उम्मीद हमेशा उन्हीं लोगों से की जाती है जो या तो अपने हों या फिर हमें यह विश्वास हो कि हमें सामने वाले से मदद मिल जाएगी। यदि हम इसमें सक्षम हैं कि हम सामने वाले की उम्मीद बन रहे हैं तो हमें इस बात पर गर्व करना चाहिए।
उम्मीद भी ना जाने कौन सा भाग्य लेकर इस दुनिया में है,
कभी भी, किसी के भी संग जुड़ जाती है,
पर कौन-कौन इसे अपनाएगा,
इसकी खबर इसको कहाँ रहती है।
कभी इस डगर से गुजरती;
कभी उस कूचे की बटोही बनती,
कभी इस खिड़की से झांकती;
कभी उस घर में बसेरा करती,
इसका ठौर-ठिकाना है भी या नहीं?
ढूंढती रहती है प्रबंध, पर कौन जुड़े?
कौन कहे, तुम रह सकती हो मेरे घर,
मैं रखूं तुम्हें संभल, पूरे करूँ हर ख़्याल।
कहे कोई रोककर तुमसे;
आओ थोड़ा आराम करो,
मन की दौड़ को अभी थोड़ा शांत करो।
ढाढस दे अमुक;
रुको अब' अपनी महिमा को नाम दो,
मैं समझती हूँ तुम्हें;
उन्हीं आशियानों को तुम तकती हो,
दिल से रिश्ते का धागा जिनसे तुम बांधती हो।
तुम नहीं कोई सरफिरी मुसाफिर हो, तुम नहीं कोई सरफिरी मुसाफिर हो।
उम्मीद चलो तुम यूँ ही, हर पहर, हर डगर, हर शहर,
आशा का लिए मन में एक वृहद् शज़र।