घनश्याम दास बिड़ला - भारत के महान उद्योगपति

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09 Apr 2022
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भारत के सबसे बड़े औद्योगिक ग्रुप बी. के. के. एम. बिड़ला समूह के बारे में तो आपने ज़रूर सुना होगा। घनश्याम दास बिड़ला जी उसके संस्थापक हैं। एक बड़े उद्योगपति होने के अलावा उन्हें आजादी की लड़ाई में अपना अप्रत्यक्ष तौर पर योगदान देने के लिए और महात्मा गांधी जी Mahatma Gandhi के मित्र, सलाहकार और प्रशंसक के तौर पर भी जाना जाता है।

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घनश्याम दास बिड़ला जी Ghanshyam Das Birla ( Indian businessman) का जन्म 10 अप्रैल,1894 को पिलानी शहर में हुआ था। उनके पिता राजा बलदेवदास बिड़ला Baldeo Das Birla थे। उन्हें पारिवारिक व्यवसाय विरासत में मिला था इसीलिए उन्होंने अन्य क्षेत्रों में महारत हासिल करने की ठानी। 

भारत के सबसे बड़े औद्योगिक ग्रुप बी. के. के. एम. बिड़ला समूह B. K. K. M. Birla Group के बारे में तो आपने ज़रूर सुना होगा। घनश्याम दास बिड़ला जी उसके संस्थापक हैं। इसके अलावा उन्हें आजादी की लड़ाई में अपना अप्रत्यक्ष तौर पर योगदान देने के लिए और महात्मा गांधी जी Mahatma Gandhi के मित्र, सलाहकार और प्रशंसक के तौर पर भी जाना जाता है। भारत सरकार ने सन् 1957 में उन्हें पद्म विभूषण Padma Vibhushan की उपाधि से भी सम्मानित किया था। वह घनश्याम दास बिड़ला जी ही थे, जिन्होंने 1927 में कुछ अन्य उद्योगपतियों के साथ मिलकर इण्डियन चैम्बर ऑफ कामर्स एंड इन्डस्ट्री Indian Chamber of commerce and industry की स्थापना की थी। 

आज भी किसी की रईसियत पर तंज़ कसने के लिए लोग ये कहना नहीं भूलते हैं कि आप कौन सा बड़े टाटा और बिड़ला के खानदान से हैं। इसमें उन्हीं बिड़ला जी का जिक्र किया गया है जिन्हें पूरी दुनिया घनश्याम दास बिड़ला यानी की जीडी बाबू G. D. Birla के नाम से जानती है। गुरचरण दास अपनी क़िताब ‘उन्मुक्त भारत’ में लिखते हैं कि मारवाड़ियों को इस देश ने उतनी इज्ज़त नहीं बख्शी, जिसके ये हकदार थे लेकिन फिर भी हिन्दुस्तान के व्यापार पर इनका कब्ज़ा था। इनमें जोखिम लेने और पैसे की जबरजस्त समझ होती है। 

घनश्याम दास बिड़ला जी का खानदानी पेशा ब्याज़ पर पैसे देना था। कम उम्र में ही उन्हें व्यापार के बारे में सीखने की तलब लगी और वह पिलानी से कोलकाता आ गए। वहां वह एक हॉस्टल में रहने लगे जहां और भी मारवाड़ी बच्चे रहते थे। वहां सभी बच्चे एक दूसरे से अनुभव साझा करते और रोज़ कुछ नया सीखते थे। मात्र 16 वर्ष की आयु में घनश्याम दास बिड़ला जी ने अपने ट्रेडिंग फर्म trading firm की शुरुआत की और जूट के बिज़नेस jute business में लग गए। वह पहले विश्व युद्ध का समय था और उस समय पटसन और कपास jute and cotton की भारी मांग थी इसी कारण इन्होंने खूब मुनाफा कमाया। पटसन के व्यापार पर एक तरह से इन्होंने अपना एकतरफ़ा कब्ज़ा कर लिया था इसीलिए अंग्रेज़ भी व्यापारी बिड़ला जी से नफरत करने लगे क्योंकि वह यूरोप के कारखानों को अच्छे दाम पर पटसन बेचा करते थे। इन्हीं सब कारणों की वजह से कई बार अंग्रेजों ने उनके व्यापार को बंद करवाने की कई कोशिशें की लेकिन उनकी समझ के आगे अंग्रेज भी नाकाम रहे। शुरुआती दौर में अंग्रेज प्रशासन ने बिड़ला के रास्ते में काफी रोड़े अटकाए थे, इसीलिए बिड़ला भी अपने दम पर स्वदेशी उद्योगों का विकास development of indigenous industries करने लगे और अपनी तरफ से अंग्रेजों को अपने काम से कड़ा जवाब देने लगे। 

