बायोमेडिकल वेस्ट (Biomedical Waste) कोई भी ऐसा वेस्ट है जिसमें संक्रामक या संभावित संक्रामक सामग्री होती है। ये अपशिष्ट मनुष्यों और जानवरों के निदान, उपचार और टीकाकरण के दौरान उत्पन्न होते हैं। बायोमेडिकल वेस्ट ठोस और तरल दोनों रूपों में हो सकता है।
प्रयोगशाला अपशिष्टचिकित्सालयों द्वारा जनित जैव चिकित्सा अपशिष्टों (Bio-Medical Waste Management) का उचित निपटान एक गंभीर समस्या है। ये अपशिष्ट (waste) संक्रामक प्रकृति (infectious nature) के होते हैं।
इनका व्यवस्थित ढंग से निपटान न होने से संक्रमण (infection) की संभावना रहती है, जिसका मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण (Human Health and Environment) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
कई बार इन अपशिष्टों को अनुपचारित स्थिति (untreated condition) में फेंक दिया जाता है, जला दिया जाता है या नदी व नालों आदि में प्रवाहित कर दिया जाता है। इन अपशिष्टों को अन्य ठोस अपशिष्टों (solid wastes) के साथ मिलाने से समस्या और भी गंभीर हो जाती है।
अतः इन जैव-चिकित्सा अपशिष्टों का समुचित प्रबंधन (Proper management of bio-medical waste) आवश्यक है।
आज इस आर्टिकल हम इसी विषय पर बात करेंगे कि जैव-चिकित्सा अपशिष्टों का प्रबंधन कितना आवश्यक है।
अगर भारत में जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन (Bio medical waste management in Hindi) के नियमों की बात करें तो मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर जैव चिकित्सा अपशिष्टों से होने वाले प्रतिकूल प्रभावों के प्रबंधन हेतु पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (Ministry of Environment and Forests), भारत सरकार द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 6, 8 एवं 9 द्वारा देश में "जीव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हथालन) (Biomedical Waste-Management and Handling) नियमावली, दिनांक 20 जुलाई, 1998 को अधिसूचित किया गया था।
बायोमेडिकल वेस्ट को मानव और पशुओं के उपचार (Human and animal treatment) के दौरान उत्पन्न शारीरिक अपशिष्ट जैसे- सुई, सिरिंज तथा स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं (Needles, syringes and health care facilities) में उपयोग की जाने वाली अन्य सामग्रियों के रूप में परिभाषित किया गया है।
इन नियमों का मुख्य उद्देश्य संपूर्ण देश में प्रतिदिन स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं (Healthcare Facilities- HCFs) से उत्पन्न जैव चिकित्सा अपशिष्ट का उचित प्रबंधन करना है।
यह नियम उन सभी व्यक्तियों पर लागू है जो किसी भी रूप में जैव-चिकित्सा अपशिष्टों का जनन, संग्रहण, भंडारण परिवहन, उपचार, व्ययन (Generation, collection, storage, transportation, treatment, disposal of bio-medical wastes) करते हैं।
यानी अस्पताल, नर्सिंग होम, क्लीनिक, डिस्पेंसरी, पशु चिकित्सा संस्थान, पशु-घर, पैथोलोजिकल प्रयोगशालाएँ, रक्त बैंक, आयुष अस्पताल, क्लीनिकल संस्थान, शोध अथवा शैक्षणिक संस्थाएं, स्वास्थ्य कैम्प, मेडिकल अथवा शल्य कैम्प, टीकाकरण कैम्प, रक्त दान कैम्प, विद्यालयों के प्राथमिक उपचार कक्ष, विधि प्रयोगशालाएं एवं शोध प्रयोगशालाएँ (Hospitals, Nursing Homes, Clinics, Dispensaries, Veterinary Institutions, Animal Houses, Pathological Laboratories, Blood Banks, AYUSH Hospitals, Clinical Institutions, Research or Educational Institutions, Health Camps, Medical or Surgical Camps, Vaccination Camps, Blood Donation Camps, Schools First Aid Rooms, Law Laboratories and Research Laboratories) इसके अंतर्गत आते हैं।
हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) द्वारा देश में विभिन्न अधिकरणों/प्राधिकरणों को जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं का अनुपालन (Compliance with Biomedical Waste Management Facilities) सुनिश्चित करने हेतु निर्देश दिया गया है।
बायोमेडिकल वेस्ट (BMW) मानव या पशु अनुसंधान गतिविधियों के निदान, उपचार, या टीकाकरण के दौरान या जैविक या स्वास्थ्य शिविरों के उत्पादन या परीक्षण के दौरान उत्पन्न कोई भी अपशिष्ट है। यह क्रैडल टू ग्रेव एप्रोच का पालन करता है जो बीएमडब्ल्यू का लक्षण वर्णन, मात्रा निर्धारण, अलगाव, भंडारण, परिवहन और उपचार है।
अच्छे बीएमडब्ल्यू अभ्यास का मूल सिद्धांत 3 R की अवधारणा पर आधारित है, अर्थात् reduce, recycle और reuse करना। सर्वोत्तम बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट विधियों का उद्देश्य कचरे के उत्पादन से बचना है या निपटान के बजाय जितना संभव हो उतना कचरा पुनर्प्राप्त करना है।
इसलिए, बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट निपटान के विभिन्न तरीके, उनकी वांछनीयता के अनुसार, रोकथाम, कम करना, पुन: उपयोग करना, रीसायकल करना, पुनर्प्राप्त करना, उपचार करना और अंत में निपटान करना है। इसलिए, कचरे को "पाइप के अंत तक पहुंचने" के बजाय स्रोत पर ही निपटाया जाना चाहिए।
बायो मेडिकल वेस्ट का लगभग 10%-25% ही खतरनाक होता है। शेष 75%-95% गैर-खतरनाक होते हैं। कचरे का खतरनाक हिस्सा सामान्य आबादी और कचरे के प्रबंधन, उपचार और निपटान से जुड़े स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों के लिए भौतिक, रासायनिक और/या सूक्ष्मजीवविज्ञानी जोखिम प्रस्तुत करता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) को जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियमों का सख्ती से अनुपालन और अपशिष्टों का वैज्ञानिक तरीके से निपटान (Scientific disposal of waste) सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है।
सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों (Chief Secretaries of States/UTs) को अनुपालन की निगरानी करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि प्राधिकरण द्वारा अपने क्षेत्राधिकार में प्रत्येक स्वास्थ्य देखभाल सुविधा को संरक्षित किया गया है और मानदंडों का पालन भी किया जा रहा है।
ज़िला मजिस्ट्रेट (district Magistrate) को ज़िला पर्यावरण योजनाओं में सामजस्य या तालमेल स्थापित करने के लिये निर्देशित किया गया है।
बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट (Biomedical Waste Management in Hindi) को ज़मीन की गहराई में गाड़ने की अनुमति देते समय यह सुनिश्चित किया जाए कि इससे भूजल संदूषित नहीं होना चाहिये।
यह सुनिश्चित किया जाए कि खतरनाक बायो मेडिकल वेस्ट (hazardous bio medical waste) सामान्य कचरे के साथ मिश्रित न हों।
ये निर्देश विभिन्न स्वास्थ्य तथा जैव चिकित्सा अपशिष्ट उपचार पर नियमित जुर्माना (regular fine) लगाए जाने के परिणामस्वरूप आए हैं।
भविष्य में सामान्य कचरे के बायो मेडिकल वेस्ट का पृथक्करण सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने से बचाने के लिये आवश्यक है और इस बात का पूर्वावलोकन करना भी आवश्यक है।
सुझाव:
रोगियों द्वारा उपयोग किये जाने वाले, डिस्पोज़ेबल प्लेट, चश्मे, प्रयुक्त मास्क, ऊतक आदि को पीले रंग के बैग में, जबकि उपयोग किये गए दस्तानों को लाल रंग के बैग में रखकर सीबीडब्ल्यूटीएफ (CBWTFs) में कीटाणुशोधन एवं पुनर्चक्रण (Disinfection and Recycling) हेतु भेज देना चाहिये।
