डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर एक महान विधिवेता, अर्थशास्त्री और समाज सुधारक थे, जिन्होंने आधुनिक भारत की लोकतांत्रिक नींव रखने में सबसे अहम भूमिका निभाई थी। उन्हें ‘भारतीय संविधान के जनक’ के रूप में जाना जाता है।
डॉ. अंबेडकर ने अपना पूरा जीवन समाज के हर वर्ग, खासकर वंचितों और कमजोरों के लिए न्याय, समानता और सम्मान सुनिश्चित करने के लिए समर्पित कर दिया था।
भारत 14 अप्रैल 2025 को डॉ. बी. आर. अंबेडकर जयंती Dr. B. R. Ambedkar Jayanti मना रहा है। इस खास मौके पर हम उनके महान कार्यों को याद करते हैं। उनकी सोच आज भी सामाजिक न्याय, समानता और संवैधानिक मूल्यों के लिए चल रहे आंदोलनों को प्रेरित करती है, सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में।
डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी का नेतृत्व किया और भारतीय संविधान में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे मूल सिद्धांतों को शामिल किया। उनका सपना एक ऐसा भारत बनाना था, जहाँ हर नागरिक को बराबरी का हक मिले और कोई भी भेदभाव न हो।
यह लेख डॉ. अंबेडकर के प्रारंभिक जीवन, उनके कानून ज्ञान, संविधान निर्माण में उनकी भूमिका और उनकी लोकतांत्रिक सोच के वैश्विक प्रभाव को समझाने का प्रयास है।
अंबेडकर जयंती 2025 हमें यह सोचने का अवसर देती है कि हम उनके बताए रास्ते पर कितना आगे बढ़ पाए हैं और आगे कितनी दूर जाना बाकी है, ताकि हम उनके देखे हुए समान और न्यायपूर्ण भारत के सपने को पूरा कर सकें।
15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजों से आज़ादी मिली। इसके बाद देश को एक ऐसा लोकतांत्रिक ढांचा देने की ज़रूरत थी जो विविधताओं से भरे भारत को एक सूत्र में बांध सके। इसी उद्देश्य से एक संविधान सभा का गठन किया गया। इस सभा ने देश का संविधान तैयार किया जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इसी दिन भारत एक गणराज्य बना।
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर एक समाज सुधारक, न्यायविद और अर्थशास्त्री थे। उन्हें संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी (संविधान मसौदा समिति) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। कानून का गहरा ज्ञान, सामाजिक न्याय की भावना और अंतरराष्ट्रीय सोच के कारण डॉ. अंबेडकर ने एक समावेशी और लोकतांत्रिक संविधान तैयार करने में अहम भूमिका निभाई।
संविधान मसौदा समिति का गठन भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए किया गया था। इसमें कुल 7 सदस्य थे। इस समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अंबेडकर थे। नीचे सभी सदस्यों की सूची और उनकी प्रमुख भूमिकाएं दी गई हैं:
डॉ. बी.आर. अंबेडकर – अध्यक्ष (भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता)
पंडित जवाहरलाल नेहरू – सदस्य (भारत के पहले प्रधानमंत्री)
सरदार वल्लभभाई पटेल – सदस्य (भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री)
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद – सदस्य (भारत के पहले शिक्षा मंत्री)
के.एम. मुंशी – सदस्य (कानूनी विशेषज्ञ और राजनेता)
एम. अनंतसयनम अयंगार – सदस्य (मद्रास प्रेसीडेंसी से राजनेता)
टी.टी. कृष्णमाचारी – सदस्य (भारतीय सिविल सेवा अधिकारी और राजनेता)
इस समिति ने संविधान का मसौदा तैयार किया और 26 नवंबर 1949 को यह रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इसे 26 जनवरी 1950 को आधिकारिक रूप से लागू किया गया।
भारतीय संविधान को तैयार करने की प्रक्रिया में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन लगे थे। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई थी। इसके बाद, संविधान 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। यही दिन भारत के गणराज्य बनने का प्रतीक बना।
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों की नींव रखी। उन्होंने समानता, स्वतंत्रता और न्याय को संविधान का मूल आधार बनाया। उनका योगदान आज भी भारतीय कानून और समाज को दिशा देता है और वे भारत के लोकतांत्रिक विकास में एक केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।
