भारतीय संस्कृति में रंग भरने वाले कला के ‌रूप

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24 Feb 2024
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कला भारत की संस्कृति है जो अति प्राचीन है। यह हमारी सभ्यता और परंपराओं को दर्शाती है। भारतीय कला की छटा विदेशों तक विस्तृत है। भारत में अनेक तरह की चित्रकलाएं प्रसिद्ध हैं। जिनको अलग-अलग तरीके से दर्शाया जाता है साथ ही प्रतीक कला के उत्पत्ति की कथा भी उससे जुड़ी होती है।

भारत में भिन्-भिन्न प्रकार की कलाएं Different types of arts in India  प्रसिद्ध हैं और यहां के अलग-अलग समुदायों की‌‌ इसे लेकर अपनी मान्यता जुड़ी होती है। प्रत्येक कला को करने की अपनी शैली होती है और यह चित्रकलाएं प्राचीन कथाओं को दर्शाती हैं। इन कलाओं में प्राकृतिक रंगों और अलग-अलग माध्यमों का उपयोग किया जाता है जो इनकी सुंदरता को बढ़ाती हैं। भारतीय कला अपने रंगों और ढंगों की छटा पूरे विश्व भर में बिखेरती है।

यह थी कुछ भारतीय चित्रकलाओं की झलक Glimpse of Indian paintings जो भारत के विभिन्न कोनों और वहां के लोगों की संस्कृति और सभ्यता को दर्शाती है। भारतीय समुदाय द्वारा इन्हें परंपरागत रूप से अपनाया भी जाता है। तंजौर, राजपूताना, मुग़ल, मंदाना, मैसूर आदि और भी चित्रकलाएं हैं जो भारत की धरोहर के रूप में संग्रहित हैं और इनका काफी महत्व है।

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भारतीय कला दर्शन Indian Art Philosophy

भारत की कला में सौंदर्य और अर्थ: एक अनोखी यात्रा Beauty and Meaning in the Art of India: A Unique Journey

भारतीय कला का दर्शन सदियों पुराना है और यह भारत की समृद्ध संस्कृति और सभ्यता का एक अभिन्न अंग है। यह केवल सुंदर चित्रों और मूर्तियों के निर्माण से परे है, बल्कि यह गहरे दार्शनिक और आध्यात्मिक अर्थों से भी ओतप्रोत है। इस लेख में, हम भारत की कला के दर्शन की गहराई में जाएंगे और यह कैसे सौंदर्य, अर्थ और आध्यात्मिकता को एक साथ जोड़ता है।

सत्य, शिव, सुंदरम का सिद्धांत Theory of Satya, Shiva, Sundaram

भारतीय कला दर्शन में एक महत्वपूर्ण अवधारणा "सत्य, शिव, सुंदरम" का सिद्धांत है। यह तीन शब्द सार्वभौमिक सत्य (सत्य), कल्याण (शिव) और सौंदर्य (सुंदरम) का प्रतिनिधित्व करते हैं। कलाकार का लक्ष्य इन तीनों को अपने कार्यों में एकीकृत करना है। सत्य का प्रतिनिधित्व विषयवस्तु के यथार्थ चित्रण में किया जा सकता है, जबकि शिव को शांति और सद्भाव की भावना से व्यक्त किया जा सकता है। अंत में, सुंदरम को कला की सुंदरता और कलात्मकता के माध्यम से दर्शाया जाता है।

आध्यात्मिकता और प्रतीकवाद Spirituality and Symbolism

भारतीय कला अक्सर प्रतीकों और रूपकों से भरी होती है। ये प्रतीक कलाकारों को गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक विचारों को व्यक्त करने में सक्षम बनाते हैं। उदाहरण के लिए, भगवान शिव को अक्सर नटराज के रूप में चित्रित किया जाता है, जो ब्रह्मांड के नृत्य का प्रतिनिधित्व करता है। इस तरह के चित्र न केवल सुंदर होते हैं, बल्कि ब्रह्मांड के निर्माण और विनाश के चक्र का भी गहरा अर्थ रखते हैं।

