तालों की मशहूर दुनिया

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31 Jul 2021
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कच्चे माल व ऊर्जा की सरल उपलब्ध्ता के कारण अलीगढ़ एक व्यापार कुशल केन्द्र के रूप में उभर कर आया है। अलीगढ़ के ताले पूरे विश्व में निर्यात किए जाते हैं। अंग्रजी हुकूमत ने 1880 में यहाँ छोटे पैमाने पर तालों के निर्माण का कार्य प्रारंभ किया। आज, इस शहर में हज़ारों निर्माता, निर्यातक व आपूर्तिकर्ता हैं जो पीतल, तांबा, लोहा व एल्यूमिनियम उद्योगों से जुड़े हें।

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अलीगढ़ इतिहास का वह पन्ना है, जिसकी कहानी एक दो वाक्यों में तो न ही सिमटी है न सिमटने वाली है। ताले चाबियों की बनावट ने इस शहर के कई हिस्सों को कभी खोला है, तो कभी ताला लगा दिया हो जैसे। कहने का मतलब यूँ है कि अलीगढ़ में ताला चाबी का व्यवसाय विश्व-प्रसिद्ध है। अलीगढ़ उत्तर प्रदेश का एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र है और पूरे देश में “तालों के शहर” के नाम से विख्यात है।

कच्चे माल व ऊर्जा की सरल उपलब्ध्ता के कारण अलीगढ़ एक व्यापार कुशल केन्द्र के रूप में उभर कर आया है। अलीगढ़ के ताले पूरे विश्व में निर्यात किए जाते हैं। अंग्रजी हुकूमत ने 1880 में यहाँ छोटे पैमाने पर तालों के निर्माण का कार्य प्रारंभ किया। आज इस शहर में हज़ारों निर्माता, निर्यातक व आपूर्तिकर्ता हैं, जो पीतल, तांबा, लोहा व एल्यूमिनियम उद्योगों से जुड़े हैं। ताला निर्माण की प्रक्रियाएँ विभिन्न औद्योगिक इकाइयों में पूरी की जाती हैं। अलीगढ़ में बहुत से मशहूर स्थल हैं। अलीगढ़ का किला, खेरेश्वर मंदिर व तीर्थ धाम मंगलायतन मंदिर आदि उनमें से कुछ प्रमुख हैं। 

अलीगढ़ के ताले चार तरह की धातुओं के बनाये जाते हैं, जो की ताँबा, लोहा, और एलुमिनियम का। 

पीतल का ताला- पीतल का ताला ज़्यादातर मंदिरों में लगाने के काम में लिया जाता है और बहुत बड़ी-बड़ी दुकानों में भी प्रयोग किया जाता है। वाकई इसको लोग आस्था के रूप में अधिक देखते हैं। पीतल के ताले काफी महँगे भी होते हैं। 

ताबेँ का ताला- ताँबे का ताला बनाने के लिए, ताँबा वैसे तो उत्तर प्रदेश में भी आसानी से उपलब्ध है। परन्तु आस-पास के दो राज्य जो उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र हैं। पहला तो राजस्थान और दूसरा मध्य प्रदेश दोनों ही राज्यों में ताँबे की अत्यधिक मात्रा है। जिसका भरपूर फायदा अलीगढ़ के कारीगरों को मिलता है, जिससे वह सुगमता से ताले का निर्माण कर लेते हैं तथा पूरे देश तथा पूरी दुनिया में तालों की सप्लाई करने में नंबर एक हैं। 

लोहे का ताला- वैसे तो लोहे का ताला पूरी तरह से लोहे का ताला नहीं होता क्योंकि शुद्ध लोह बारिश में ख़राब हो जाता है, तो उस पर एल्युमिनियम की परत या चादर चढा देते हैं। लोहा आपको देश के कुछ चुनिंदा राज्यों में मिल जायेगा, जिसमें पश्चिमी राज्य सम्मिलित हैं। लोहे का ताला आपको कम दाम में भी मिल जाता है। तथा इसकी बिक्री भी बहुताय होती है, इसको बनाना भी आसान है। 

एलुमिनियम के ताले- आजकल जो सबसे अधिक बिकने वाले तालें नज़र में आ रहे हैं वो हैं। एलुमिनियम के ताले एलुमिनियम धातु सबसे लम्बे समय तक चलने वाली धातु है। तथा ये बहुत महंगी भी नहीं है। इनको बनने का तरीका भी लगभग सामान ही है। ग्राहकों से इस धातु के बने ताले काफी लुभा रही है।

अभी हाल ही में सुनने में आया है कि अलीगढ़ के एक शख्स ने तो कमाल ही कर दिया, उन्होंने 300 किलो का एक ताला बनाया आइये उस पर भी एक नज़र डालते हैं। 

लॉकडाउन के दौरान ताला बनाने में जुटे रहे रुकमणि-सत्यप्रकाश भारी भरकम ताला बनाने में रुकमणि शर्मा, सत्यप्रकाश शर्मा एवं शिवराज शर्मा लॉकडाउन के समय से ही जुटे हैं। इसका आर्डर लॉकडाउन के पहले मिला था। कुछ समय के लिए व्यवधान भी आया लेकिन फिर काम में जुट गए। तीन फुट चार इंच की चाबी का वजन 25 किलोग्राम से अधिक है।

सत्यप्रकाश के पिता ने भी बनाया था भारी भरकम ताला सत्यप्रकाश शर्मा के पिता स्व. भोजराज शर्मा अपने समय के मशहूर ताला कारीगर थे। उन्होंने भी 40 किलोग्राम एवं उससे अधिक वजन के कुछ ताले बनाए थे। एक ताला कोलकाता गया था। दूसरा अलीगढ़ में है। पिता के सानिध्य में सत्यप्रकाश भी ताला बनाने लगे। यह ताला दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करेगा। यह दुनिया का सबसे बड़ा ताला होगा। यह सोचकर खुशी होती है। अलीगढ़ पूरी दुनिया में ताले के नाम से पहचाना जाता है।

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