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डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू (अब मध्यप्रदेश में) एक दलित परिवार में हुआ था। बचपन में उन्हें जातिगत भेदभाव का गहरा अनुभव हुआ, जिसने उनके विचारों को प्रभावित किया और सामाजिक न्याय व समानता के लिए संघर्ष की प्रेरणा दी।
उनकी प्रतिभा को देखते हुए बड़ौदा के महाराजा ने उन्हें छात्रवृत्ति दी, जिससे वे अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने गए। वहां उन्होंने अर्थशास्त्र में एम.ए. और पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की। वहां की आज़ादी और सामाजिक आंदोलन की सोच ने उनके विचारों को और प्रगतिशील बनाया।
इसके बाद वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (LSE) में पढ़े और वहां से डी.एससी. (अर्थशास्त्र) की डिग्री प्राप्त की। साथ ही ग्रेज़ इन से बैरिस्टर की ट्रेनिंग भी ली। यह शिक्षा उन्हें एक अद्वितीय बौद्धिक दृष्टिकोण देती है।
पढ़ाई के दौरान अम्बेडकर ने अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप की कानूनी और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का गहराई से अध्ययन किया। वे अमेरिकी संविधान और उसमें दिए गए नागरिक अधिकारों से बहुत प्रभावित थे।
पश्चिमी लोकतंत्रों में अपनाए गए स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे आदर्शों ने डॉ. अम्बेडकर को काफी प्रभावित किया। उन्होंने ऐसे भारत की कल्पना की जहां हर नागरिक को समान अधिकार और सम्मान मिले, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या वर्ग से हो।
1947 में भारत को आज़ादी मिलने के बाद देश को एक ऐसे संविधान की ज़रूरत थी जो लोकतांत्रिक भारत को सही दिशा दे सके। इसके लिए 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया। इसमें अलग-अलग क्षेत्रों, समुदायों और विचारधाराओं के प्रतिनिधि शामिल थे।
यह काम बहुत बड़ा था क्योंकि भारत विविधताओं से भरा देश है। इस संविधान का उद्देश्य था – सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे का अधिकार देना।
29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने डॉ. भीमराव अंबेडकर को संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया।
हालाँकि वे एक अनुसूचित जाति से थे और जीवन भर सामाजिक भेदभाव का सामना किया था, फिर भी उनका ज्ञान, कानून और राजनीति में अनुभव, और न्याय के प्रति समर्पण उन्हें इस ज़िम्मेदारी के लिए सबसे उपयुक्त बनाता था।
डॉ. अंबेडकर ने दुनिया के कई देशों के संविधान का गहराई से अध्ययन किया था। उनका सोचने का तरीका स्पष्ट, तर्कसंगत और सबको साथ लेकर चलने वाला था। उन्हें यह ज़िम्मेदारी देना, संविधान सभा द्वारा उनके ज्ञान और सामाजिक समर्पण को सम्मान देने जैसा था।
अध्यक्ष बनने के बाद दिए गए अपने भाषण में डॉ. अंबेडकर ने इस ज़िम्मेदारी को एक सम्मान और चुनौती दोनों बताया।
उन्होंने कहा कि भारत जैसे विविध देश का संविधान बनाना आसान नहीं है। लेकिन उनका सपना था कि यह संविधान सभी नागरिकों के लिए बराबरी, आज़ादी और सम्मान का आधार बने।
उन्होंने ज़ोर दिया कि केवल राजनीतिक आज़ादी काफी नहीं, हमें सामाजिक और आर्थिक समानता भी चाहिए। वे एक ऐसे भारत की कल्पना कर रहे थे जहाँ हर व्यक्ति को बराबर अधिकार और अवसर मिलें।
डॉ. भीमराव अंबेडकर व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्याय के बड़े समर्थक थे। उन्होंने भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को अहम स्थान दिया। ये अधिकार हर नागरिक को भाषण, धर्म, विचार और कानून के सामने समानता का अधिकार देते हैं। डॉ. अंबेडकर ने खासतौर पर अल्पसंख्यकों और वंचित वर्गों के अधिकारों की रक्षा पर ज़ोर दिया और उनके खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित की।
डॉ. अंबेडकर ने संविधान में ऐसे दिशा-निर्देश जोड़े जो सरकार को एक कल्याणकारी राज्य बनाने की प्रेरणा देते हैं। ये तत्व न्याय, समानता और संसाधनों के समान वितरण को बढ़ावा देते हैं। उनका मानना था कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता काफी नहीं है, आर्थिक न्याय भी जरूरी है। इसलिए उन्होंने सरकार की यह नैतिक जिम्मेदारी बताई कि वह गरीबों और पिछड़ों को ऊपर उठाने के लिए काम करे।
