शिल्पकला की कारीगरी

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31 Jul 2021
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भारतीय शिल्प कला का इतिहास बहुत ही प्राचीन है बस्तर कला लकड़ी का शिल्प जानिए थिंक विद निश के साथ शिल्पकार शिल्पवस्तुओं के निर्माता और विक्रेता के अलावा समाज में डिजाइनर, सर्जक, अन्वेषक और समस्याएं हल करने वाले व्यक्ति के रूप में भी कई भूमिकाएं निभाता है। भारत में मूर्ति कला, शिल्प कला, हस्तशिल्प, करघा, आभूषण, एवं अन्य बहुत सी कलाएं प्रचलित हैं|

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भारतीय शिल्प कला का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। भारतीय कला और कलाकार सदियों से दुनिया को अपनी अद्भुत कृतियों से आश्चर्यचकित करते रहे हैं।  दुनिया भर से लोग भारतीय कला की तरफ खिचे चले आते हैं | प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक भारत के कालक्रम में शिल्पकार को बहुआयामी भूमिका का निर्वाह करने वाले व्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है। शिल्पकार शिल्पवस्तुओं के निर्माता और विक्रेता के अलावा समाज में डिजाइनर, सृजक, अन्वेषक और समस्याएं हल करने वाले व्यक्ति के रूप में भी कई भूमिकाएं निभाता है। भारत में मूर्ति कला, शिल्प कला, हस्तशिल्प, करघा, आभूषण, एवं अन्य बहुत सी  कलाएं प्रचलित हैं| शिल्प समुदाय की गतिविधियों व उनकी सक्रियता का प्रमाण हमें सिंधु घाटी सभ्यता में मिलता है। इस समय तक ‘विकसित शहरी संस्कृति’ का उद्भव हो चुका था, जो अफगानिस्तान से गुजरात तक फैली थी। इस स्थल से मिले सूती वस्त्र और विभिन्न, आकृतियों, आकारों और डिजाइनों के मिट्टी के पात्र, कम मूल्यवान पत्थरों से बने मनके, चिकनी मिट्टी से बनी मूर्तियां, मोहरें (सील) शिल्प संस्कृति की ओर इशारा करते हैं। समय के साथ-साथ भारतीय जीवन शैली में इनकी जगह कम रह गयी। लोग पश्चिम की नक़ल करने के चक्कर में अपनी कला एवं कलाकारों को भुला बैठे हैं|

  भारतीय शिल्पकारी और उसमें पनपती कारीगरी काफी लंबी और प्राचीन  समय से चली आ रही परंपरागत तकनीकी है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यहां हमेशा से ही रचनात्मक और कल्पनाशील लोग हुए हैं। इन लोगों के द्वारा समस्याओं के समाधान के बहुत रोचक तरीके खोजे गए। भारतीय शिल्पकारी अपनी कलात्मकता के बलबूते पर आज भी विश्व भर में प्रसिद्द है। जहाँ एक और आधुनिक विश्व ने मशीनी समाज के रूप में पर फैलाएं हैं। वहीँ आज भारतीय परम्पराओं की चादर ओढ़े हुए व्यवसाय भी अपना वर्चस्व जमाये हुए हैं। शिल्पकारी भी उसमें से एक परम्परागत व्यवसाय है। ये वक़्त देश की नींव पर देश की ईमारत बनाने का वक़्त है। 

भारत के शिल्प और शिल्पकार यहां की लोक एवं शास्त्रीय परंपरा का अभिन्न अंग हैं। यह ऐतिहासिक मेल-जोल भारत में कई हजार वर्षों से निहित है,विद्यमान है। अगर हम देखें तो पाएंगे कि कृषि अर्थव्यवस्था में आम लोगों और शहरी लोगों दोनों के लिए प्रतिदिन उपयोग के लिए हाथों से बनाई गई वस्तुएं शिल्प की दृष्टि से भारत की सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाती हैं। इतनी विधताओं के चलते जहाँ शिल्पकार लोगों को जातिगत तथा जाति प्रथा के रूप में पुरानी प्रथाओं के ढांचे में बांटा गया, लेकिन उनके कौशल को सांस्कृतिक और धार्मिक आवश्यकताओं द्वारा प्रोत्साहित किया गया एवं स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा इसे गति प्रदान की गई।

