क्या है भारतीय संविधान और उसका इतिहास ?

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26 Nov 2023
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भारतीय संविधान भारत के लोकतंत्र का आधार है। यह भारत के नागरिकों को अधिकार, स्वतंत्रता और न्याय प्रदान करता है।

भारत का संविधान मौलिक राजनीतिक सिद्धांतों, प्रक्रियाओं, मानदंडों, व्यक्तिगत अधिकारों, सरकारी प्राधिकरण और जिम्मेदारियों को आकार देने में देश में सर्वोच्च अधिकार रखता है।

यह संवैधानिक सर्वोच्चता स्थापित करता है, इसे संसदीय सर्वोच्चता से अलग करता है, क्योंकि इसे अकेले संसद द्वारा नहीं बनाया गया था, बल्कि एक संविधान सभा द्वारा बनाया गया था और लोगों द्वारा अनुमोदित किया गया था, जैसा कि इसकी प्रस्तावना में स्पष्ट है। इसका मतलब यह है कि भारतीय संसद Indian parliament इसके प्रावधानों का उल्लंघन नहीं कर सकती।

भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा संविधान है, जिसमें 395 अनुच्छेद हैं, जो 22 खंडों में विभाजित हैं और 8 अनुसूचियां शामिल हैं। इसमें लगभग 145,000 शब्द हैं, जो विश्व स्तर पर दूसरे सबसे बड़े सक्रिय संविधान के रूप में रैंकिंग करता है।

वर्तमान में, भारतीय संविधान में एक प्रस्तावना, 25 खंड शामिल हैं जिनमें 12 अनुसूचियाँ, 5 परिशिष्ट, 448 लेख शामिल हैं, और इसमें 101 संशोधन हुए हैं।

भारतीय संविधान का इतिहास History of Indian Constitution एक लंबा और जटिल है। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भारत के लोकतंत्र के विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

इस ब्लॉगपोस्ट में, हम देखेंगे कि भारतीय संविधान कैसे बना और कैसे यह आज के दिन के लिए हमारे देश के संरचनात्मक भविष्य की मूल नींव है।

 

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इतिहास हमेशा तारीख़ और अनुमानित दस्तावेजों का पाबंद रहा है। ज़ाहिर सी बात है, जब हमनें आज़ादी के बारे में सोचा होगा तो वह 1857 के किसी एक तारीख को नहीं शुरू हुई होगी। आवाज़ 1857 के पहले भी उठे होंगे, विद्रोह उससे पहले भी हुए होंगे, लेकिन जब भी हम इतिहास के पन्ने पलटेंगे तब हमें 1857 इसवीं को ही पहला स्वाधीनता संग्राम जानने को मिलेगा। 15 अगस्त 1947 को ही स्वाधीनता दिवस Independence day मनाया जाता है।

जब हम कहते हैं कि मनाया जाता है, तो हम 14 अगस्त तक भी आज़ाद थे, लेकिन तारीख हमने 15 अगस्त को चुना, क्योंकि उसी दिन आगामी प्रधानमंत्री के द्वारा स्वतंत्रता का बिगुल पूरे देश में बजने के बाद ही हमने यह सुनिश्चित किया कि हम अब पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं।

ज़ाहिर सी बात है, स्वतंत्रता के बाद ही हर किसी के मन में विचार उत्पन्न हुए होंगे कि अब इस देश को अंग्रेजों के जाने के बाद किस तरह से संचालित किया जाए?

जिसके चलते 29 अगस्त 1947 को एक कमेटी गठित की गयी, काफी विचार-विमर्श के बाद हमनें 26 नवंबर1949 को संविधान को अपनाया था लेकिन इसे गणराज्य दिवस के रुप में लागू हमने 26 जनवरी 1950 को किया।

सोचने वाली बात तो यह है कि ये तारीख इतनी महत्वपूर्ण क्यों है? हम इसी दिन क्यों जश्न मनाते हैं? क्यों हम 26 नवंबर 1949 को हर साल संविधान दिवस मनाते हैं? जबकि विचार तो पहले से ही उत्पन्न हुए थे और बदलाव तो आज भी होते ही हैं। 

जब विचार विमर्श के बाद हमारा संविधान बन कर पूरा तैयार हुआ तो यह 26 नवंबर को ही सभा में प्रस्तुत किया गया और इसी दिन इसे भारत के संविधान के रूप में स्वीकार कर लिया गया। यही कारण है की हम इस दिन को संविधान दिवस Constitution Day के रूप में मनाते हैं।

