीरज Gopal Das Neeraj के इस मशहूर गीत की लाइन हमें ना चाहते हुए भी पीछे पलट कर अपने अतीत पर निगाह डालने को मजबूर करती है। हमारे घर के दादा-दादी, नाना-नानी जैसे हमारे बुजुर्ग, आज भी अपने समय में ही जीते हैं क्योंकि, उनके लिए वो यादें, वो अहसास, उनके गुजरे जमाने की स्मृतियाँ बहुत मायने रखती है। हमारे समाज में एक प्रचलित कहावत है कि "अतीत को भूल जाओ, भविष्य की चिंता मत करो, वर्तमान में जियो", लेकिन जो लोग अतीत को भूलने का विकल्प चुनते हैं, वे इसकी पूरी क्षमता से चूक जाते हैं।
इससे मूल्यवान सबक सीखने को मिलते हैं। जो लोग अपने अतीत के बारे में सही सवाल पूछना चुनते हैं, वे वर्तमान में पूरी तरह से जीवन जीने के लिए तैयार हैं। आज जो है वो कभी कल भी होगा ये हमें कभी नहीं भूलना चाहिए। हम जो आज हैं वो हमारे कल का ही विस्तार है, कल की समझ हमें आज को बेहतर बनने में मदद करती है।
कल जो हमारे साथ थे आज नहीं है कल हम भी नहीं रहेंगे, पर आज हम जो कुछ करते हैं, हमारी सारी सफलताएं या विफलताएं जो भी हों सब हमारे आने वाली पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक बनेंगी। साल दर साल बीतते जाते हैं जिंदगी अपनी रफ़्तार से धूल उड़ाती चलती जाती है।
हम अपने बुजुर्गों से सीखते हैं और उनके अनुभवों से हमें परिपक्वता की ओर जाने में मदद मिलती है। हमारे बुजुर्ग हमसे कुछ ज्यादा नही बस थोड़ा सा प्यार, देखभाल, अपनापन और सुकून की ही अपेक्षा करते हैं, वे अपनी पुरानी यादों के अनुभवों के पिटारे से हमें कई मूल्यवान जवाहरात देते हैं और खुद को अपने में व्यस्त रखते है।
खुद को व्यस्त रखने, और आनंद उठाने का सबसे अच्छा जरिया जिससे हर कोई पसंद करते हैं वो है संगीत, चाहे यो कोई भी दौर हो, किसी भी पीढ़ी के लोग हों, अच्छा संगीत सभी को भाता है। ख़ास कर हमारे बुजर्गों को अपने पुराने बीते दिनों के गानों से ख़ास लगाव होता है।
ट्रांजिस्टर Transistor आज एक गुजरे ज़माने की चीज हो गई है पर एक ज़माना था जब घर-घर ट्रांजिस्टर होता था, उस वक्त सिर्फ यही मनोरंजन का साधन था। लोग आज के मोबाइल की तरह उसे प्यार करते थे, अपने सिरहाने रख कर सोते थे, आकाशवाणी से ले कर विविध भारती Vividh Bharati तक सब सुनने को लोग लालायित रहते थे। बस ट्रांजिस्टर के कान मरोडो और चैनल बदल जाता था।
हमारे ज्यादातर बुजुर्गों का मानना है कि तमाम संगीत स्ट्रीमिंग ऐप music streaming app और तत्काल उपलब्धता के इस युग में बहुत सारे संगीत वास्तव में गायब हो गए हैं। उन्हें लगता है की आज इस डिज़िटल युग digital age में उनकी प्राथमिकताओं की उपेक्षा हो रही है। जहाँ अपनी पसंद का संगीत सुनने जैसे सरल कार्य भी बहुत जटिल हो गए है और वे इससे असंतुष्ट, भ्रमित और निराश भी हैं।
ज्यादातर मामलों में, यह उनके डिजीटल संगीत संग्रह से अपने पसंद के गीतों को चुनने जैसा श्रमसाध्य काम है। कभी-कभी कोई फ़ाइल उनके मोबाइल के साथ सही संगत नहीं करती है या फ़ाइल कर्रप्ट हो सकती है।
सरल उपाय यह हो सकता है कि संगीत स्ट्रीमिंग ऐप पर साइन अप किया जाए जो हजारों गानों, कलाकारों और एल्बमों तक पहुंच को आसान कर देगा। हालाँकि, 1950 और 1960 के दशक में पैदा हुए लोगों के लिए, एक पीढ़ी जो रेडियो, ट्रांजिस्टर, रिकॉर्ड प्लेयर record player से होती हुई कैसेट, सीडी और फिर आज के डाउनलोड, ब्राउज़, साइनअप और साइडलोड की तकनीकी तक का सफर तय कर रही ही उसके लिए आज के इस "स्ट्रीम" संगीत तक पहुंच बनाना, बहुत आसान नहीं है वो इसमें सहजता महसूस नहीं करते हैं न ही यह उन्हें पुराने माध्यमों के समान संतुष्टि प्रदान करता है।