डॉ. अंबेडकर ने जीवनभर जातिवाद के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता को अपराध घोषित करवाया। यह कदम भारत को एक समावेशी समाज बनाने की दिशा में बड़ा बदलाव था। इसके साथ ही उन्होंने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए शिक्षा, नौकरी और राजनीति में आरक्षण की व्यवस्था लागू की।
डॉ. अंबेडकर ने भारत के लिए एक संघीय प्रणाली की कल्पना की जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा हो। लेकिन उन्होंने यह भी माना कि देश की विविधता और एकता की चुनौतियों को देखते हुए केंद्र सरकार को मजबूत होना चाहिए ताकि देश की अखंडता बनी रहे। फिर भी, राज्यों को भी स्थानीय मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से काम करने का अधिकार दिया गया।
डॉ. अंबेडकर महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के बड़े पक्षधर थे। उन्होंने विवाह, संपत्ति और नागरिक अधिकारों में महिलाओं की समान भागीदारी की वकालत की। उन्होंने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का समर्थन किया और कहा कि सामाजिक न्याय सिर्फ जाति तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि महिलाओं के अधिकारों की भी रक्षा करनी चाहिए।
डॉ. भीमराव अंबेडकर के लिए लोकतंत्र सिर्फ एक राजनीतिक व्यवस्था नहीं थी, बल्कि यह एक नैतिक और सामाजिक आदर्श था। उनके अनुसार लोकतंत्र एक ऐसी जीवनशैली है जो हर व्यक्ति को सम्मान, भागीदारी और गरिमा देने का काम करती है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, वर्ग या लिंग से हो।
अंबेडकर मानते थे कि राजनीतिक लोकतंत्र — जिसमें नागरिकों को वोट देने और अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार होता है — तभी टिक सकता है जब समाज में सामाजिक और आर्थिक समानता हो। अगर समाज और अर्थव्यवस्था में असमानता बनी रहती है, तो लोकतंत्र का असली रूप कभी साकार नहीं हो सकता।
अंबेडकर का लोकतंत्र का विचार तीन मूल सिद्धांतों पर आधारित था — स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व। ये सिद्धांत उन्हें फ्रांसीसी क्रांति से प्रेरणा लेकर मिले थे और वे मानते थे कि एक सच्चे लोकतांत्रिक समाज के लिए ये बेहद जरूरी हैं।
स्वतंत्रता (Liberty) — हर व्यक्ति को सोचने, बोलने, विश्वास रखने और कार्य करने की आज़ादी होनी चाहिए।
समानता (Equality) — किसी के साथ भेदभाव न हो और सभी को समान अधिकार व अवसर मिलें।
बंधुत्व (Fraternity) — सभी लोगों के बीच भाईचारे और आपसी सम्मान की भावना होनी चाहिए, जो भारत जैसे विविध देश के लिए जरूरी है।
अंबेडकर ने कहा था कि ये सिद्धांत केवल कानूनों तक सीमित न रहें, बल्कि लोगों की सोच और व्यवहार का भी हिस्सा बनें।
डॉ. अंबेडकर हमेशा सामाजिक न्याय और एकता की बात करते थे। संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में उन्होंने चेतावनी दी थी:
“हमें अपने राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र बनाना होगा। राजनीतिक लोकतंत्र तब तक टिक नहीं सकता, जब तक उसकी नींव में सामाजिक लोकतंत्र न हो।”
इस कथन से साफ है कि अंबेडकर चाहते थे कि भारत में लोकतंत्र केवल कागज़ पर न रह जाए, बल्कि आम लोगों के जीवन में भी उसकी भावना झलके।
भारतीय संविधान बनाने के दौरान डॉ. भीमराव आंबेडकर को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। संविधान सभा में आरक्षण, अल्पसंख्यकों के अधिकार और धर्म की भूमिका जैसे मुद्दों पर काफी बहस और विरोध हुआ।
कुछ लोग मानते थे कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए विशेष प्रावधान देश को बांट सकते हैं। वहीं, कुछ लोग इन्हें ज़रूरी सुधार मानते थे जो सदियों से हो रहे भेदभाव को खत्म करने में मदद कर सकते थे।
इसके अलावा, समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code), भाषा नीति और केंद्र सरकार की ताकत जैसे विषयों पर भी कई मतभेद थे। कई धार्मिक और भाषाई समूह अपनी पहचान की रक्षा के लिए विशेष अधिकार चाहते थे, जिससे सभी के बीच सहमति बनाना कठिन हो गया था।
