जैव-ईंधन हमें ऊर्जा का एक टिकाऊ तंत्र प्रदान करता है। ये नवीकरणीय और पर्यावरण के अनुकूल है। जैव ईंधन कच्चे तेल पर निर्भरता को कम करने और स्वच्छ वातावरण को बढ़ावा देने में मदद करता है। यह ग्रामीण क्षेत्रों के लिये अतिरिक्त आय और रोज़गार सृजन में भी मदद करेगा। जीवाश्म ईंधनों से हासिल की जाने वाले ऊर्जा की तुलना में जैव-ईंधन परियोजनाओं से कार्बन के उत्सर्जन में कटौती की जा सकती है जैव ईंधन उत्पादन से आत्मनिर्भरता हासिल करने के लक्ष्य को हक़ीक़त में बदला जा सकता है।
ये तो हम सब जानते हैं कि ईंधन हमारे जीवन को काफी हद तक नियंत्रित करते हैं। रॉड ब्लागोजेविच Rod Blagojevich के अनुसार "जैव ईंधन दुनिया भर में ऊर्जा का भविष्य हैं"। हम आने-जाने, खाना पकाने, खाने को ताजा रखने, ठंडा करने, गर्म करने, आदि विभिन्न कार्यों में भी ईंधन का उपयोग करते हैं। हर कोई अपने दिन-प्रतिदिन जीवन में किसी न किसी रूप में ईंधनों का उपयोग जरूर करते है। ईंधन मुख्य तौर पर दो प्रकार के हैं, जैव ईंधन और जीवाश्म ईंधन। आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से जैव ईंधन के बारे में जानेंगे कि जैव ईंधन biofuels क्या है और कैसे यह पर्यावरण के अनुकूल और ऊर्जा का एक टिकाऊ तंत्र है।
भारत आज धीरे-धीरे स्थायी ऊर्जा संसाधनों की ओर बढ़ रहा है। इसमें बहुत सारी चुनौतियां हैं जैसे-ऊर्जा उत्पादन के पुराने तरीकों में बदलाव करना। विद्युत के लिए ग्रिडों को हरित ऊर्जा से जोड़ना, रोज़गार के अवसरों को बढ़ाना increase employment opportunities और ऊर्जा आयात की निर्भरता को कम करना। हम कह सकते हैं कि इन सारी चुनौतियों का एक ही समाधान है biofuels यानि जैव-ईंधन। जैव-ईंधन के बहुत सारे फायदे हैं। जैव-ईंधन तेल आयात पर निर्भरता को कम कर सकता है। इसका जो बहुत बड़ा फायदा है वह है कि पर्यावरण में फैले हुए प्रदूषण को कम करके स्वच्छ वातावरण को बढ़ावा देना। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
जैव ईंधन मुख्य रूप से वनस्पतियों, पेड़ और फसलों सहित जैविक वस्तुओं,कृषि एवं उनके अपशिष्टों Organic goods, agriculture and their wastes से बनाया जाने वाला ईंधन है। जैव ईंधन Biofuel को हरा ईंधन Green fuel के रूप में भी जाना जाता है। जैव ईंधन अन्य ईंधनों की अपेक्षा पर्यावरण के लिए कम हानिकारक तो होते ही हैं, साथ ही जीवाश्म डीजल की तुलना में अपेक्षाकृत कम ज्वलनशील भी हैं। यह मानक डीजल की अपेक्षा कम हानिकारक कार्बन उत्सर्जन करता है। दुनिया में ऊर्जा की मांग बेतहाशा बढ़ती जा रही है। इससे ईंधनों के लिए भारत की आयात पर निर्भरता और अधिक बढ़ जाएगी। भारत की राष्ट्रीय ऊर्जा आपूर्ति में कोयला, तेल और गैसोलीन जैसे कार्बन उत्सर्जनकारी ईंधनों का योगदान 69 फ़ीसदी है। इस ऊर्जा की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए इन प्रदूषणकारी ईंधनों का सहारा लेने से जलवायु पर बुरा असर देखने को मिल रहा है और इसके बेहद खतरनाक परिणाम सामने आ रहे हैं।
पिछले कुछ सालों से भारत में जैव ईंधन से जुड़े उद्योग में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कार्यक्रम किए जा रहे हैं। COP26 (Conference of the Parties) के दौरान “एकीकृत बायोरिफ़ाइनरी” Integrated Biorefinery का आग़ाज़ किया गया था। इस कार्यक्रम का लक्ष्य स्वच्छ ऊर्जा के स्रोत को विकसित करना है। एकीकृत बायोरिफ़ाइनरी एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा अधिक से अधिक ऊर्जा प्राप्त की जाती है और जैव संसाधनों को मूल्य-वर्धित