एक औरत अपने सम्पूर्ण जीवन को संघर्ष बना देती है। अपनी इच्छाओं को मारकर वह घर की खुशियों के बारे में सोचती है। कोशिश करती है कि वह सबकी इच्छा को पूर्ण कर सके। इसके बदले में वह केवल अपने लिए सम्मान और प्यार की उम्मीद रखती है।
औरत हूँ मैं, आपकी समुचित इच्छाओं और लालसा का प्याला नहीं
औरत हूँ मैं, पहले अपने इन्द्रियों को नियंत्रित करें फिर मेरे शरीर को नियंत्रित करने की कोशिश करना
औरत हूँ मैं, अपने हक़ का सबको बाँटा हैं मैंने पर खुद को बांटने का हक़ नहीं दिया है किसी को
औरत हूँ मैं, आप खुद को मेरा रक्षक कैसे कह सकते हो आपने तो मेरी उम्मीदों तक की रक्षा नहीं की
औरत हूँ मैं, माना शारीरिक क्षमता तुमसे अधिक नहीं हैं पर मुझ जितना दर्द सह नहीं पाओगे
औरत हूँ मैं, बचपन से कई कसौटी को अकेले पार किया है मैंने, मुझे अकेला छोड़ देने की धमकी मत दो
औरत हूँ मैं, आपके आँगन में खुशियों की रोशनी की है मैंने, अपनी ख्वाहिशों की बाती को जलाकर
औरत हूँ मैं, मुझे तुम्हारी बेचारी नज़रों की ज़रूरत नहीं है, इज्ज़त दे पाओ तो ही मेरी तरफ़ देखना
औरत हूँ मैं, तुम्हारे साथ और विश्वास को चाहा हैं मैंने, शक भरे प्यार और देखभाल को नहीं
औरत हूँ मैं, हाँ औरत हूँ मैं....