Kailash Satyarthi- बाल श्रम को समाप्त करने का संकल्प

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31 Jan 2022
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कैलाश सत्यार्थी का मानना है कि शिक्षा कई मायनों में महत्वपूर्ण है। Kailash Satyarthi ने अपने संघर्षों के द्वारा बाल मजदूरी से अभिशप्त गरीब और समाज के हाशिए के बच्चों को शिक्षा दिलाने का संकल्प लेकर बहुत कुछ बदल डाला। Kailash Satyarthi ने पूरे समाज में बाल मजदूरी के खिलाफ लोगों को जागरुक किया है । कैलाश सत्यार्थी ने यह साबित कर दिया कि बाल मजदूरी से अभिशप्त गरीब और समाज के हाशिए के बच्चों को अगर शिक्षा का समान अवसर मिले तो वे न केवल अपना जीवन बदल सकते हैं, बल्कि अपने आसपास अपने जैसे अन्य बच्चों की जिंदगी को भी बदल सकते हैं। उन्होने अपना इलेक्ट्रिक इंजीनियर के करियर को छोड़कर 1983 में बालश्रम के ख़िलाफ़ ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की स्थापना की। यह संगठन बच्चों को बालश्रम से मुक्ति दिलाता है। उन्होंने बहुत सारे बच्चों के बचपन को एक नयी राह दिखाई है। इसके लिए उन्हें 2014 में नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

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अपने लिए तो दुनिया में हर कोई जीता है। दूसरों के लिए जियो तो कुछ बात बने। दुनिया में अभी भी ऐसे कुछ लोग हैं जिन्हें दूसरों की परवाह होती है। वो दूसरों की फ़िक्र करते हैं। ऐसा ही एक नाम है Kailash Satyarthi का, जिन्होंने देश के हजारों गरीब बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए बहुत से संघर्षों का सामना करके उन्हें बाल मजदूरी से मुक्त किया है। उनके प्रयासों ने लोगों को बाल मजदूरी और शिक्षा के प्रति जागरूक किया है। सत्यार्थी ने अकेले यह सिलसिला शुरु किया था लेकिन आज यह एक आंदोलन की शक्ल में पूरी दुनिया में फैल चुका है। उनकी प्रेरणा से दुनिया भर में हजारों लोग आज बालश्रम के ख़िलाफ़ और गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए आवाज उठा रहे हैं। जानते हैं कि कैसे Kailash Satyarthi की यह कहानी शुरू हुई, कैसे उन्होंने इस संघर्ष में कामयाबी पायी और कैसे सत्यार्थी बच्चों के हितों को लेकर वैश्विक आवाज़ बनकर उभरे। 