आप उन गीतों को ब्राउज़ नहीं कर सकते हैं जिन्हें आपने दशकों से सुना है। एक पुराने पसंदीदा गाने को जिसे आप लगभग भूल गए थे और अब आप उसे दोबारा सुनना चाहते है, हो सकता है कि अधिकांश नए जमाने के स्ट्रीमिंग ऐप्स पर आपको वह संगीत आज के स्ट्रीमिंग संगीत के महासागर में न मिले। कई बार ये काम एक भूसे के ढेर में सुई तलाशने जितना कठिन लग सकता है।
एक बार मुझे एक बुजुर्ग जो पेशे से लेखक थे और दुनियाँ भर के बेहतरीन म्यूजिक को सुनते और समझते थे और वह चाहते थे की उनके बच्चे भी दक्षिण अमेरिका South America और विभिन्न पश्चिम अफ्रीकी बैंडों West African Bands के संगीत से परिचित हों जिन्हे जगह-जगह से तलाशते, इकट्ठा करते और सुनते हुए वो बड़े हुए थे। कहते है "वे केवल मेरी कुछ पुरानी सीडी और रेकॉर्ड्स में ही मौजूद हैं।
संगीत की इस विशाल दुनियाँ में, मैं चाहूं तो एक सेकंड में 200 सेलिया क्रूज़ Celia Cruz गाने पा सकता हूं, जो मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं।" पर उन्हें दुःख के साथ कहना पड़ा की स्ट्रीमिंग की इस दुनियाँ में अपने द्वारा एकत्र किए गए संगीत का लगभग 25-30% खो दिया है। 2000 के दशक की शुरुआत में जब उन्हें आईपॉड मिला, तो उन्होंने अपने बहुत सारे संग्रह को डिजिटल कर दिया था। वह बेकार हो गया तो उनका बहुत सारा संगीत अपने साथ ले गया। वह अब पहले की तुलना में बहुत कम संगीत सुनते हैं।
जब वह कुछ ऑनलाइन खोजते हैं, तो वह यू टूयब YouTube को स्मार्ट टीवी के माध्यम से स्ट्रीम कर प्रयोग करते है। ये सच है अनजाने में, यूटूयब कई पुराने यूज़र्स का पसंदीदा विकल्प प्रतीत होता है। यूटूयब में वॉइस सर्च का विकल्प भी इसे बुजुर्गों के लिए आसान और सुविधाजनक बनाता है।
ओटीटी म्यूजिक एप्स OTT Music Apps ने जहां लोगों तक पहुंच बनायी और इसके इस्तेमाल को काफी बढ़ा दिया है, वहीं कुछ पुराने संगीत प्रशंसकों को भी इस बात का अफसोस है कि "तुम वही सुन रहे हो जो तुम्हें पसंद है, मैं वह क्यों नहीं सुन सकता जो मुझे पसंद है"? हर कोई अब अपनी-अपनी बातों में उलझा हुआ है।
महामारी के दौरान, जब लोग अपने परिवारों के साथ महीनों के लिए अपने घरों में बंद होने को मजबूर हो गए थे, तब कुछ बुजुर्गों ने इन ऐप्स का उपयोग करना शुरू कर दिया था। आज, नौ प्रमुख म्यूजिक प्लेटफॉर्म्स हैं जैसे- गाना, ऐप्पल म्यूज़िक, स्पॉटिफ़, जियोसावन, यूट्यूब म्यूज़िक, अमेज़न म्यूज़िक, एयरटेल का विंक, हंगामा म्यूज़िक और रेसो।
Gaana, Apple Music, Spotify, JioSaavn, YouTube Music, Amazon Music, Airtel's Wink, Hungama Music and Resso म्यूजिक इंड्रस्ट्री music industry के सूत्रों का कहना है कि पूर्व-कोविड युग में, अधिकांश ऐप में केवल नए ट्रैक ही अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे; हालांकि, लॉकडाउन के बाद से, उन्होंने कुछ दशक पहले के गानों को भी कुछ हद तक प्राथमिकता देते हुए उनकी संख्या में थोड़ी वृद्धि की है।
कुछ बुजुर्गों को इस महामारी के दौरान अपने बच्चों, युवा लोगों के माध्यम से स्ट्रीमिंग ऐप्स के संपर्क में आने के लिए मजबूर होना पड़ा, जबकि पहले वे इन ऐप्स पर बिल्कुल नहीं आते थे, क्योंकि उन्हें एक्सेस करना, समझना और नेविगेट करना उनके लिए मुश्किल हो जाता था।
