शिक्षा इंसान को मानवता सिखाती है, लेकिन शिक्षा का अर्थ केवल स्कूली शिक्षा नहीं माना जाना चाहिए। इंसान तभी शिक्षित हो सकता है जब उसके अंदर उदारवाद, दया, आदि जैसे भाव हैं। उसे समाज में अपने नेक काम के लिए जाना जाता है। एक भ्रष्टाचारी, लोभी, निर्दयी मनुष्य केवल पढ़ा-लिखा हो सकता है। शिक्षित कभी भी नहीं हो सकता।
शिक्षा किसी भी समाज को जागरुक बनाने का मूल आधार है। एक शिक्षित व्यक्ति समाज में परिवर्तन ला सकता है। शिक्षा से सोचने और समझने की शक्ति में भी वृद्धि होती है। सरकारी स्कूलों की छवि पढ़ाई के मामले में धूमिल दिखाई देती है। आम-जन मजबूरी के चलते अपने बच्चे का दाखिला सरकारी स्कूल में करवातें है। लेकिन अब परिस्थितियों में सुधार होता दिखाई दे रहा है। कई सरकारी शिक्षकों ने सरकारी स्कूल की दशा को उत्तम बनाने का संकल्प लिया है। वे बच्चों को मानसिक तथा शारीरिक सभी तरह से बेहतर बनाने के निरन्तर प्रयास में लगे हुए हैं। सरकारी स्कूल की दशा को बदलने में शिक्षा नीति का भी बड़ा योगदान है। शिक्षा नीति में बदलाव के लिए बहुत शिकायतें की जा रही थीं, काफी लम्बे विचार-विमर्श के बाद केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति की घोषणा कर दी जो कि राजीव गाँधी सरकार के द्वारा 1986 में बनी शिक्षा नीति की जगह ले चुकी है। यह देश की शिक्षा व्यवस्था में व्यापक बदलाव लाते हुए 21वीं सदी के नए भारत की नींव बन गयी है। नई शिक्षा नीति से बहुत उम्मीदें है, तमाम शोधों से पता चला है कि असंतुलित आहार बच्चों के सीखने की क्षमता पर नकारात्मक असर डालता है। यूनिसेफ के प्रयास से भारत में आगनबाड़ी के माध्यम से बाल-पोषाहार और प्राथमिक विद्यालयों के लिए मध्यान्ह भोजन व्यवस्था(मिड डे मील) को शुरू किया गया है। नई शिक्षा नीति में अब बच्चों को भोजन के पहले नाश्ता देने की भी बात की गयी है। बच्चों के मानसिक विकास के पहलुओं पर ध्यान देने की वजह से व्यवस्था में सुधार आने की संभावना है।
स्कूली शिक्षा में दूसरा बड़ा बदलाव साइंस, आर्ट्स और कॉमर्स के स्ट्रीम को समाप्त करना है। अब बच्चे 11-12वीं में अपने पसंद का कोई भी विषय चुन सकते हैं। एक अन्य अहम बदलाव यह हुआ है कि संगीत, खेलकूद जैसे विषय मुख्य विषय बना दिये गये हैं। शिक्षा नीति केवल बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि शिक्षकों के लिए भी वरदान के तौर में देखी जा गयी है। सरकार अब स्कूलों में योग्य शिक्षकों की कमी पूरी करने के लिए चार वर्षिय बीए और बीएड कोर्स शुरू करेगी। नई शिक्षा नीति पुरानी शिक्षा नीति से ज्यादा कारगर साबित होने की उम्मीद इसलिए है, क्योंकि ज्यादातर राज्य भाजपा सरकार के ही हैं। जब 1986 में शिक्षा नीति लागू हुई थी तब कुछ ही समय बाद 1989 में ही कई राज्यो में विपक्षी पार्टी बननी शुरू हो गयी थीं। उन सरकारों ने उस शिक्षा नीति के अच्छे प्रावधानों को भी लागू करने से मना कर दिया था। जैसे तमिलनाडु ने नवोदय विद्यालयों को यह कह कर विरोध किया की यह हिंदी थोपने की साजिश है। इस वजह से तमिलनाडु के लाखों बच्चे नवोदय विद्यालय की गुणवत्तापुर्ण शिक्षा पाने में असफल रहे।
शिक्षा समाज को ज्ञानी और सज्जन बनाती है। एक शिक्षित समाज ही इस धरती को सार्थकता प्रदान कर सकता है। शिक्षा का अर्थ अब अंग्रेजी से तौला जाता है, ऐसा माना जाता है कि अंग्रेजी बोलने वाला व्यक्ति सर्वगुण सम्पन्न है। जबकि शिक्षित मनुष्य की परिभाषा उसके हाव-भाव, शिष्टाचार से की जानी चाहिए। कभी-कभी बहुत पढ़े-लिखे लोग भी अनपढ़ो जैसी हरकत करते हैं, अर्थात शिक्षा का अर्थ केवल स्कूली शिक्षा से नहीं मापा जा सकता, बचपन से लेकर बुढ़ापे तक ज़िन्दगी के हर मोड़ पर हम कुछ न कुछ सीखते हैं, खुद में सुधार करते हैं। व्यावहारिक, सामाजिक हर तरह से खुद का अच्छा संस्करण बनाने की चाह में सुधार करते हैं, शिक्षा हमें इंसान बनाने में साधन का कार्य करती है। हम इंसान उदारवाद के द्वारा बन सकते हैं। कॉलेज की डिग्री लेने के बावजूद कुछ लोगों के संस्कार में ही खोट होती हैं। अब सोचिये की इतनी पढ़ाई करने का मतलब वह शिक्षित है, लेकिन हरकतों से उसकी शिक्षा केवल किताबी हैं।