विभिन्न कला रूप Various art forms

भारत की कला विविध है और इसमें कई रूप शामिल हैं, जिनमें चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला, नृत्य और संगीत शामिल हैं। प्रत्येक कला रूप अपनी अनूठी शैली और अभिव्यक्ति के माध्यम से "सत्य, शिव, सुंदरम" के सिद्धांत का पालन करता है।

भारतीय कला दर्शन हमें कला को केवल सौंदर्य के रूप में देखने से परे जाने के लिए प्रेरित करता है। यह हमें गहरे अर्थ और आध्यात्मिकता की खोज करने के लिए आमंत्रित करता है जो हर कलाकृति में निहित है। यह अनोखी यात्रा हमें भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत की गहरी समझ प्रदान करती है।

विभिन्न भारतीय कला शैलियां: एक रंगीन यात्रा Different Indian Art Styles: A Colorful Journey

भारतीय कला अपनी विविधता indian art diversity और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध है। सदियों से, विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों ने विभिन्न कला शैलियों को जन्म दिया है, जो भारत की विशाल सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती हैं। इस लेख में, हम कुछ प्रमुख भारतीय कला शैलियों की यात्रा करेंगे और उनकी विशेषताओं और सुंदरता का पता लगाएंगे।

राजस्थानी कला: रंगों, कल्पनाओं और परंपराओं का संगम Rajasthani art: a confluence of colors, imagination and traditions

राजस्थानी कला अपनी जीवंतता, विविधता और समृद्ध विरासत के लिए विश्व प्रसिद्ध है। सदियों से, राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों ने विभिन्न कला शैलियों को जन्म दिया है, जो अपनी अनूठी विशेषताओं और विषयों के लिए प्रसिद्ध हैं। इस लेख में, हम राजस्थानी कला की कुछ प्रमुख शैलियों और उनकी विशेषताओं का पता लगाएंगे।

मुख्य राजस्थानी कला शैलियाँ Main Rajasthani Art Styles::

  • पहाड़ी कला: यह शैली राजस्थान के पहाड़ी क्षेत्रों में विकसित हुई और इसकी विशेषता नाजुक चित्रों और सूक्ष्म रंगों का उपयोग है। कलाकृतियां अक्सर धार्मिक विषयों, पौराणिक कथाओं और प्रकृति के चित्रण से प्रेरित होती हैं।

  • मेवाड़ी कला: यह शैली Mewar राज्य में विकसित हुई और इसकी विशेषता भव्य चित्रों, बोल्ड रंगों और ऐतिहासिक घटनाओं के चित्रण का उपयोग है। कलाकृतियां अक्सर राजसी दरबारों, युद्धों, त्योहारों और वीरतापूर्ण कहानियों को दर्शाती हैं।

  • बूंदी कला: यह शैली Bundi राज्य में विकसित हुई और इसकी विशेषता जानवरों और पक्षियों के चित्रण, ज्यामितीय डिजाइनों और मधुर रंगों का उपयोग है। कलाकृतियां अक्सर प्रकृति के प्रति प्रेम, लोककथाओं और जीवन के सरल सुखों को दर्शाती हैं।

राजस्थानी कला विशेषताएं Rajasthani art specialties:

  • रंगों का प्रयोग: राजस्थानी कला अपने चमकीले और जीवंत रंगों के प्रयोग के लिए प्रसिद्ध है। कलाकार अक्सर लाल, पीले, हरे, नीले और नारंगी रंगों का उपयोग करते हैं, जो कलाकृतियों को एक विशिष्ट ऊर्जा और उत्साह प्रदान करते हैं।

  • कल्पनाशीलता: राजस्थानी कला कल्पनाशीलता और रचनात्मकता से भरपूर है। कलाकार अक्सर देवी-देवताओं, पौराणिक प्राणियों, लोक कथाओं और परंपराओं से प्रेरणा लेते हैं।