Kailash Satyarthi का व्यक्तिगत जीवन और Career

Kailash Satyarthi का जन्म 11 जनवरी 1953 को मध्य प्रदेश Madhya Pradesh के विदिशा गाँव Vidisha Village में हुआ था। उनका वास्तविक नाम कैलाश शर्मा Kailash Sharma है जिसे उन्होंने आगे चलकर सत्यार्थी कर लिया। और उनकी पत्नी का नाम सुमेधा Sumedha है। दूसरों के प्रति प्रेम की भावना उनके अंदर बचपन से ही थी। गरीब बच्चों का संघर्ष उन्होंने बचपन में ही देख लिया था। अपनी स्कूली शिक्षा उन्होंने विदिशा से ही की। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद सम्राट अशोक टेक्नोलॉजिकल इंस्टिट्यूट Samrat Ashok Technological Institute, विदिशा से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग Electrical engineering की पढाई पूरी की और फिर हाई-वोल्टेज इंजीनियरिंग high-voltage engineering में उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन post graduation की उपाधि प्राप्त की। Kailash जी ने Engineering की पढाई पूरी करने के बाद भोपाल के एक कॉलेज में lecturer के रूप में काम किया लेकिन उनका मन यहाँ पर नहीं लगा। क्योंकि उनके मन में कुछ और ही चल रहा था। उनका झुकाव तो शुरू से ही समाज सुधार Social reforms और समाज सेवा Social service की ओर था। वो गरीब, परेशान और दुखी लोगों की सहायता करना चाहते थे इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। उन्होंने काॅलेज में पढ़ाते हुए निर्णय ले लिया था कि एक इंजीनियर के तौर पर अपना करिअर बनाने के बजाय वे अपना जीवन समाजसेवा के लिए समर्पित कर देंगे और गरीब बच्चों की मदद करेंगे। बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम करेंगे। इसके बाद कैलाश सत्यार्थी ने “संघर्ष जारी रहेगा” नामक पत्रिका की शुरुआत भी की। इस पत्रिका का मकसद था लोगों को गरीब बच्चों पर हो रहे अन्याय से परिचित कराना। एक दिन Kailash को पता चला कि गरीब बच्चों से जबरदस्ती एक factory द्वारा मजदूरी करायी जा रही है। इसके बाद उन्होंने कई factories में छापा मारा और हजारों गरीब बच्चों को इस मजदूरी से मुक्त किया। इसके बाद उन्हें लगा कि गरीब बच्चों के लिए कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे बाल श्रम को समाप्त कर सकें। इसलिए उन्होंने “Bachpan Bachao Andolan” की शुरुआत की। 

Bachpan Bachao Andolan की शुरुआत

कैलाश सत्यार्थी Kailash Satyarthi का ध्यान शुरू से ही समाज को सुधारने और उसकी सेवा में ही लगा रहा। उनका पूरा जीवन समाज सेवा को समर्पित रहा है। वह बाॅन्डेड लेबर लिबरेशन फ्रंट Bonded Labour Liberation Front के महासचिव भी बने। उन्होंने गरीब बच्चों की दुर्दशा को देखकर और उनके जीवन को एक नयी दिशा देने के लिए “बचपन बचाओ आंदोलन” Bachpan Bachao Andolan की शुरुआत की। उन्होंने बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए बहुत काम किए। “बचपन बचाओ आन्दोलन” से उनके इस महान कार्य को पहचान मिली। उनके इस आन्दोलन का उद्देश्य था कि इस दुनिया से गरीब बच्चों के साथ हो रहे शोषण और अत्याचारों exploitation and atrocities को जड़ से उखाड़ फेकना और साथ ही उन्हें शिक्षित करके उनकी ज़िंदगी को बालश्रम child labour से मुक्त करना। उनके इस आन्दोलन ने एक चिंगारी की तरह काम किया। यह आन्दोलन पूरी दुनिया में आग की तरह फ़ैल चुका था। आज उनके प्रयासों से कई बच्चों का जीवन संवर चुका है। इस आन्दोलन के जरिये उन्होंने 1980 से लेकर अब तक1 लाख बच्चों को मजदूरी के नर्क से बाहर निकाल कर अच्छी जिंदगी दी है। उन्होंने सिर्फ बच्चों को इस नर्क से बाहर ही नहीं निकाला बल्कि बच्चों के लिए 2011 में “बाल मित्र ग्राम” की शुरुआत भी की। जिसका मकसद हर गाँव से बाल श्रम ( child labour) को मिटाकर उन बच्चों की सभी सुख सुविधाओं पर ध्यान देकर उन्हें अच्छी शिक्षा प्रदान करना था। आज इस योजना से कई बच्चे लाभ उठा रहे हैं। कैलाश सत्यार्थी ने बाल मजदूरी के खिलाफ इस आन्दोलन को देश के साथ साथ विदेशों में भी फ़ैलाकर बाल मजदूरी को खत्म करने का निश्चय किया था और उनका ये मिशन कामयाब रहा। उन्होंने लगभग 108 देशों के 14 हजार संगठनों के साथ मिलकर “ बाल मजदूरी विरोधी विश्व यात्रा” आयोजित की, जिसमे लाखों लोगों ने शामिल होकर बाल मजदूरी को खत्म करने का निश्चय किया। आज उनके प्रयासों ने बचपन बचाओ आंदोलन के माध्यम से एक लाख से अधिक बच्चों को बाल श्रम, दासता, ट्रैफिकिंग और अन्य प्रकार के शोषण से मुक्त कराया है। बच्चों का जीवन सुधरा है और बच्चे बेहतर शिक्षा पाकर समाज में एक अच्छा जीवन यापन कर पा रहे हैं। 

