बकरीद (Bakrid) इस्लाम धर्म में विश्वास रखने वालों के लिए खास त्योहार होता है इसे बकरा ईद, बकरीद, ईद-अल-अजहा (Eid al-Adha) भी कहा जाता है इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक बकरा ईद (Bakra Eid) का पर्व आखिरी माह जु-अल-हज्जा की 10वीं तारीख को मनाया जाता है इस बार यह पर्व 10 जुलाई, रविवार को मनाया जाएगा ईद-अल-अजहा ईद-उल-फितर (Eid-ul-Fitr) के बाद सबसे बड़ा त्योहार है, यह पर्व कुर्बानी के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। इस्लामिक कैलेंडर (Islamic Calendar) के मुताबिक हर साल दो बार ईद मनाई जाती है। एक ईद उल जुहा और दूसरा ईद उल फितर। ईद उल फितर को मीठी ईद भी कहा जाता है। इसे रमजान को खत्म करते हुए मनाया जाता है। मीठी ईद के करीब 70 दिनों बाद बकरीद मनाई जाती है।
यह बात हम सभी मानते हैं कि प्रत्येक पर्व या त्योहार के पीछे कोई परंपरागत लोक मान्यता एवं कल्याणकारी संदेश (Traditional beliefs and welfare messages) निहित होता है। इन पर्व व त्योहारों की श्रृंखला में मुस्लिम समुदाय (Muslim community) के लिए ईद का विशेष महत्व है। हम कह सकते हैं कि हिन्दुओं में जो स्थान 'दीपावली' का है, ईसाइयों में 'क्रिसमस' का है, वही स्थान मुस्लिमों में 'ईद' का है। हालांकि सबका इतिहास और कथाएं हैं। बकरीद का भी अपना इतिहास है यहां हम आपको कुर्बानीदान के इस पर्व से जुड़ी कुछ खास बातें बताएंगे। तो आइए जानते हैं क्या है बकरीद का इतिहास और कैसे मनाते हैं इस खास दिन को।
बकरीद के त्योहार का मुस्लिम धर्म में बहुत महत्व है। इस त्योहार को ईद-उल-अजहा (Eid-ul-Adha) या कुर्बानी का त्योहार भी कहा जाता है। रमजान (Ramadan) के पवित्र महीने के ठीक 70 दिन बाद बकरीद मनाई जाती है। वैसे तो बकरीद की तारीख चांद दिखने से तय होती है, लेकिन इस साल बकरीद पूरे भारत में 10 जुलाई को मनाई जाएगी।
इस दिन मुस्लिम समुदाय (Muslim community) के लोग ईदगाहों और मस्जिदों में जमात के साथ नमाज अदा करते हैं। त्योहार की शुरुआत सुबह नमाज अदा करने के साथ होती है। लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के घर भी जाते हैं और एक दूसरे को बधाई देते हैं। इसके अलावा इस दिन घर में एक से बढ़कर एक लजीज व्यंजन बनाए जाते हैं।
इस इस्लामिक त्यौहार (Islamic Festivals) के पीछे एक ऐतिहासिक तथ्य (Historical Facts) छिपा हुआ है, हजरत इब्राहीम (Hazrat Ibrahim), जिन्हें अल्लाह का बंदा माना जाता था, जिनकी इबादत पैगम्बर के तौर पर की जाती है। जिन्हें इस ओहदे से नवाजा गया उनका खुद खुदा ने इम्तहान लिया था।
अगर आप ईद-उल-अजहा यानी बकरीद के शाब्दिक अर्थ पर जाएं तो उससे ही पता चलता है कि यह कुर्बानी का त्योहार है जो अल्लाह की राह में दी जाती है। अजहा अरबी शब्द है, जिसके मायने होते हैं कुर्बानी, बलिदान, त्याग (Sacrifice) और ईद का अर्थ होता है त्योहार। इस त्योहार की पृष्ठभूमि में है अल्लाह का वह इम्तिहान जो उन्होंने हजरत इब्राहीम का लिया। हजरत इब्राहीम उनके पैगंबर (Prophet) थे। अल्लाह ने एक बार उनका इम्तिहान लेने के बारे में सोचा। उनसे ख्वाब के जरिए अपनी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी। हर बाप की तरह हजरत इब्राहीम को भी अपने बेटे इस्माइल से मोहब्बत थी। यह मुहब्बत इस मायने में भी खास थी कि हज़रत इस्माइल (Hazrat Ismail) उनके इकलौते बेटे थे और वह भी काफी वक्त बाद पैदा हुए थे। उन्होंने फैसला लिया कि इस्माइल से ज्यादा उनको कोई प्रिय नहीं है और फिर उन्होंने उनको ही कुर्बान करने का फैसला किया।