  • कलाकृतियां: राजस्थानी कला विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों में देखी जा सकती है, जिनमें चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला, वस्त्र, आभूषण और हस्तशिल्प शामिल हैं।

राजस्थानी कला उदाहरण:

  • पहाड़ी कला: किशनगढ़ की प्रसिद्ध "बनी-ठनी" चित्रकला शैली इस शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

  • मेवाड़ी कला: उदयपुर के सिटी पैलेस में स्थित भित्ति चित्र और चित्रकला मेवाड़ी कला का प्रतिनिधित्व करते हैं।

  • बूंदी कला: Bundi Palace में स्थित "रागमाला" चित्रकला श्रृंखला बूंदी कला का एक शानदार उदाहरण है।

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मुगल कला: यथार्थवाद, भव्यता और कारीगरी का संगम Mughal Art: A Confluence of Realism, Grandeur and Craftsmanship

मुगल कला, जिसे हिंदो-पर्शियन कला भी कहा जाता है, भारत में मुगल साम्राज्य (1526-1857) के शासनकाल के दौरान विकसित हुई। यह कला फारसी और भारतीय कला शैलियों का एक अद्भुत मिश्रण है, जो अपनी भव्यता, यथार्थवादी चित्रण और उत्कृष्ट कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है।

मुगल कला मुख्य विशेषताएं Mughal art highlights:

  • यथार्थवाद: मुगल कलाकारों ने प्रकृति, लोगों, जानवरों और वस्तुओं को अत्यंत यथार्थवादी तरीके से चित्रित किया। उन्होंने बारीकियों पर विशेष ध्यान दिया, जिससे कलाकृतियां जीवंत और सजीव लगती हैं।

  • जीवंत रंगों का उपयोग: मुगल कला में चमकीले और जीवंत रंगों का प्रयोग किया गया, जो उन्हें एक विशिष्ट भव्यता प्रदान करता है। कलाकार अक्सर सोने, चांदी और लैपिस लाजुली जैसे महंगे रंगों का उपयोग करते थे।

  • सूक्ष्म कारीगरी: मुगल कला अत्यंत सूक्ष्म और विस्तृत कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है। कलाकारों ने बारीक ब्रश और नाजुक उपकरणों का उपयोग करके कलाकृतियों में अद्भुत विवरण और सजावट की।

मुगल कला प्रमुख कला रूप:

  • चित्रकला: मुगल कला का सबसे प्रसिद्ध रूप चित्रकला है। मुगल चित्रकारों ने विभिन्न विषयों को चित्रित किया, जिनमें राजसी दरबार, शिकार अभियान, युद्ध, प्रेम कहानियां, पौराणिक कथाएं और प्रकृति शामिल हैं।

  • वास्तुकला: मुगल वास्तुकला अपनी भव्यता और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध है। मुगलों ने कई शानदार इमारतों का निर्माण किया, जिनमें ताज महल, लाल किला, आगरा का किला और Fatehpur Sikri शामिल हैं।

  • हस्तशिल्प: मुगल काल में विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प विकसित हुए, जिनमें जरी-कसीदाकारी, कालीन बुनाई, धातु का काम, लकड़ी का काम और मिट्टी के बर्तन शामिल हैं।

मुगल कला प्रमुख कलाकार Mughal Art Major Artists:

  • अब्दुस्समद: मुगल सम्राट अकबर के दरबारी चित्रकार, जिन्हें फारसी कला में महारत हासिल थी।

  • दासवंत: अकबर के दरबारी चित्रकार, जिन्होंने भारतीय कला शैली को मुगल कला में शामिल किया।

  • उस्ताद मंसूर: जहांगीर के दरबारी चित्रकार, जो प्रकृति चित्रण के लिए प्रसिद्ध थे।

  • मीर मुहम्मद: शाहजहाँ के दरबारी चित्रकार, जिन्होंने ताज महल के चित्रों को बनाने में योगदान दिया।