2017 में सारेगामा ने कारवां Caravan को लॉन्च किया गया था, जो एक ऑफलाइन विंटेज-स्टाइल म्यूजिक प्लेयर Offline Vintage-Style Music Player है, जो 5,000 प्रीलोडेड "एवरग्रीन" गानों के साथ आता है। हिंदी, तमिल, मराठी, बंगाली और पंजाबी के लिए उसके अलग-अलग वेरिएंट लॉन्च किए गए थे, इसका उद्देश्य पुराने श्रोताओं के लिए डिजिटल संगीत को आसान बनाना और उन्हें अपने पसंदीदा गीतों के संग्रह उपलब्ध कराना था।
इसने क्रेडिट या डेबिट कार्ड के विवरण में साइन अप करने, सदस्यता लेने आदि झंझटों, जिनसे बुजुर्ग परिचित नहीं थे या उनके आदी नहीं थे, को भी ख़त्म कर उन्हें एक सुखद अनुभव प्रदान किया। सारेगामा इंडिया लिमिटेड Saregama India Limited के प्रबंध निदेशक कहते हैं की कारवां के लॉन्च की प्रकिया में 2016 में किए गए 23-शहरों के अध्ययन में, तीन चीजें सामने आईं, अधिकांश पुराने उपयोगकर्ता अपने-अपने गानों को अपनी सुविधा के अनुसार सुनने की सुविधा को महत्व देते थे वे अपना संगीत सुनने के लिए दूसरों पर कम निर्भर रहना चाहते थे; और वे ज्यादातर उस समय के संगीत को सुनने की इच्छा रखते थे जब वे 15 से 28 साल के उम्र में थे।
पुराने संगीत प्रेमियों के लिए उस जमाने में बहुत कम विकल्प होते थे रेडिओ के साथ टेलीविजन Television एक प्रमुख माध्यम था, हर सुबह रविवार को 8-9 बजे के बीच दूरदर्शन की रंगोली Doordarshan Rangoli शायद ही कोई भूल पाए। सारा परिवार, बच्चे, बूढ़े, जवान सब चाय की चुस्कियों के साथ, रंगोली के मधुर, मनमोहक रंगों में सराबोर हो जाते थे।
उस समय लोगों के लिए ये एक रवायत की तरह था। आज स्ट्रीमिंग ऐप्स पर कैटलॉग में बॉलीवुड के गाने भरे पड़े है इसके आलावा यूटूयब का उपयोग अपने मनचाहे गाने को सुनने के लिए करते हैं, या वॉयस असिस्टेंट एलेक्सा voice assistant Alexa से मदद के लिए कहते हैं। हालांकि, कभी-कभी,एलेक्सा इसे समझ नहीं पाती और पुराने ट्रैक का रीमिक्स बजाने लगती है। दूसरी बार, अपना मनचाहा संगीत खोजने के लिए यूट्यूब पर बहुत छानबीन करनी पड़ती है, और यह थोड़ा मुश्किल होता है हमारे बुजुर्गों के लिए।
इससे पहले, वो बस एक रेकॉर्ड, सीडी या कैसेट चुनते थे जो वो चाहते थे और इसे बजाते थे। पहले लोग याद करते है कि किस तरह बैठ कर लोग बाकायदा समय निकाल कर अपने मनपसंद गानों की लिस्ट बनाते थे, और अपनी पसंद के अलावा घर के सदस्यों की भी कुछ प्राथमिकताओं को ध्यान रख कर लिस्ट को फाइनल करने की कोशिश करते थे, काफी उठापटक के बाद वो लिस्ट फाइनल होती थी। फिर उस लिस्ट को कैसेट पर रिकॉर्ड कराने के लिए दुकान पर ले जाय जाता था, हर गाने के हिसाब से पैसे तय होते थे।
और अंततः कई दिनों के इंतज़ार के बाद जब उसे सुनते थे तो इतना सुकून मिलता था जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है, ये सारा कुछ एक मिशन से कम नहीं होता था। अगर आज कोई उनसे पूछे कि क्या उन्होंने प्लेलिस्ट बनाकर इस प्रक्रिया को ऑनलाइन दोहराने की कोशिश की है तो एक झेंपती सी हंसी के साथ जो जवाब आये वो शायद ऐसा हो "शायद हमें अपने दिनों के अंत में बस आगे बढ़ने और सीखने की ज़रूरत है।"
मेरे पड़ोस में रहने वाले 67 साल के श्री मोहन भी यूटूयब YouTube को उपयोग करने में आसानी महसूस करते है, बरसों से सहेजे हुए उनके दिल के करीब गीत जिनमे उनकी जान बसती थी बर्बाद हो चुके है, उनका पुराना ग्रामोफोन Gramophone, जो अब रिपेयर भी नहीं होता, बच्चे उसे कई बार ओलेक्स Olex पर बेचने की कोशिश कर चुके है।