जहांँ कचरे का दहन नहीं किया जा सकता है, वहांँ पर्यावरणीय क्षति (Environmental damage) को रोकने के लिये उचित सावधानी बरतने वाले प्रोटोकॉल के अनुसार गहरी दफन प्रणालियों (Deep Burial Systems) को ठीक से अपनाए जाने की आवश्यकता है। इस प्रणाली में बायो मेडिकल वेस्ट (Biomedical Waste Management) को 2 मीटर गहरी खाई में दफनाने और उसे चूने और मिट्टी की एक परत से कवर करना शामिल है।
बायो मेडिकल वेस्ट के सही निपटान के बारे में लोगों के बीच जागरूकता उत्पन्न करने के लिये दूरदर्शन, ऑल इंडिया रेडियो (Doordarshan, All India Radio) और अन्य मीडिया प्लेटफाॅर्मों पर एक उपयुक्त कार्यक्रम आयोजित किया जाना चाहिये।
सरकार को सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership-PPP) मॉडल के तहत देश भर में रीसाइक्लिंग प्लांट (recycling plant) स्थापित करने चाहिये (जैसा कि स्मार्ट सिटी मिशन के तहत परिकल्पित है)।
केंद्र को प्लास्टिक उत्पादकों के लिये विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी (Extended Producer Responsibility-EPR) को लेकर दिशा-निर्देशों के साथ जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के संयोजन हेतु एक राष्ट्रीय प्रोटोकॉल (national protocol) बनाना चाहिये।
स्टार्ट-अप और लघु एवं मध्यम उद्यमों (Start-ups and Small and Medium Enterprises) द्वारा अपशिष्ट पृथक्करण और उपचार हेतु समाधान की पेशकश के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों, राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के स्वास्थ्य विभागों (health departments) और केंद्रीय स्तर पर गठित उच्च स्तरीय टास्क टीम द्वारा निरंतर और नियमित निगरानी की जानी चाहिये।
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बायो-मेडिकल वेस्ट का अर्थ है "कोई भी ठोस और/या तरल अपशिष्ट जिसमें उसके कंटेनर और कोई मध्यवर्ती उत्पाद शामिल हैं, जो मानव या जानवरों के निदान, उपचार या टीकाकरण या उससे संबंधित अनुसंधान गतिविधियों या जैविक के उत्पादन या परीक्षण के दौरान उत्पन्न होता है।
बायोमेडिकल वेस्ट दो प्रमुख कारणों से खतरा पैदा करता है - संक्रामकता और विषाक्तता
चिंताएं Concerns
रोकथाम के उपाय Preventive Measures
जैव-चिकित्सा अपशिष्ट की विभिन्न श्रेणियों के उपचार और निपटान के सामान्य तरीके निम्न हैं-
ये तो आप जान गए हैं कि जैव चिकित्सा अपशिष्ट में मानव पशु शारीरिक अपशिष्ट, उपचार उपकरण जैसे सुईयाँ, सीरिंज (सुई) तथा उपचार और अनुसंधान की प्रक्रिया में स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में प्रयुक्त अन्य सामग्रियां सम्मिलित हैं।
यह अपशिष्ट अस्पतालों (चिकित्सालय), नर्सिंग (संभालना) होमों, पैथोलॉजी प्रयोगशालाओं, रक्त बैंक आदि में निदान, उपचार या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न होता है।
भारत सरकार के जैव चिकित्सा अपशिष्ट अधिनियम-2016 एवं जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2018 Bio Medical Waste Act-2016 and Bio Medical Waste Management (Amendment) Rules 2018 के तहत समस्त गैर सरकारी एवं सरकारी चिकित्सा इकाईयों को उनके यहां से निकलने वाले बायो मेडिकल अपशिष्टों का प्रभावी रूप से प्रबंधन करना है।
ऐसा न करने पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण एवं केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइडलाइन के अनुसार आर्थिक दंड का प्रावधान है। सभी चिकित्सालयों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति, सीबीडब्ल्यूटीएफ के साथ अनुबंध, बायोमेडिकल वेस्ट का समुचित पृथक्कीकरण, अलग-अलग रंग जैसे लाल, पीला, नीला रंग के डस्टबिन नॉन क्लोरीनेटेड पोलिथीन सहित रखना, बायो वेस्ट की बार कोडिंग, हब कटर का इस्तेमाल, मानक के अनुरूप बायो मेडिकल वेस्ट हाउस का निर्माण तथा बायो मेडिकल वेस्ट संग्रह के स्थान पर आईईसी मटैरियल का प्रदर्शन करना जरुरी है।