खोई पहचान हांसिल करती भारतीय हॉकी टीम

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31 Jul 2021
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भारत में हॉकी ने अपना एक मुकाम बनाया है। ओलम्पिक में सबसे अधिक लगातार गोल्ड मेडल जीतने वाले देश में खेल के लिए बढ़ती रूचि भी हॉकी खेलने वालों के लिए और अवसर दे रही है। इसके साथ ही खेल के लिए दिये जाने वाले खर्च से लोगों को खेल में प्रतिभागी बनने और खिलाड़ियों को संघर्ष करते रहने की प्रेरणा मिलती है। हॉकी में लगातार हो रहे अच्छे प्रदर्शन से एक बार फिर भारतीय हॉकी में अपना भविष्य देखने लगे है।

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प्रत्येक खेल अपने आप में कई इतिहास लिए रहता है। इनसे जुड़ी कहानियां आने वाले समय में लोगों को उत्साहित करती हैँ, अन्य खेलों की तरह खेला जाने वाला हॉकी खेल भी ऐसी कई कहानियों से लोगों को हॉकी से जुड़ने और खिलाड़ियों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। हॉकी का खेल किस सदी में प्रारम्भ हुआ यह निश्चित तरीके से कोई भी नहीं कह सकता परन्तु इसने प्रत्येक सदी में अपने खेल से लोगों को रोमांचित किया है। हाथ में हॉकी लेकर 22 खिलाड़ियों का एक गेंद को अपना लक्ष्य मानकर उसका पीछा करना ही कितना रोमांचित करता है। भारत में हॉकी का अपना इतिहास और वर्चस्व रहा है। खेल को ज्यादा महत्व नहीं देने वाले भारतीयों का एक समय पर यह सबसे अधिक प्रिय खेल हुआ करता था। दुनिया के लगभग हर देश ने हॉकी को एक अच्छे खेल के रुप में अपनाया है जो मनोरंजन के साथ लोगों को जिंदगी में आगे बढ़ते रहने का हुनर सिखाता है।  

दुनिया में भारत का स्वर्णिम इतिहास

देखा जाए तो भारत में हॉकी का इतिहास का प्रारम्भ सही मायनें में 18वीं सदी में कलकत्ता में पहले हॉकी क्लब से हुआ, जिसके बाद से इस क्षेत्र में भारतीयों की दिलचस्पी बढ़ती गई और एक समय पर भारत ने हॉकी में अभूतपूर्व उपलब्धि हांसिल की। जिसका नतीजा यह रहा है कि अब तक उस उपलब्धि के आस-पास भी किसी देश की कोई टीम नहीं पहुंच पाई है। 1928 में एम्सटर्डम में पहली बार ओलम्पिक में भारत ने स्वर्ण पदक अपने नाम किया, इस खेल की खासियत यह रही कि भारत ने दूसरी टीम को एक भी गोल करने का मौका नहीं दिया। ओलम्पिक में लगातार 6 स्वर्ण पदक जीत कर भारत ने इतिहास रच दिया। भारत की इस लगातार जीत के कारण भारत में हॉकी को एक नई पहचान मिली। लोगों का इस खेल के प्रति रूझान बढ़ने लगा। हालांकि इसके बाद से भारत में हॉकी का अस्तित्व धीरे-धीरे कमजोर पड़ता गया। एक समय पर हॉकी की दुनिया पर कब्जा करने वाली भारतीय टीम का प्रदर्शन खराब होता गया। परन्तु बदलते समय और आयामों के साथ एक बार फिर बाकी खेलों के साथ हॉकी में भी भारतीय टीम अच्छा प्रदर्शन कर रही है।