मुगल कला विभिन्न विषयों को दर्शाती है, जिनमें शामिल हैं:

  • शाही दरबार: कलाकारों ने शाही दरबारों, राजसी जीवन, शिकार अभियानों और युद्धों के चित्रों को चित्रित किया।

  • पौराणिक कथाएं: हिंदू और मुस्लिम पौराणिक कथाओं से प्रेरित चित्रों को भी मुगल कला में दर्शाया गया है।

  • प्रकृति: कलाकारों ने वनस्पतियों और जीवों, परिदृश्यों और प्राकृतिक सुंदरता को भी चित्रित किया।

मुगल कला उदाहरण Mughal art examples:

  • जहांगीर के शासनकाल में: "तूतीनामा" और "अकबरनामा" जैसी प्रसिद्ध चित्रकला श्रृंखलाएं मुगल कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

  • शाहजहाँ के शासनकाल में: ताज महल और लाल किला जैसी भव्य वास्तुकला मुगल कला की भव्यता का प्रतीक है।

दक्षिण भारतीय कला: भक्ति, परंपरा और कारीगरी का संगम South Indian Art: A Confluence of Devotion, Tradition and Craftsmanship

दक्षिण भारतीय कला अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक प्रेरणा, जटिल नक्काशी, मूर्तियां, भित्ति चित्र और नाजुक चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। यह कला भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और सदियों से लोगों को प्रेरित करती रही है।

दक्षिण भारतीय कला प्रमुख शैलियाँ Major styles of South Indian art:

  • मंदिर कला: दक्षिण भारत में भव्य मंदिरों का निर्माण कला का एक महत्वपूर्ण रूप रहा है। इन मंदिरों में जटिल नक्काशी, मूर्तियां और भित्ति चित्र हैं जो देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं और धार्मिक प्रतीकों को दर्शाते हैं। इन कलाकृतियों में पत्थर, धातु और लकड़ी जैसे विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया जाता है।

  • बनारसी कला: बनारसी कला, जिसे काशी कला भी कहा जाता है, अपनी नाजुक और विस्तृत चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। यह कला शैली भगवान शिव और गंगा नदी के प्रति भक्ति से प्रेरित है। कलाकृतियां अक्सर धार्मिक विषयों, पौराणिक कथाओं और जीवन के दृश्यों को दर्शाती हैं।

  • थंगका कला: थंगका कला तिब्बती बौद्ध धर्म से जुड़ी एक कला शैली है। यह कला भगवान बुद्ध, अन्य बौद्ध देवी-देवताओं और धार्मिक दृश्यों को दर्शाती है। कलाकृतियां अक्सर कपड़े पर बनी होती हैं और रंगों और सोने का उपयोग करके बनाई जाती हैं।

दक्षिण भारतीय कला विशेषताएं South Indian Art Features:

  • धार्मिक और आध्यात्मिक प्रेरणा: दक्षिण भारतीय कला धार्मिक और आध्यात्मिक भावनाओं से प्रेरित है। कलाकृतियां अक्सर देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं और धार्मिक प्रतीकों को दर्शाती हैं।

  • जटिल नक्काशी और मूर्तियां: दक्षिण भारतीय कला जटिल नक्काशी और मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। कलाकार पत्थर, धातु और लकड़ी जैसे विभिन्न सामग्रियों का उपयोग करके देवी-देवताओं, जानवरों और पौराणिक कथाओं के आंकड़े बनाते हैं।

  • भित्ति चित्र और चित्र: दक्षिण भारतीय कला में भित्ति चित्र और चित्रों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। कलाकार धार्मिक विषयों, पौराणिक कथाओं और जीवन के दृश्यों को चित्रित करते हैं।

उदाहरण:

  • मंदिर कला: तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर, मदुरै का मीनाक्षी अम्मन मंदिर और हम्पी के विरुपाक्ष मंदिर दक्षिण भारतीय मंदिर कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