अपने हौसले, मेहनत और आत्मविश्वास के दम पर उन्होंने मैन्युफैक्चरिंग में भी कदम रखा और 1917 में कोलकाता में ‘बिड़ला ब्रदर्स’ Birla Brothers नामक पहली पटसन मिल Jute mill की स्थापना की। 1939 में उनकी यही फैक्ट्री देश की तेहरवीं सबसे बड़ी निजी फैक्ट्री बन गई। इस वक्त जेआरडी टाटा JRD Tata के बारे में भी लोगों को पता लगना शुरू हो गया था। ऐसा बताया जाता है कि 1939 से 1969 में टाटा की संपत्ति 62.42 करोड़ से बढ़कर 505.56 करोड़ हो गई थी वहीं दूसरी ओर बिड़ला की संपत्ति 4.85 करोड़ से बढ़कर 456.40 करोड़ पहुंच गई थी। 

संपत्ति दोनों ही लोग बना रहे थे, लोक कल्याण दोनों ही लोग कर रहे थे लेकिन उस वक्त बिड़ला जी टाटा से कई गुना आगे थे क्योंकि टाटा की संपत्ति में करीब 8 गुना इजाफा हुआ था लेकिन बिड़ला की संपत्ति में 94 गुना इजाफा हुआ था, जो बेहद आश्चर्यजनक था। बिना किसी इतिहास और विरासत के अपना इतना नाम बनाना आसान नहीं था लेकिन उन्होंने ऐसा कर दिखाया। 

1945 में उनके पास 20 कंपनियां थी और 1962 तक उन्होंने 150 कंपनियां बना ली थीं और वो भी बिना किसी सरकारी मदद से। उस दौर में वह एक से एक बड़ी कंपनियां स्थापित किए जा रहे थे और ऐसा भी कहा जाता है कि उन्हीं के डर से एमआरटीपी MRTP act और लाइसेंस राज एक्ट License Raj Acts जैसे एक्ट लागू किए गए थे। 

वह खुद इतने महान थे और उन्होंने देश को इतना कुछ दिया लेकिन उनके बारे में ऐसा बताया जाता है कि वह अपने बारे में कम ही बात किया करते थे। 80 के दशक में उन्होंने अंग्रेजी पत्रिका को दिए गए एक इंटरव्यू में ये भी कहा था कि मैं खुद को एक व्यापारी नहीं मानता। इसके बाद उनसे ये पूछा गया कि किन लोगों ने आपको आपके जीवन में सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो बिना ज्यादा सोचे उन्होंने तुरंत उत्तर दिया- गांधीजी और विंस्टन चर्चिल। वह बताते हैं कि जब गांधी जी से वह पहली बार 1916 में मिले थे और गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के शुरुआती दौर में ही वह उनसे बेहद प्रभावित हो गए थे। आपको बता दें कि गांधी जी ने अपने जीवन के अंतिम चार महीने 'बिड़ला हाउस' Birla House में ही गुजारे थे। 

घनश्याम दास बिड़ला जी के बारे में कुछ रोचक तथ्य Some interesting facts about Ghanshyam Das Birla ji

  • राजनीति में उनकी काफी रुचि थी और उन्होंने गांधी जी के खादी आंदोलन Khadi Movement में अपना काफी समय समर्पित किया था।
  • अपनी पत्नी माहेश्वरी देवी की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने बच्चों को अपने संयुक्त परिवार की देखरेख में छोड़ दिया था। बच्चों के थोड़े बड़े होने पर उन्होंने उन्हें अपने समुदाय के अन्य व्यापारियों के मार्गदर्शन में व्यवसाय सीखने के लिए भेजा।
  • कोलकाता की जूट फैक्ट्री jute factory के पैसे से उन्होंने बिड़ला मैंशन Birla mansion बनवाया था, जिसे बिड़ला हवेली के नाम से जाना जाता है। 

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मुख्य रचनाएं

  • रुपए की कहानी
  • बापू
  • पाथ्स टू प्रोस्पेरिटी Paths to Prosperity
  • In the Shadow of the Mahatma इन द शेडो ऑफ़ द महात्मा
  • जमनालाल बजाज

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