उसे उन्होंने अपने बच्चों की तरह सम्हाल के अपने ड्रॉइंग रूम में रखा है, और रोज उसकी धूल साफ़ करते हुए वो मन ही मन अपने पुराने पसंददीदा गीतों को गुनगुना कर खुश हो लेते है "दिल के खुश रखने को ग़ालिब ख़याल अच्छा है" वो आज भी उन ख़ास गानों को तलाशते रहते हैं जिन्हें सुने बिना एक वक्त उनका दिन नहीं गुजरता था।
आज भी के. एल. सहगल के "बाबुल मोरा नैहर छूटो जाये " को सुनने का रस भूल नहीं पाते है, जिसे सुन कर वो अक्सर रो पड़ते थे।
"रहें न रहें हम, महका करेंगे, बन के कली, बन के सबा, बाग-ऐ-वफ़ा में।” भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर Lata Mangeshkar जी 6 फरवरी 2022 को इस दुनिया से हमेशा के लिए अपने हजारों- करोड़ों फैन्स को छोड़कर रुख़सत हो गई, लेकिन उनके यादगार गीत कभी भुलाए नहीं जा सकते।
लता जी ने 1949 में "महल" के "आयेगा आने वाला" गीत गाया जो उस समय की सबसे खूबसूरत और प्रसिद्ध अभिनेत्री मधुबाला Madhubala के लिए फिल्माया था। पुराने लोगों का खासकर उनके गीतों से जुड़ाव था।
कुछ पुराने लोग आज तक कुछ विशिष्ट एल्बमों की तलाश में रहते हैं। हिन्दुस्तानी गानों Indian songs के आलावा पुराने वेस्टर्न म्यूजिक western music भी पुराने लोगों में बहुत पॉपुलर थे एक बुजुर्ग 1980 के दशक के कुछ कैसेट को तलाश रहे हैं, जिसमें माइकल जैक्सन, स्टीवी वंडर और बॉय जॉर्ज Michael Jackson, Stevie Wonder and Boy George शामिल हैं।
दूसरा एक हिंदुस्तानी गायक एल.पी. शराफत हुसैन खान LP Sharafat Hussain Khan जो उनके पसंदीदा गायकों में है उन्हें नहीं मिल पा रहा है। कुछ हद तक, असंतोष पुरानी यादों से प्रेरित है। इस असंतोष को ख़त्म कर पाना आसान नहीं।
2018 में फ्रांस स्थित संगीत स्ट्रीमिंग ऐप डीज़र streaming app Deezer द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि हम में से अधिकांश 30 साल की उम्र के बाद नया संगीत सुनना बंद कर देते हैं। हालाँकि, कुछ बुजुर्ग कहते हैं कि वह हमेशा नए संगीत को सुनने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन केवल तभी जब यह वास्तव में "दिल को छू जाए, ऐसे गीतों और लिरिक्स की कमी हमेशा खलती है। उन्हें हमेशा लगता है कि रचनाएं पहले ज्यादा बेहतर थीं।
Conclusion निष्कर्ष
बदला तो बहुत कुछ है और बहुत सारे बदलावों के साथ हमारे बुजुर्गों ने सामंजस्य भी बिठाया है कई बदलावों से समझौता भी किया, "लॉट्स ऑफ़ लव" से "लोल" तक सब समझने की कोशिश कर रहे है और काफी हद तक किया भी है।
पर कुछ चीज़े इतनी आसानी से नही बदलतीं, जैसे हमारे जज्बात, पसंद और नापसंद, हमारी बरसों पुरानी आदतें और वो दौर जहाँ हमने जीवन के हसीं पल या कुछ इमोशनल पल बिताये हैं हम जिस समय में होते हैं उस समय की तकनीकी के हम आदी होते हैं और एक समय के बाद जब हम उम्र के उस पड़ाव पर होते हैं जहाँ हम अपनी पिछली जिंदगी की भाग दौड़, जद्द्दोजहद को भूल कर बस कुछ पल अपनी आराम कुर्सी पर बैठ कर, चाय की चुस्कियों के साथ आखें बंद कर "फिर वही शाम वही ग़म वही तन्हाई है" या "कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन" सुनना चाहते है और कोई तकनीक इस पल के सुकून और आंनद में बाधा बने तो ये एक ज्यादती ही होगी।