  • बनारसी कला: बनारसी साड़ियाँ और बनारसी कलाकृतियां, जो भगवान शिव और गंगा नदी को दर्शाती हैं, बनारसी कला के प्रसिद्ध उदाहरण हैं।

  • थंगका कला: थंगका कलाकृतियां, जो भगवान बुद्ध और अन्य बौद्ध देवी-देवताओं को दर्शाती हैं, तिब्बती बौद्ध धर्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

अतिरिक्त जानकारी:

  • कला शैलियों के अलावा, भारत में विभिन्न प्रकार की लोक कला और शिल्प भी हैं जो क्षेत्रीय संस्कृतियों और परंपराओं को दर्शाते हैं।

  • भारतीय कला समय के साथ विकसित होती रही है और आज भी कलाकार नई और अभिनव कला शैलियों का निर्माण कर रहे हैं।

भारतीय कला का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। भारतीय कला में विभिन्न प्रकार की कलाएं शामिल हैं, जिनमें पेंटिंग, मूर्तिकला, मिट्टी के बर्तन और कपड़ा कला, जैसे कि बुने हुए रेशम शामिल हैं। भौगोलिक रूप से, यह सभी भारतीय उपमहाद्वीप में फैला है, जिसमें अब भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल और पूर्वी अफगानिस्तान भी शामिल है। डिजाइन की एक मजबूत भावना भारतीय कला की विशेषता है और इसे इसके आधुनिक और पारंपरिक रूप में देखा जा सकता है।

भारत में कई अलग-अलग कला रूपों का अभ्यास किया जाता है और उनमें से कुछ लंबे समय से जीवित हैं। सांस्कृतिक रूप से भिन्न होने के कारण, भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न प्रकार की कलाएँ प्रचलित हैं। उनमें से कुछ समय के साथ विकसित हुए। प्रत्येक कला के रूप अपने तरीके से अद्वितीय हैं और बहुत ही सराहनीय हैं। परंपरागत रूप से, कला रूप केवल दीवारों पर मौजूद थे।

लेकिन आज, वे कैनवास, कागज, कपड़े आदि में भी पाए जाते हैं। यहां विभिन्न भारतीय कला रूपों की एक सूची है, कुछ अभी भी अभ्यास में हैं। भारतीय कला यहां की संस्कृति और परंपराओं का प्रतिबिंब हैं। चित्रों की भारतीय शैलियों की अनूठी उत्पत्ति और उनके पीछे का इतिहास उन्हें और भी दिलचस्प बनाता है। यहां पांचऐसीभारतीय कला शैलियां हैं जोहमारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं।

विभिन्न भारतीय कला शैलियां Different Indian Art Styles

1.मधुबनी चित्रकला‌‌ - बिहार Madhubani Painting - Bihar

मधुबनी पेंटिंग या मिथिला पेंटिंग्स की उत्पत्ति बिहार के मधुबनी गांव में हुई थी और यह ज्यादातर महिलाओं द्वारा बनाई जाती है। मुख्य रूप से यह विषय पौराणिक कथाओं, हिंदू देवताओं और विभिन्न शाही दरबार परिदृश्यों के इर्-गिर्द घूमते हैं। इस प्रकार की भारतीय पेंटिंग में उंगलियों, टहनियों, ब्रश, निब-पेन, माचिस और प्राकृतिक रंग जैसे कई उपकरणों का उपयोग किया जाता है।

ये दीवारों, पवित्र स्थानों के फर्श, कैनवस आदि पर किए जाते हैं। ये चमकीले रंग की मधुबनी पेंटिंग उनके ज्यामितीय पैटर्न की विशेषता है और बिहार के मधुबनी जिले में व्यापक रूप से प्रचलित है।

