ग़रीबी, भुखमरी, चोरी, छिनैती(सामान छीनना), डकैती, बलात्कार, क़त्ल इत्यादि जैसे अपराध हमारी बेबुनियाद, अर्थहीन तथा घिनौनी लालसा का ही नतीजा है। आज हमारा परिवेश जिन बुराईयों से जूझ रहा है, उसके जिम्मेदार हम सब किसी न किसी कारण से अवश्य हैं। भूख को हमें अपनी बीमारी नहीं, उपचार बनाना है, ताकि हम स्वयं को और अपने वातावरण को स्वस्थ रख पाएं।
क़ुदरत ने मानव शरीर को इस प्रकार निर्मित किया है, कि उसे क्रियाशील रहने के लिए कुछ तथ्यों की आवश्यकता होती है। मानव को जीवंत रहने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। इसी कारण शायद मनुष्य के जीवन में भूख एक अहम स्थान रखती है। भोजन से व्यक्ति अपनी भूख को शांत करता है। चूंकि मनुष्य के पास स्वाद के लिए जीभ है, इसलिए हम भोजन को स्वादानुसार ढुंढ़ने लगे। पेट भरने के लिए सेवन किया गया भोजन नुकसानदेह नहीं होता, परन्तु जब हम केवल स्वाद के अनुरूप भोजन को अपने जीवन में शामिल करते हैं तो वह धीरे-धीरे हमारे लिए हानिकारक सिद्ध होने लगता है। यह तो हम सब जानते हैं कि यदि मनुष्य भोजन ना करे तो उसका जीना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव हो जाता है, परन्तु यह तथ्य भी झूठलाया नहीं जा सकता कि अधिक भूख भी नुकसानदेह होती है, यह अनेक बीमारियों को जन्म देती है, जो केवल शरीर तक सीमित नहीं रहती है। शारीरिक परिपेक्ष के साथ, मानसिक और सामाजिक कुरीतियों का जन्म भी इसी भावना के साथ होता है। यह भावना सिर्फ अपना नहीं औरों का जीवन भी संकट में डाल देती है। हमें इसके सही ढंग से मायने समझकर इसके नियंत्रण में नहीं, इसे अपने नियंत्रण में रखना है।
लालसा हमारी इच्छाओं से उत्पन्न होती है, जिन वस्तुओं से हम कोसों दूर होते हैं उन्हीं के लिए यह कामना अधिक तीव्रता से पैदा होती है। यदि हम उसे खुद पर हावी होने देते हैं, तो वह विनाश का कारण बन जाती है। हमारा मन भी अधिक विचलित इसलिए होता है, क्योंकि हम ऐसी सुख-सुविधाओं का लोभ करते हैं। समाज में पैर पसार रही कुरीतियां मनुष्य के भीतर जन्में इसी वासना रूपी भूख का नतीजा है।
असंतोष की भावना हमें एक संयमित मानव बनने से रोक देती है, जिस कारण हम ऐसे-ऐसे प्रयास करना शुरू कर देते हैं जो मानव व्यवहार के विरुद्ध होता है। हमारा एक व्यवहार यह भी रहता है कि हमें कोई भी वस्तु सरलता से मिल जाए, हमें अधिक प्रयत्न ना करना पड़े। इस विचार की वजह से अपनी लालसा को पूरा करने के लिए हमारे द्वारा अपनाए गए रास्ते हमारे वातावरण को अंधकार और निराशा की ओर ढकेलने लगते हैं। हम लोभवश अपना फ़ायदा करने के चक्कर में अन्य कई लोगों का नुक़सान करते हैं।
ग़रीबी, भुखमरी, चोरी, छिनैती(सामान छीनना), डकैती, बलात्कार, क़त्ल इत्यादि जैसे अपराध हमारी बेबुनियाद, अर्थहीन तथा घिनौनी लालसा का ही नतीजा है। आज हमारा परिवेश जिन बुराईयों से जूझ रहा है, उसके जिम्मेदार हम सब किसी न किसी कारण से अवश्य हैं। जब एक व्यक्ति अपनी क्षुधा (भूख) को शांत करने के लिए गलत रास्ते की ओर चलता है तथा अपनी मंजिल को आसानी से पा जाता है, तो यह हम सबके लिए दुर्भाग्यपूर्ण और लज्जापूर्ण बात है। हम केवल अपने बारे में सोचते हैं। अपनी भूख को शांत करना हमें प्रथम दायित्व नज़र आता है। मनुष्य व्यवहार तो नहीं बदल सकता, परन्तु अपनी कामना पर नियंत्रण अवश्य रख सकता है। भूख को हमें अपनी बीमारी नहीं, उपचार बनाना है, ताकि हम स्वयं को और अपने वातावरण को स्वस्थ रख पाएं।