चांद की रोशनी से भारतीय हॉकी का भविष्य

1928-1958 तक ओलम्पिक में लगातार स्वर्ण पदक जीतने का कारण उस वक्त के खिलाड़ी मेजर ध्यान चन्द को कहा जाता है। आर्मी में नौकरी करने वाले मेजर ध्यानचंद ने पहली बार न्यूजीलैंड में आर्मी के बाहर अन्तरार्ष्ट्रीय स्तर पर मैच खेला। 1928 के ओलम्पिक में भारत की तरफ से किए गए 28 गोलों में 11 गोल केवल मेजर ध्यानचंद ने ही किए थे। अपने स्टिक से गेंद के साथ खेलने की उनकी कला पर प्रत्येक व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो जाता था। तीन बार लगातार ओलम्पिक में जीतने वाली भारत की टीम को स्वर्ण पदक तक ध्यानचंद ने ही पहुंचाया। अपने पूरे हॉकी के करियर में मेजर ने कुल 300 अंतर्राष्ट्रीय और 101 ओलम्पिक गोल करने का रिकॉर्ड बनाया, जिसे कोई भी हॉकी का खिलाड़ी पीछे नहीं छोड़ पाया है। मेजर ध्यानचंद को चंद इसलिए कहा जाता था कि वो रात में चांद की रोशनी में भी अभ्यास किया करते थे। अपने खेल के प्रति इस तरह का आत्मसमर्पण प्रत्येक खिलाड़ी को निरन्तर मेहनत करने की प्रेरणा देता है।

हॉकी में बचाया भारतीय हॉकी की पहचान

ऐसे ही भारत में कुछ और ऐसे खिलाड़ी हुए जिन्होनें दुनिया में भारतीय हॉकी के रूतबे को बनाए रखने की पूरी कोशिश की। बात चाहे धनराज पिल्लै की करें या बलबीर सिंह से लेकर मोहम्मद शाहिद की, सारे खिलाड़ियों ने इस क्षेत्र में अपना नाम सबको हमेंशा याद रखने के लिए मजबूर कर दिया। जब-जब बात भारतीय हॉकी की आती है इन खिलाड़ियों का नाम जहन में खुद आ जाता है। अपने बेहतर स्किल के लिए जाने जाने वाले बलबीर सिंह ने 1948 में ओलम्पिक की दुनिया में 8 गोल करके भारत को एक और स्वर्ण पदक दिलाया। यह वह समय था जब दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की चपेट में था। हॉकी का नाम आते ही एक नाम ख्द दिमाग में घर बनाने लगता है जिन्हें हम धनराज पिल्लै के नाम से जानते हैं। धनराज पिल्लै हॉकी की दुनिया का वो नाम हैं जो अपने अटैकिंग स्किल के लिए जाने जाते हैं। 90 के दशक में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित पिल्लै हॉकी के सुपरस्टार हुआ करते थे। खेल के दौरान सबसे अच्छा पास लेने वाले धनराज ने कई गोल अपने नाम किए। एक लम्बे समय तक इस क्षेत्र में अपना समय देने वाले धनराज पिल्लै अपनी फिटनेस से लोगों को प्रेरित करते हैं।

सबसे अधिक गोल करने की ख्याति

इस वक्त के भारतीय हॉकी टीम के कप्तान सुनील क्षेत्री ने लम्बे समय के बाद भारत में हॉकी टीम के लिए मनोबल बढ़ाया है। कई बार प्लेयर ऑफ द ईयर का खिताब जीतने वाले सुनाली क्षेत्री ने भारत के लिए सबसे अधिक गोल करने का रिकॉर्ड अपने नाम किया है। अनेकों मेडल अपने नाम करके इन्होनें कई पुरस्कार भी जीते। भारत में हॉकी के डूबते भविष्य को सुनील क्षेत्री जैसे और खिलाड़ियों ने फिर से एक नई उम्मीद दिखाई है। टोक्यो ओलम्पिक 2021 में एक अरसे(41 साल)बाद सेमीफाइनल में पहुंचकर भारतीय टीम अपनी खोई पहचान तक पहुंचने में कामयाब हुई है।    

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