मधुबनी चित्रों के विषय ज्यादातर प्रकृति के दृश्य जैसे सूर्य, चंद्रमा, तुलसी के पौधे और पौराणिक कथाओं और हिंदू देवताओं जैसे कृष्ण, राम, शिव, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती आदि को दर्शाते हैं। इनमें अर्धनारीश्वर, अदालत के दृश्य, सामाजिक कार्यक्रम भी शामिल हैं। इस कला रूप की उत्पत्ति रामायण काल से होती है जब राजा जनक (सीता के पिता) ने ग्रामीणों से राजकुमार राम और सीता की शादी के अवसर पर पूरे गांव को सजाने का अनुरोध किया था। इसीलिए इसे मिथिला चित्रकला भी कहा जाता है।

2.वारली चित्रकला - महाराष्ट्र Warli Painting - Maharashtra

वारली कला महाराष्ट्र की 2500 साल पुरानी आदिवासी कला है। ज्यादातर वारली जनजाति की महिलाओं द्वारा चित्रित की जाती है इस कला रूप में पेंटिंग प्रकृति, फसल, शादियों और प्रजनन क्षमता पर आधारित हैं। प्रारंभ में घरों की दीवारों पर चित्रित वारली कला ने अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की है और इसे घरेलू साज-सज्जा, सजावट और भित्ति चित्रों पर चित्रित किया जाता है। यह ज्यादातर स्थानीय लोगों की दैनिक गतिविधियों जैसे खेती, नृत्य, प्रार्थना, शिकार, बुवाई, आदि और प्रकृति के तत्वों को दर्शाती है।

वारली पेंटिंग परंपरागत रूप से चावल के पेस्ट के साथ टहनियों का उपयोग करके झोपड़ियों की मिट्टी की दीवारों पर की जाती है। इन चित्रों को सफेद रंग, सरल ज्यामितीय डिजाइन और त्रिकोण, वर्ग और वृत्त जैसे पैटर्न की झलक देती हैं। पर्वत और नुकीले पेड़ एक त्रिभुज द्वारा दर्शाए जाते हैं, मानव आविष्कार वर्ग द्वारा। सूर्य और चंद्रमा को वृत्त द्वारा दर्शाया गया है। वृत्ताकार पैटर्न उनके इस विश्वास का भी प्रतिनिधित्व करते हैं कि मृत्यु सिर्फ एक और शुरुआत है कोई भी विवाह वारली चित्रकला के बिना नहीं हो सकता था क्योंकि उनका केंद्रीय रूप उनकी देवी, पालाघाट हैं, जो उनकी उर्वरता का प्रतीक मानी जाती हैं।

3.पट्टाचित्र कला - उड़ीसा Pattachitra Art- Orissa

पट्टाचित्र, यह लोक चित्रकला उड़ीसा राज्य की है। इनकी उत्पत्ति आठवीं शताब्दी के दौरान हुई थी और माना जाता है कि यह स्वदेशी कला के शुरुआती रूपों में से एक है। 'पट्टा' का अर्थ है 'कपड़े' और 'चित्र' का अर्थ पेंटिंग है, इसलिए इस कला रूप में चित्रों को कपड़े के आधार पर चित्रित किया जाता है। पट्टाचित्र कला जगन्नाथ और वैष्णव पंथ से प्रेरित है। उड़ीसा के प्रसिद्ध कोणार्क मंदिर में पट्टाचित्र कला के चित्रण देखे जा सकते हैं।

कला के रूप में मुख्य रूप से पौराणिक और धार्मिक विषयों, महाकाव्य, हिंदू देवताओं आदि को दर्शाया जाता है। सफेद, पीले और लाल जैसे प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है और बोल्ड और मजबूत रूपरेखा और सजावटी सीमाओं के साथ काले होते हैं।कला रूप का अभ्यास 3000 से अधिक वर्षों से किया जा रहा है और इस कला रूप के पीछे के कलाकारों को महापात्र के रूप में जाना जाता है।