उत्पादों में बदला जाता है। आज जीवाश्म आधारित ईंधनों से जुड़ी मानवीय गतिविधियों के द्वारा होने वाली ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन greenhouse gas emissions से जलवायु के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया है और आज पूरा विश्व इस बात से चिंतित है। जीवाश्म ईंधनों का भंडार भी धीरे-धीरे घटता जा रहा है। यह सब देखते हुए जैव-ईंधन कई फ़ायदों वाला विकल्प साबित हो सकता है। जैव-ईंधन, इथेनॉल, संपीड़ित जैव गैस और बायोडीज़ल Ethanol, Compressed Bio-Gas and Biodiesel इन सभी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपकरण बनकर उभरा है।
'राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति-2018' National Bio-fuel Policy-2018 के तहत वर्ष 2030 तक पारंपरिक डीज़ल में 5% जैव-ईंधन मिश्रण का लक्ष्य रखा गया है। यह नीति गैर-खाद्य तिलहनों, प्रयुक्त कुकिंग ऑयल और लघु अवधि वाली फसलों से बायोडीज़ल उत्पादन के लिये प्रोत्साहित करती है। एक अनुमान के मुताबिक अगले दशक में विश्व में ऊर्जा की मांग 17 अरब टन तेल के बराबर हो जाएगी। bp Energy Outlook बीपी एनर्जी आउटलुक 2019, के अनुसार वैश्विक स्तर पर ऊर्जा की कुल मांग में भारत का हिस्सा 2040 तक बढ़कर 11 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा।
जैव ईंधन नवीकरणीय संसाधनों renewable resources से बना है और यह पर्यावरण के अनुकूल Environmentally friendly है। जैव ईंधन, कार्बन डाई-ऑक्साइड का अवशोषण कर हमारे परिवेश को भी स्वच्छ रखता है। भारत में जैव ईंधन जो कि कृषि और वानिकी अवशेषों से उत्पादित है और जिसकी ऊर्जा संभाव्यता 16,000 मेगा वाट है। जैव ईंधन ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत an important source of energy है जिसका देश के कुल ईंधन उपयोग में एक-तिहाई का योगदान है। ग्रामीण परिवारों में इसकी खपत लगभग 90 प्रतिशत है। जीवाश्म ईंधन की तुलना में यह एक स्वच्छ ईंधन है। जैव ईंधन का व्यापक उपयोग खाना बनाने और उष्णता प्राप्त करने में किया जाता है। उपयोग किये जाने वाले जैव ईंधन में शामिल है- कृषि अवशेष, लकड़ी, कोयला और सूखे गोबर।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) International Energy Agency के पूर्वानुमानों के अनुसार, वर्ष 2023 तक भारत एथेनॉल ethanol का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन जाएगा। आज के समय में माना जा रहा है कि भारत, एथेनॉल के उत्पादन में चीन की बराबरी कर लेगा और साल 2023 तक वो चीन को पीछे छोड़कर अमेरिका और ब्राज़ील के बाद तीसरे नंबर पर पहुंच जाएगा। आज जैविक ईंधनों के उत्पादन में जो दो विकल्प सबसे ज़्यादा हैं, वो हैं चीनी पर आधारित बायोएथेनॉल का उत्पादन और वनस्पति तेल या फैटी एसिड मेथिल ईस्टर (FAME) Fatty Acid Methyl Ester पर आधारित बायोडीज़ल। सरकार ने एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम, बायोडीजल अपमिश्रण कार्यक्रम, राष्ट्रीय बायो डीजल मिशन जैसे कई कार्यक्रमों के द्वारा देश में जैव ईंधन को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए हैं। बेहतर पर्यावरण के लिए और जैव ईंधन को बढ़ावा देने के लिए हर साल विश्व जैव ईंधन दिवस world biofuel day भी मनाया जाता है। भारत में महत्त्वपूर्ण जैव ईंधन श्रेणियाँ जैसे- बायो-एथेनॉल bio-ethanol,बायो-डीजल bio-diesel, बायो-सीएनजी Bio-CNG हैं। जैव-ईंधन पर्यावरणीय, सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभप्रद है।