 अगर देखा जाए तो आज भी भारत में हस्तशिल्प आय का वैकल्पिक स्रोत है, जहाँ आज भी कई लोग अपने पुराने शिल्प कार्यों को करने में कोई शर्म नहीं करते हैं। कई समुदायों की अर्थव्यवस्था का आधार भी। यही माना जाता है फिर भी पिछले कुछ वर्षों से भारतीय कला एवं कलाकारों को एक नई उम्मीद दिखी है , साथ ही भारत सरकार भी देश के विकास के लिए एवं भारतीय कला के पुनरोत्थान के लिए प्रयास करती दिख रही है | भारत सरकार द्वारा चलायी गयी ” मेक इन इंडिया ” योजना भारतीय कलाकारों के लिए एक उम्मीद की किरण लेकर आयी है | इसके तहत भारत में उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है। साथ-साथ इस महत्वाकांक्षी योजना का लक्ष्य भारतीय कलाकारों को कला प्रदर्शन के लिए एक बेहतर मौका देना भी है |

बस्तर कला-  यह कला पारंपरिक रूप से छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र के नाम से जानी जाती है। यह कला सदियों पुरानी विरासत के रूप में देखी जा सकती है। बस्तर कला आधुनिक मशीनों पर पारंपरिक उपकरणों के उपयोग के लिए चलन में है। कलाकार मुख्य रूप से पौराणिक देवताओं और आदिवासी मूर्तियों के जुड़नार, मूर्तियाँ और चित्र बनाने के लिए लकड़ी, बांस, मिट्टी और धातु कला का प्रदर्शन करते हैं। बस्तर शब्द भारत में आदिवासी क्षेत्र बस्तर से लिया गया है, जो अपनी अनूठी कलाकृतियों के लिए दुनिया भर में लोकप्रिय है। बस्तर क्षेत्र के आदिवासी आज भी घर की सजावट की अनूठी और आकर्षक विभिन्न शैलियों को बनाने की पुरानी तकनीक का उपयोग करके अपनी प्राचीन परंपरा को जीवित रख रहे हैं। हाथ और पुरानी तकनीक से बनाई गई वस्तुएं सरल लेकिन अद्भुत हैं। निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली बुनियादी तकनीकों को ढोकरा कला के रूप में जाना जाता है और बेल धातु का उपयोग सुंदर आकार और रूपरेखा बनाने के लिए किया जाता है। बस्तर आर्ट्स अपनी अनूठी शैली और बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों से गृह सज्जा बाजार में तेजी से आ रही है।

लकड़ी का शिल्प-  यह एक ऐसी शिल्पकारी है, जो एक प्रीमियम कलाकृति है यह सदियों से ही असाधारण रूप से विकसित हुई है, जिसने पूरे भारत को अलग पहचान दी है। भारत में, लकड़ी की कला एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न होती है। लकड़ी की कलाकृतियाँ फर्नीचर, फिक्स्चर, बर्तन, फ्रेम, फर्श और आंतरिक सज्जा के कई उद्देश्यों को पूरा करती हैं। लकड़ी की कला में अपनी निश्चित गुणवत्ता के साथ शानदार सौंदर्यशास्त्र प्रदान करने के विकास और परिवर्तन का 11,000 साल पुराना इतिहास है।

भारत में तमाम तरह की शिल्पकारी प्रसिद्ध हैं,जिनको एक लेख में समेट पाना कठिन है। मगर इन शिल्पकारियों जज़्बों को नया रूप देते रहना हमारा कर्तव्य है, जिससे आपको व्यवसाय भी मिले और भारतीय कलाकृतियाँ हमेशा जीवित तथा पनपती रहें।

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