इतिहास के परीक्षाओं में प्रश्न भी कुछ तिथि के हिसाब से पूछे गए हैं। क्योंकि तारीख तथ्य का काम करती है। हमारा संविधान भी लिखित मांगता है और उसे प्रमाण की ज़रूरत है इसलिए इतिहास में तारीख और सन का महत्व है।

भारतीय संविधान का इतिहास History of Indian Constitution

संविधान का इतिहास अगर देखा जाये तो उसकी शुरुआत संग्रामियों के दिमाग में सपने जैसा रहा होगा। अपना देश अपना कानून अपना संविधान, जब यह सपना हकीकत में तब्दील हुआ तो सोचिये उस वक़्त क्या मंजर रहा होगा, हम आज भी उस गर्व का अनुभव कर सकते हैं।

इतिहास के पन्ने भी कम पड़ जायेंगे, किताबे कम पड़ जाएँगी, लेखक के शब्द कम पड़ जायेंगे लेकिन हर एक संग्रामियों के नाम नहीं शामिल हो पाएंगे। कितने लोगों ने अपना खून पानी की तरह बहा दिया, कितनी माताओं ने अपने बेटे को शहीद होते देख आंसू नहीं बहाये बल्कि गर्व किया।

हम जितना इस इतिहास में डूबते जायेंगे इस सागर की गहराई और बढ़ती जाएगी। इस बात को हम रवींद्रनाथ के उस कथन से अनुभव कर सकते हैं, जब उन्होंने कहा कि " मैं अभी तक कुछ जान ही नहीं पाया और जाने का समय भी हो गया। 

हम जब संविधान की बात करते हैं तो, इतिहास में अंकित तिथि 29 अगस्त 1947 सर्वप्रथम ज़हन में आता है, जब हमारे देश के संचालक इस सपने को हकीक़त बनाने के लिए सबसे पहला कदम उठा रहे थे।

संविधान का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता और समाजसुधारक डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर Dr. Babasaheb Ambedkar को सौंपी गयी। बाबा साहेब की अध्यक्षता में एक प्रारूप कमेटी का गठन किया गया, जिसे संविधान का ड्राफ्ट बनाकर पेश करने में करीब तीन साल लगे। लगभग तीन साल बाद यानी 1949 में तारीख़ 26 नवंबर को संविधान सभा Constituent Assembly में कमेटी के अध्यक्ष द्वारा संविधान का पहला ड्राफ्ट पेश किया गया।

इसलिए हम तब से लेकर आजतक हर साल 26 नवंबर को ही संविधान दिवस मानते हैं। वैसे तो इस दिन को हमने इसे आधिकारिक रूप से राजपत्र अधिसूचना के ज़रिये 2015 में स्वीकार किया था। यह दिन हमने इसलिए चुना क्योकि अभी तक जो हमारे विचारों में था, अब वह लिखित हो चुका था और प्रमाण में तब्दील हो चुका था।

हमने संविधान को अपनाया, देश को विकास की ओर बढ़ाया, अंग्रेज़ो के नियम कानून को हटाकर हमने अपना कानून बनाया। वैसे तो संसद में संविधान बनाने की पहल 11 दिसंबर1947 को ही कर दी गयी थी।  

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भारतीय संविधान कब अस्तित्व में आया ? When did the Indian Constitution come into existence?

दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र को अब उसके संविधान का प्रारूप मिल चुका था, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया। हम स्वतंत्र तो 15 अगस्त 1947 को ही हो गए थे, परन्तु पूर्ण स्वराज हमें तब मिला जब हमने देश को संचालित करने के लिए संविधान को पूरे देश में लागू कर देश को गणतंत्र कर दिया, इसलिए इस दिन हम पूर्ण स्वराज्य मनाते हैं, जिसकी घोषणा देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद First President Dr. Rajendra Prasad ने 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाने के रूप में की थी।

72 साल से हम गणराज्य हैं, हम समयानुसार और सुविधानुसार संविधान में बने कानूनों में बदलाव करते आये हैं। संविधान में अभी तक लगभग 100 से ऊपर संशोधन किये जा चुके हैं। हमारा संविधान भविष्य की सारी आशंकाओं को संज्ञान में लेकर बनी हैं।

इसलिए यह काफी लचीला है, इसे सुविधा अनुसार हम तब्दील कर सकते हैं। दुनिया के सबसे लम्बे लिखित संविधान के साथ हम अब पूर्णत; आज़ाद हैं। संविधान को अपनाने के बाद, भारत संघ समकालीन और आधुनिक भारत गणराज्य Republic of India बन गया