इन सभी चुनौतियों के बीच डॉ. आंबेडकर ने बहुत धैर्य और समझदारी से काम लिया। वे अक्सर शांत और तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात रखते थे और अंतरराष्ट्रीय उदाहरणों के ज़रिए अपने प्रस्तावों को सही साबित करते थे।
उन्होंने हमेशा लोकतांत्रिक बातचीत पर ज़ोर दिया और हर सदस्य से यह अपील की कि वे व्यक्तिगत या जातीय हितों से ऊपर उठकर देश की भलाई के बारे में सोचें।
भले ही उन्हें कई विचारधाराओं का विरोध झेलना पड़ा, लेकिन उन्होंने सामाजिक न्याय पर अपनी बात मजबूती से रखी और सुनिश्चित किया कि संविधान सभी नागरिकों को समानता और गरिमा का अधिकार दे।
डॉ. आंबेडकर का भारत की कानूनी और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गहरा असर है। उन्होंने एक ऐसा संविधान तैयार किया जिसने भारत को एक संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष और समावेशी राष्ट्र बनाया।
उनकी सोच केवल कानून तक सीमित नहीं थी, उन्होंने समाज के वंचित वर्गों के लिए आरक्षण और भेदभाव विरोधी कानूनों के ज़रिए सामाजिक न्याय की व्यवस्था की।
इन उपायों की वजह से आज शिक्षा, नौकरी और राजनीति में दलितों और पिछड़े वर्गों की आवाज़ को जगह मिली है।
डॉ. आंबेडकर को उनकी महान सेवाओं के लिए 1990 में भारत रत्न से नवाज़ा गया। हर साल 14 अप्रैल को उनका जन्मदिन ‘आंबेडकर जयंती’ के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है।
उनकी याद में देशभर में अनेक प्रतिमाएं और स्मारक बनाए गए हैं, जिनमें महाराष्ट्र में स्थित ‘Statue of Equality’ शामिल है।
उनके नाम पर कई विश्वविद्यालय और संस्थान हैं, जैसे डॉ. बी.आर. आंबेडकर विश्वविद्यालय, जो उनके योगदान को हमेशा याद दिलाते हैं।
डॉ. आंबेडकर के समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया है।
उन्होंने जातिगत भेदभाव के खिलाफ जो संघर्ष किया, उसे दुनिया भर के मानवाधिकार संगठन और विशेषज्ञ सम्मान के साथ देखते हैं।
यूके, अमेरिका और जापान जैसे देशों में उनके नाम से कार्यक्रम और स्मारक हैं, जो उन्हें एक वैश्विक समाज सुधारक के रूप में पहचान दिलाते हैं।
"किसी भी समाज की प्रगति उस समाज में महिलाओं की स्थिति से मापी जा सकती है।"
"The progress of any society can be measured by the status of its women."
"हम सबसे पहले और अंत में इस देश के नागरिक हैं।"
"We are Indians, firstly and lastly."
"शिक्षा वह शस्त्र है जिससे आप दुनिया को बदल सकते हैं।"
"Education is the weapon through which you can change the world."
"जो व्यक्ति अपने अधिकारों के लिए खड़ा नहीं होता, वह उनका हकदार नहीं होता।"
"A person who does not stand for his rights does not deserve them."
"जीवन लंबा नहीं, महान होना चाहिए।"
"Life should not be long, but meaningful."
"मनुष्य नश्वर है. उसी तरह विचार भी नश्वर हैं. एक विचार को प्रचार-प्रसार की आवश्यकता होती है, जैसे कि एक पौधे को पानी। नहीं तो दोनों मुरझा जाते हैं और मर जाते हैं।"
"Man is mortal. So are ideas. An idea needs propagation as much as a plant needs watering. Otherwise, both will wither and die."
"यदि हम एक संयुक्त भारत चाहते हैं, तो सभी को समान अवसर और समान अधिकार देने होंगे।"
"If we want a united India, everyone must have equal opportunities and rights."
डॉ. भीमराव अंबेडकर का भारतीय संविधान के निर्माण में योगदान न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की नींव का प्रतीक भी है। उन्होंने न केवल समाज के वंचित वर्गों की आवाज को संविधान में स्थान दिया, बल्कि समानता, स्वतंत्रता और न्याय जैसे मूल सिद्धांतों को भी संविधान का आधार बनाया।
उनकी दूरदर्शिता और गहन अध्ययन ने भारत को एक प्रगतिशील, समावेशी और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। डॉ. अंबेडकर ने यह सुनिश्चित किया कि हर नागरिक को उसके अधिकार मिलें और कोई भी जाति, धर्म या लिंग के आधार पर भेदभाव का शिकार न हो।
उनका विचार था कि संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का साधन होना चाहिए। आज भी उनके विचार और योगदान भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने को दिशा प्रदान करते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।