नज़र नहीं नज़रिया बदलिये

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31 Jul 2021
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अपने लिए तो सभी जीते हैं कोई दूसरों के लिए जिए ये बड़ी बात है। हमारी सकारात्मक सोच ही समाज को सोचने पर मजबूर करती है। आज हम क्या हैं ये सब जानते हैं, पर कल हम क्या हो सकते हैं ये हम खुद भी नहीं जानते। हम अपनी मेहनत से अपने भाग्य का निर्माण कर सकते हैं। 

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व्हीलचेयर पर बैठ, बच्चों को अपने पैरों पर खड़े होना सिखा रहे मास्टर साब…

दो घूँट भी काफी हैं ज़िंदा रहने के लिए, 

हर किसी को समुन्दर की प्यास नहीं होती…

जो अपाहिज़ होकर भी जीने का हुनर रखते हैं, 

उनकी ज़िन्दगी कभी ज़िंदा लाश नहीं होती…

यह पंक्तियाँ गोपाल खंडेलवाल पर बिलकुल ठीक बैठती हैं। अपने पैरों पर खड़े हो पाने की ताकत खो चुके गोपाल भावी पीढ़ी को मजबूती दे रहे हैं, ताकि वो अपने पैरों पर खड़ी हो सके।  

उत्तरप्रदेश में मिर्ज़ापुर के गाँव "पत्ती का पुर" में रहने वाले 49 वर्षीय गोपाल खंडेलवाल 20 वर्षों से बिना फीस लिए गांव के बच्चों में शिक्षा की ज्योति जगा रहे हैं। उन्होंने बहुत सारे बच्चों का भविष्य उज्ज्वल किया है। वैसे तो गोपाल का मूल निवास वाराणसी में था और वो डॉक्टर बनना चाहते थे, मगर किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। 22 साल पहले सड़क दुर्घटना ने 27 साल के गोपाल की ज़िन्दगी बदल दी। 

जैसे-तैसे गोपाल अपनी पीड़ा से बाहर निकल रहे थे कि तभी उनकी माँ का निधन हो गया। अपने अंतिम समय में उन्होंने गोपाल से जो बात कही, उससे गोपाल को फिर से जीने की वजह मिली। गोपाल की माँ ने कहा था, 'तुम्हारे पास जो कुछ भी है वो शिक्षा है, अपने कर्म को हमेशा सबसे ऊपर रखना, क्योंकि एक दिन लोग तुम्हारे पैर नहीं, तुम्हारा चेहरा देखेंगे।' 

गोपाल की ऐसी स्थति देखकर उनके रिश्तेदारों ने भी उनसे मुँह मोड़ लिया। बाद में गोपाल के दोस्त डॉ. अमित दत्ता ने उन्हें अपने गांव चलने की सलाह दी और उसके बाद से गोपाल इसी गांव के हो गए। जब गोपाल यहाँ आये थे, तब उन्होंने देखा कि यहाँ के बच्चों को शिक्षा के कोई अवसर प्राप्त नहीं हैं। फिर  गोपाल ने बच्चों के माता-पिता को समझाया कि शिक्षा के बिना कुछ भी पाना संभव नहीं है। आखिर उनके कठिन प्रयासों से बच्चे उनसे पढ़ने आने लगे। धीरे- धीरे 10, 20, 100 और अब 2500 बच्चों को उन्होंने अपनी मेहनत से आज काबिल बना दिया है। जब भी बच्चे शहर से गांव आते हैं, तो अपने गोपाल मास्टर जी से ज़रूर मिलते हैं।

एक ऑटो वाला ऐसा भी.... ?

माना कि मिटा नहीं सकता तिमिर सारे जहान का,

दिया थोड़ी ही सही मगर रौशनी भरपूर करता है...

दुनिया को दिखाने के लिए 100 साल की ज़िन्दगी काफी नहीं। बस एक दिन में ऐसा काम करो कि दुनिया 100 साल तक याद रखे। ऐसा ही कुछ काम दिल्ली का एक ऑटो वाला कर रहा है। यह शख्स खुद और अपने ऑटो से लोगों को राहत पहुंचा रहा है। वो आज दिल्ली के बच्चे-बच्चे से लेकर बड़े- बूढ़ों में अपनी पहचान बनाये हुए हैं। ये जनाब दिल्ली में ऑटो चला कर पैसे ही नहीं कमाते, लोगों का विश्वास और प्यार भी कमाते हैं। दिल्ली वाले इन्हें सीताराम जी ऑटो वाले के नाम से जानते हैं। सीताराम का नाम और नंबर ज़्यादातर लोगों के जुबां पर रहता है। 

सीताराम सिर्फ ईमानदार नहीं, मददगार भी हैं। सीताराम बच्चों को परीक्षा दिलाने के लिए उनके एक फ़ोन पर पहुंच जाते हैं। एक बार रात के 2 बजे उनके पास एक सज्जन का फ़ोन आया कि उनकी पत्नी को प्रसूति पीड़ा हो रही है और उनके पास अस्पताल तक पहुंचने का कोई साधन नहीं है। यह जानकर सीताराम शीघ्र उनकी पत्नी को अस्पताल ले गए। उनकी सहायता से एक माँ और एक बच्चे की जान बच गयी। 

सीताराम जी का ऑटो ग्राहकों के लिए अनेक सुविधाओं से भरा हुआ है। उनके ऑटो में आपको पीने के लिए पानी मिलेगा। पढ़ने के लिए अखबार मिलेगा। कोई दुर्घटना होने पर फर्स्ट ऐड किट है। अगर आपको गर्मी लग रही है, तो ऑटो में खस लगी है। आग को बुझाने वाला यन्त्र भी है। आपके पास कूड़ा है, तो सीताराम के ऑटो में कूड़ादान भी मिलेगा। 

सीताराम ऑटो वाले तो हैं, मगर अक्सर सड़कों पर आपको ट्रैफिक पुलिस का किरदार निभाते भी दिख जायेंगे। हाँ भाई, इनके पास एक रेडियम वाली जैकेट और एक सीटी है, जिसका इस्तेमाल सीताराम सड़कों पर लगे लम्बे ट्रैफिक को खाली करवाने में करते हैं। 

सीताराम के ऑटो के पीछे एक बोर्ड है, जो पढ़ने में दिलचस्प है। इस बोर्ड पर ऐसे बहुत सारे नियम हैं, जो ग्राहकों को ऑटो में बैठने से पहले पढ़ने होते हैं। आपको अगर कोई इमरजेंसी है, तो उनका नंबर मौजूद है। आप किसी भी समय उनको बुला सकते हैं।

अपने लिए तो सभी जीते हैं कोई दूसरों के लिए जिए ये बड़ी बात है। हमारी सकारात्मक सोच ही समाज को सोचने पर मजबूर करती है। आज हम क्या हैं ये सब जानते हैं पर कल हम क्या हो सकते हैं ये हम खुद भी नहीं जानते।  हम अपनी मेहनत से अपने भाग्य का निर्माण कर सकते हैं। अगर हम आज पढ़ने में कमजोर हैं तो कल को हम अपनी मेहनत से अव्वल आ सकते हैं। दुनिया में कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। हमें खुद को और समाज को विकसित करने के लिए पहल करना ज़रूरी है।    

 

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