भारत का विभाजन एवं संविधान  Partition and Constitution of India

भारत विविधतओं वाला देश है, मत में कभी सहमत तो कभी असहमत। हम बहुमत को मानने वाले देश हैं। हम अनेकताओं से पूर्ण फिर भी एकता में विश्वास करने वाले देश के रूप में जब आज़ाद हुए थे तब हम एक थे। लेकिन फिर विचारों का भेद इस कदर बढ़ गया कि देश के टुकड़े करने जैसी नौबत आन पड़ी।

यह बात 1947 की है, अभी हम आज़ाद हुए थे लेकिन हमारे अंदर के कलह ने हमें बटने पर मजबूर कर दिया। यह काम भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत किया गया, जो यूनाइटेड स्टेट के संसद में पारित किया गया था। यह ब्रिटिश सरकार British Government द्वारा सबसे महत्वपूर्ण और अंतिम अधिनियम था।

माउंटबेटन योजना Mountbatten plan के तहत 15 अगस्त को एक विभाजन किया गया। जिसमें भारत संघ अधिराज्य का निर्माण किया गया और 14 अगस्त को पाकिस्तान अधिराज्य का निर्माण किया गया।

उसके बाद अंग्रेज शासन वाले भारत में एक और विभाजन हुआ जिसमें बंगाल प्रान्त को पूर्वी पाकिस्तान में तब्दील कर दिया गया, जो अब बांग्लादेश है और अब अलग देश है और वह भारत का हिस्सा नहीं है। बंगाल राज्य बाँटने के बाद पश्चिम बंगाल बन गया।

जो कि भारत के नक्शे में पूर्व की तरफ आता है। इसी तरह उस समय पंजाब प्रान्त को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त और भारत के पंजाब राज्य में बाँट दिया गया। पहले सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) भारत के ही राज्य थे लेकिन उसे भी देश से अलग किया गया। वैसे इसे भारत के विभाजन के इतिहास में शामिल नहीं किया जाता है।  

भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएं  Main features of Indian Constitution

यहां भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं का विस्तृत विवरण दिया गया है:

भारतीय संविधान एक व्यापक और जटिल दस्तावेज़ है जो कई प्रकार की विशेषताओं और सिद्धांतों का प्रतीक है। भारतीय संविधान की कुछ प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं:

संविधान की प्रस्तावना Preamble to the Constitution :

संविधान एक प्रस्तावना से शुरू होता है जो न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सहित राष्ट्र के उद्देश्यों और आदर्शों को रेखांकित करता है।

एकात्मक पूर्वाग्रह के साथ संघीय प्रणाली Federal System with Unitary Bias :

भारत सरकार की एक संघीय प्रणाली का पालन करता है जहां शक्तियां केंद्रीय (संघ) सरकार और राज्य सरकारों के बीच विभाजित होती हैं। हालाँकि, आपातकाल के समय संविधान एकात्मक प्रणाली की ओर झुकता है।

संसदीय लोकतंत्र Parliamentary Democracy :

भारत एक संसदीय लोकतंत्र के रूप में कार्य करता है जहां कार्यकारी शाखा (प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद) विधायिका (संसद) से ली जाती है। राष्ट्रपति राज्य का नाममात्र प्रमुख होता है।

धर्मनिरपेक्ष राज्य Secular State :

भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता को स्थापित करता है, धार्मिक मामलों में राज्य की तटस्थता और किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।

मौलिक अधिकार Fundamental Rights :

संविधान अपने नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है, जिसमें समानता का अधिकार, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार शामिल है।

राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत Directive Principles of State Policy :

ये सिद्धांत लोगों के कल्याण, सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता को बढ़ावा देने वाले कानून और नीतियां बनाने में राज्य का मार्गदर्शन करते हैं।

मौलिक कर्तव्य Fundamental Duties :

संविधान में नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्य शामिल हैं, जो देश और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारियों पर जोर देते हैं।

स्वतंत्र न्यायपालिका Independent Judiciary :

भारत में संविधान की व्याख्या और उसे कायम रखने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका है। सर्वोच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायिक निकाय है।

एकल नागरिकता Single Citizenship :

कुछ संघीय प्रणालियों के विपरीत, भारत में एकल नागरिकता है, जिसका अर्थ है कि देश का प्रत्येक नागरिक संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश का नागरिक भी है।

संशोधन प्रक्रिया Amendment Procedure :

संविधान बदलती परिस्थितियों के अनुकूल एक विस्तृत संशोधन प्रक्रिया प्रदान करता है। कुछ प्रावधानों के लिए संशोधनों के लिए संसद के दोनों सदनों या संविधान सभा के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।