4.कलमकारी चित्रकला - आंध्र प्रदेश Kalamkari Painting - Andhra Pradesh

कलमकारी का शाब्दिक अर्थ है, "कलम-कला" कलमकारी पेंटिंग या तो हाथ से पेंट की जाती है या सूती कपड़े पर ब्लॉक प्रिंट की जाती है। यह कलारूप गोलकुंडा सल्तनत के शासन में फला-फूला इसे सबसे पहले आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में विकसित किया गया था लेकिन जल्द ही इसकी लोकप्रियता अन्य राज्यों में फैल गई। जहां तक ​​लोकप्रिय धारणा हैं, पुराने दिनों में चित्रकारों के रूप में पाहचाने जाने वाले कारीगरों, संगीतकारों और गायकों के समूह गांव से गांव की यात्रा करते थे और हिंदू पौराणिक कथाओं की कहानियां सुनाते थे।

समय बीतने के साथ उन्होंने इन कहानियों को कैनवास पर चित्रित करना भी शुरू कर दिया और इस तरह कलमकारी का जन्म हुआ। कलमकारी आमतौर पर रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों, संगीत वाद्ययंत्र, जानवरों, बुद्ध और बौद्ध कला, फूलों और हिंदू प्रतीकों जैसे स्वास्तिक के दृश्यों को दर्शाती हैं।

कपड़े पर कलाम या बांस की ईख का उपयोग करके पेंटिंग की जाती है और प्राकृतिक और मिट्टी के रंगों तथा वनस्पति रंगों का उपयोग किया जाता है जैसे नील, हरा, जंग, काला और सरसों का उपयोग किया जाता है। कलमकारी कला रूप व्यापक रूप से साड़ियों और जातीय परिधानों पर प्रयोग किया जाता है और यह बहुत लोकप्रिय है।

5.गोंड चित्रकला - मध्य प्रदेश Gond Painting - Madhya Pradesh

गोंड पेंटिंग मध्य प्रदेश की एक देशी कला है। गोंड कला की विशेषता ज्यादातर पशु और पक्षी हैं। यह कला रूप भारतीय लोक और आदिवासी कला है। मध्य प्रदेश में गोंड समुदाय के लोग इनका अभ्यास करते हैं। गोंड शब्द द्रविड़ अभिव्यक्ति कोंड से लिया गया है जिसका अर्थ है हरा पहाड़। गोंड पेंटिंग धार्मिक भावनाओं और रोजमर्रा की जिंदगी के चित्रण की अभिव्यक्ति है।

यह कला रूप 1400 से अधिक वर्षों से प्रचलित है। वे आमतौर पर वनस्पतियों और जीवों, लोगों के दैनिक जीवन, देवताओं, त्योहारों और समारोहों को चित्रित करते हैं। वे पौराणिक कहानियों, प्रकृति, महत्वपूर्ण अवसरों और अनुष्ठानों को बनाते हैं।

गोंड जनजाति देश की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी जनजातियों में से एक है। गोंड कला के ध्वजवाहक जंगगढ़ सिंह श्याम ने कला रूप को इतना लोकप्रिय बना दिया। उन्होंनेइस‌‌ कला के रूप को पुनर्जीवित किया और उसे नई ऊंचाइयों पर ले गए। वह अपने काम के लिए कैनवास और कागज का इस्तेमाल करने वाले पहले गोंड कलाकार भी थे।

उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संग्रहालयों में अपनी पेंटिंग का प्रदर्शन किया और इस प्रकार कला को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त करवाया और इसे प्रसिद्ध बना दिया। मूल रूप से गोंड कला में उपयोग किए जाने वाले रंग प्राकृतिक संसाधनों जैसे गाय के गोबर, पौधे के रस, लकड़ी का कोयला, रंगीन मिट्टी, मिट्टी, फूल, पत्ते आदि से प्राप्त होते हैं, लेकिन आजकल कलाकार सिंथेटिक रंगों जैसे ऐक्रेलिक रंग, जल रंग, तेल पेंट, का उपयोग करते हैं।

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