कैलाश सत्यार्थी की उपलब्धियां

कैलाश सत्यार्थी के विचारों का ही प्रभाव था कि आज उनके साथ कई संगठन जुड़े हुए हैं। उन्होंने दुनिया भर के गैर सरकारी संगठनों, शिक्षकों और ट्रेड यूनियन्स को अपने साथ जोड़ने में सफलता पायी है। उनके कार्यों को देखकर उन्हें 2014 में नोबल पुरस्कार Nobel Prize से नवाजा गया। इस सम्मान से उन्होंने भारत का मान भी बढ़ाया है। कैलाश सत्यार्थी दुनिया भर में बच्चों के लिए काम करने वाले संगठन से जुड़कर, दुनिया भर के जरूरतमंद बच्चों के लिए वैश्विक स्तर global scale पर, बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने एक बार फिर भारत का मान बढ़ाया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने उन्हें अपना सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) एडवोकेट Sustainable Development Goals (SDG) Advocate बनाया है। यह भारत देश के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। कैलाश सत्यार्थी की बाल दासता को समाप्त करने और बच्चों के शिक्षा के अधिकारों के लिए वैश्विक आंदोलन के निर्माण में अग्रणी भूमिका रही है। वह बच्चों के शोषण को समाप्त करना चाहते हैं। कैलाश सत्यार्थी की उपलब्धियों की लिस्ट बहुत लंबी है। कैलाश सत्यार्थी को बच्चों की दुनिया को बेहतर बनाने के लिए किए गए कामों के लिए पूरी दुनिया में कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। 2015 में उन्हे हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित पुरस्कार “ह्युमेनीटेरियन पुरस्कार ” Humanitarian Award से सम्मानित किया गया। कैलाश सत्यार्थी दुनियाभर में शिक्षा का अधिकार दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले संगठन ग्लोबल कैंपेन फॉर एजूकेशन के संस्थापक और अध्यक्ष रहे हैं। वे यूनेस्को के शिक्षा पर बनी हाईलेबल कमेटी के सदस्य भी रहे हैं। 1995 में रॉबर्ट एफ. कैनेडी ह्यूमन राइट अवार्ड (अमेरिका) Robert F. Kennedy Human Right Award और 1999 में फ्राइड्रीच इबर्ट स्‍टीफटंग अवार्ड (जर्मनी) Friedrich Ebert Stiftung Award (Germany) से भी नवाजा गया। 2007 में मेडल ऑफ द इटालियन सेनाटे (Medal of the Italian Senate) और 2008 में अलफांसो कोमिन इंटरनेशनल अवार्ड (स्‍पेन) Alfonso Comin International Award (Spain) से भी सम्मानित किया। इसके अलावा वॉकहार्ट फाउंडेशन की ओर से 2019 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (Lifetime Achievement Award by Wockhardt Foundation – 2019) से सम्मानित किया। संतोकबा ह्यूमैनेटेरियन अवार्ड-2018(Santokba Humanitarian Award – 2018) और लार्जेस्ट चाइल्ड सेफगार्डिंग लेसन-गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड -2017(Largest Child Safeguarding Lesson – Guinness Book of World Records, 2017) से भी नवाजा गया है। कैलाश सत्यार्थी का मानना है कि वैश्विक विकास global development तभी समावेशी और टिकाऊ हो सकता है जब वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की पीढ़ियां भी स्वतंत्र, सुरक्षित, स्वस्थ और शिक्षित हों।

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