अमेरिका America, दुनिया भर में एथेनॉल का सबसे बड़ा उत्पादक है और विश्व के कुल एथेनॉल का 46 प्रतिशत उत्पादन करता है। अमेरिका में 87 प्रतिशत बायोएथेनॉल को मक्के से बनाया जाता है। ब्राज़ील, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा एथेनॉल उत्पादक देश है, जहां विश्व के कुल एथेनॉल का 28 फीसदी बनाया जाता है। ब्राज़ील में एथेनॉल को गन्ने से बनाया जाता है, और बायोडीज़ल को सोयाबीन से। यूरोपीय संघ, दुनिया में बायोडीज़ल का सबसे बड़ा उत्पादक है और वो अपना ज़्यादातर बायोडीज़ल, जानवरों के आयातित चारे से बनाता है। पेट्रोल में इथेनॉल समिश्रण वर्ष 2030 तक 20% करने का लक्ष्य रखा गया है, जो वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को कम करने में सहायक होगा। गाड़ियों में जैविक ईंधन के इस्तेमाल से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन काफ़ी कम होगा। इसीलिए एथेनॉल को पेट्रोल में मिलाने को बढ़ावा दिया गया है।
भारत में इथेनॉल उत्पादन के लिये प्रयोग किया जाने वाला प्रमुख कच्चा माल गन्ना और इसके उप-उत्पाद हैं। विभिन्न अपशिष्ट बायोमास स्रोतों से ‘संपीड़ित जैव-गैस’ Compressed Biogas-CBG उत्पादन के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने के लिए 2018 में ‘सतत’ Sustainable Alternative towards Affordable Transportation-SATAT नामक योजना की शुरुआत की गई थी। इस योजना का मकसद था कई राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, में संपीड़ित जैव-गैस के उत्पादन के लिये फसलों के अवशेष जैसे- धान का पुआल और बायोमास का उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाएगा। साथ ही यह ग्रामीण क्षेत्र में रोज़गार के अवसरों का विकास करने में सहायक होगा और किसानों की आय में वृद्धि करने में सहायक होगा। साथ ही ग्रीनहॉउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने में सहायक होगी। इसके अलावा फसलों के अवशेषों पराली आदि को जलाने की घटनाओं को कम करना भी सतत योजना का मकसद था।
जैव-ईंधन ऊर्जा का एक टिकाऊ तंत्र a sustainable system of energy के रूप में सामने आ रहा है, इसलिए जैविक ईंधन अपनाने के फ़ायदे हैं। इससे गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण भी कम होगा। दुनिया भर में जैविक ईंधन का प्रयोग बढ़ाने के पीछे इसके कम ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन (GHG), कच्चे तेल के कम आयात से ऊर्जा सुरक्षा और ग्रामीण विकास में योगदान की मुख्य बातें की जा रही हैं। जैविक ईंधन के इस्तेमाल से कच्चे तेल का आयात कम होने की उम्मीद है जिसके कारण ऊर्जा सुरक्षा बढ़ेगी। सबसे बड़ी बात ऊर्जा की अर्थव्यवस्था में स्थानीय उद्यमी और गन्ना किसान साझीदार बनेंगे। जीवाश्म ईंधनों से हासिल की जाने वाले ऊर्जा की तुलना में जैव-ईंधन परियोजनाओं से कार्बन के उत्सर्जन में कटौती की जा सकती है और कच्चे माल में आत्मनिर्भरता का होना भी तय है।
आज यह हमारे लिए फायदे की बात है कि तेजी से घट रहे पारम्परिक ईंधनों की जगह जैव ईंधन बेहतर विकल्प के रूप में मौजूद हैं। हमें जैव ईंधन को बढ़ावा देने के लिए अपने प्रयास जारी रखते हुए ज्यादा से ज्यादा से लोगों को इसके प्रति जागरूक करना है। लुईज इनेसियो लूला डि सिल्वा Luiz Inácio Lula da Silva के अनुसार-"जैव ईंधन का बढ़ता इस्तेमाल दुनिया के बहुत सारे गरीब देशों की गरीबी को कम करने, सामाजिक समावेश और आमदनी पैदा करने में अमूल्य योगदान होगा"।
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