बेटे की कुर्बानी देते हुए उन्होंने अपनी आंख पर पट्टी बांध लेना बेहतर समझा ताकि बेटे का मोह कहीं अल्लाह की राह में कुर्बानी देने में बाधा न बन जाए। फिर उन्होंने जब अपनी आंख से पट्टी हटाई तो यह देखकर चौंक गए कि उनका बेटा सही सलामत खड़ा है और उसकी जगह एक बकरा कुर्बान हुआ है। तभी से बकरों की कुर्बानी का चलन शुरू हुआ। इसी वजह से इस त्योहार को बकरा ईद या बकरीद के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन बकरे (Goat) के अलावा ऊंट और भेड़ (Camels and Sheep) की भी कुर्बानी दी जा सकती है। कुर्बानी के बाद मांस को तीन भागों में बांटा जाता है।
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जिस दिन बकरीद होती है, उसी दिन हज भी होता है। जो शैतान अल्लाह का हुक्म न मानने के लिए भटक रहा था, उसी के प्रतीक को हज के तीसरे दिन पत्थर से मारने की रस्म भी होती है। इस रस्म के साथ हज पूरा माना जाता है। इस्लाम धर्म (Religion Of Islam) में जिंदगी में एक बार हज की यात्रा करना जरूरी होता है हज की यात्रा (Hajj pilgrimage) समाप्त होने के बाद ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का त्यौहार (Bakrid festival) मनाया जाता है बकरीद के त्यौहार को बड़ी ईद के नाम से भी जाना जाता है बकरीद में बकरे की कुर्बानी दी जाती है बकरे की कुर्बानी देने के बाद से इसे तीन भागो में बांटा जाता है, पहला भाग रिश्तेदारों (Relatives), दोस्तों (Friends) व आस-पास के करीबियों को दिया जाता है दूसरा हिस्सा गरीब और जरूरतमंदो को दिया जाता है और तीसरा हिस्सा परिवार के लोगों के लिए होता है
कुर्बानी का पहला नियम है कि जिसके पास 613 से 614 ग्राम चांदी हो या इतनी चांदी की कीमत के बराबर धन हो सिर्फ उन्हीं लोगों को कुर्बानी देनी चाहिए।
जो व्यक्ति पहले से ही कर्ज में हो वह कुर्बानी नहीं दे सकता है।
जो व्यक्ति अपनी कमाई में से ढाई फीसदी हिस्सा दान देता हो साथ ही समाज की भलाई के लिए धन के साथ हमेशा आगे रहता हो उसे कुर्बानी देना जरुरी नहीं है।
ऐसे पशु जिसे शारीरिक बीमारी हो, सींग या कमर का अधिकतर भाग टूटा हो और छोटे पशु की कुर्बानी नहीं दी जा सकती है।
इसके अलावा ईद की नमाज के बाद ही मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है।
बकरीद केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देशों में भी एक विशिष्ट धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक (Religious, Cultural And Spiritual) त्योहार के रूप में मनाया जाता है। 'अध्यात्म' का अर्थ है मनुष्य का खुदा से संबंधित होना है या स्वयं का स्वयं के साथ संबंधित होना इसलिए हम कह सकते हैं कि ईद मानव का खुदा से और स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का पर्व है।