सीटों का आरक्षण Reservation of Seats:

संविधान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों सहित सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों के लिए शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में सीटों के आरक्षण की अनुमति देता है।

स्वतंत्र निकाय Independent Bodies : पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और संघ लोक सेवा आयोग जैसे कई स्वतंत्र निकाय स्थापित किए गए हैं।

मौलिक स्वतंत्रता Fundamental Freedoms: संविधान भाषण, अभिव्यक्ति, सभा, संघ और आंदोलन की स्वतंत्रता सहित विभिन्न मौलिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।

राज्यों के लिए विशेष दर्जा Special Status for States : भारत में कुछ राज्यों में विशेष प्रावधान और स्वायत्तता है, जैसे अनुच्छेद 370 (अब निरस्त) के तहत जम्मू और कश्मीर और अनुच्छेद 371 के तहत पूर्वोत्तर राज्य।

सबसे लंबा लिखित संविधान longest written constitution

संविधान दो प्रकार के होते हैं: लिखित (अमेरिकी संविधान की तरह) और अलिखित (ब्रिटिश संविधान की तरह)। भारतीय संविधान को आज तक दुनिया का सबसे लंबा और सबसे व्यापक संविधान होने का खिताब प्राप्त है। दूसरे शब्दों में कहें तो दुनिया के सभी लिखित संविधानों में भारतीय संविधान सबसे लंबा है। यह एक अत्यंत गहन, जटिल और व्यापक दस्तावेज़ है।

विभिन्न स्रोतों से लिया गया taken from various sources

भारतीय संविधान के अधिकांश प्रावधान अन्य देशों के संविधानों के साथ-साथ 1935 के भारत सरकार अधिनियम से लिए गए थे (अधिनियम के लगभग 250 प्रावधान संविधान में शामिल किए गए थे)। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने गर्व के साथ घोषणा की कि भारतीय संविधान का मसौदा "दुनिया के सभी ज्ञात संविधानों को तोड़ने" के बाद तैयार किया गया था ।

1935 के भारत सरकार अधिनियम ने संविधान के संरचनात्मक प्रावधानों के एक बड़े हिस्से की नींव के रूप में कार्य किया। क्रमशः आयरिश और अमेरिकी संविधान ने संविधान के दार्शनिक वर्गों (मौलिक अधिकार और राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत) के लिए मॉडल के रूप में कार्य किया।

ब्रिटिश संविधान ने अमेरिकी संविधान के राजनीतिक हिस्से के लिए एक प्रमुख प्रेरणा के रूप में कार्य किया, जिसमें कैबिनेट प्रशासन की धारणा और कार्यपालिका और विधायिका के बीच संबंध शामिल हैं ।

कठोरता और लचीलेपन का मिश्रण Mixture of stiffness and flexibility

संविधान दो प्रकार के होते हैं: कठोर और लचीले। अमेरिकी संविधान की तरह एक कठोर संविधान वह है जिसे एक निश्चित प्रक्रिया के माध्यम से संशोधित किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, ब्रिटिश संविधान की तरह एक लचीला संविधान वह है जिसे उसी तरह से बदला जा सकता है जैसे नियमित कानून बनाए जाते हैं।

भारतीय संविधान इस बात का विशेष उदाहरण है कि कठोरता और लचीलापन एक साथ कैसे रह सकते हैं। किसी संविधान की संशोधन प्रक्रिया यह निर्धारित करती है कि वह कठोर है या लचीली।

सरकार का संसदीय स्वरूप parliamentary form of government

भारतीय संविधान द्वारा ब्रिटिश संसदीय शासन प्रणाली को अमेरिकी राष्ट्रपति शासन प्रणाली से ऊपर चुना गया है। राष्ट्रपति प्रणाली दो अंगों के बीच शक्तियों के पृथक्करण की धारणा पर आधारित है, जबकि संसदीय प्रणाली विधायी और कार्यकारी अंगों के बीच सहयोग और समन्वय के विचार पर आधारित है। शासन का वेस्टमिंस्टर मॉडल, जिम्मेदार सरकार और कैबिनेट सरकार संसदीय प्रणाली के अन्य नाम हैं।

संसदीय प्रणाली केंद्र और राज्य दोनों में संविधान द्वारा स्थापित की गई है। इसे "प्रधान मंत्री सरकार" के रूप में जाना जाता है क्योंकि संसदीय प्रणालियों में प्रधान मंत्री का पद इतना महत्वपूर्ण हो गया है।

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