हम कह सकते हैं कि 23 जुलाई का मतलब सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि यह दो महान स्वतंत्रता सेनानियों का जन्मदिन होता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे पहले लोकप्रिय नेता कहे जाने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक Lokmanya Bal Gangadhar Tilak और चंद्रशेखर आज़ाद Chandra Shekhar Azad अपने नाम भर से ही अंग्रेजों की बेचैनी बढ़ाते थे। ये सच है कि देश की इन दो महान विभूतियों की कही बातें अगर आज की पीढ़ी 1 फीसदी भी जीवन में उतार पाए तो न सिर्फ व्यक्तिगत बल्कि, देश और दुनिया का कल्याण होगा, क्योंकि किसी भी देश की सफलता उसमें रह रहे सफल व्यक्तित्वों में निहित होती है। पूरा देश स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और स्वर्गीय चंद्रशेखर आजाद की 23 जुलाई को उनकी जयंती पर उन्हें नमन कर रहा है। इन दोनों महापुरुषों को शत शत नमन। हम सब जानते हैं कि लोकमान्य तिलक के ‘स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और इसे मैं लेकर रहूंगा‘ जैसे नारों ने लाखों भारतीयों के मन में स्वाधीनता की अलख जगा दी। चंद्रशेखर आजाद जी की राष्ट्रभक्ति आज भी हजारों युवाओं में देश के प्रति सम्मान और नई ऊर्जा का संचार करती है। देश के लिए दिए गए इनके बलिदान को सदियों सदियों तक हमेशा याद किया जायेगा। ये वो महापुरुष हैं जो हमेशा से थे ......आज भी हैं ......और हमेशा रहेंगे।
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आज़ादी के आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले दो स्वतंत्रता सेनानियों Freedom Fighters की आज जयंती है। आज पूरा देश उन दो स्वतंत्रता सेनानियों लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक Lokmanya Bal Gangadhar Tilak और चंद्रशेखर आज़ाद Chandrashekhar Azad को उनकी जन्म जयंती पर नमन कर रहा है। तिलक जी और आजाद जी की राष्ट्रभक्ति आज भी लोगों को प्रेरणा देती है। आज हम सबको मिलकर उनकी जयंती पर स्वतंत्रता के लिए उनके संघर्ष और उनके बलिदान को याद करना चाहिए। उन्होंने अपना पूरा जीवन देशप्रेम Patriotism के लिए समर्पित कर दिया और अंतिम क्षण तक स्वाधीनता के लिए संघर्ष करते रहे।
हम सब जानते हैं कि लोकमान्य तिलक के ‘स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और इसे मैं लेकर रहूंगा‘ जैसे नारों ने लाखों भारतीयों के मन में स्वाधीनता की अलख जगा दी। चंद्रशेखर आजाद जी की राष्ट्रभक्ति आज भी हजारों युवाओं में देश के प्रति सम्मान और नई ऊर्जा का संचार करती है। स्वाधीनता के लिए इन दोनों महापुरूषों का अमर बलिदान immortal sacrifice हमें सदा प्रेरित करता रहेगा।
हम सब जानते हैं कि भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर देश में “आजादी का अमृत महोत्सव” Azadi Ka Amrit Mahotsav मनाया जा रहा है। इसके लिए हर राज्य ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। पूरे देश में हर कोई इस आजादी के जश्न को अपने अपने स्तर और तरीकों से मना रहा है। देश के हर राज्य, जिले और कस्बे, स्कूल, कॉलेज में कई के अलग अलग आयोजन किये जायेंगे। आजादी का अमृत महोत्सव यानी आजादी की ऊर्जा का अमृत। आजादी का अमृत महोत्सव यानी स्वाधीनता सेनानियों से प्रेरणाओं का अमृत और नए संकल्पों का अमृत है। आजादी के अमृत महोत्सव में सबसे अधिक जिन्हें याद किया जा रहा है वो हैं भारत को आजादी दिलाने वाले Amar Shaheed अमर शहीद।
देश को गुलामी की जंजीरों से निकालने के लिए इन वीरों की गाथा आज भी देश के प्रति लोगों की रगो में खून में उबाल ला देती हैं। भारत की भूमि पर इन वीरों ने आजादी की लौ flame of freedom को जलाकर रखा। कई ऐसे क्रांतिकारी हुए जिन्होंने ऐशो आराम की जिंदगी को त्याग कर देश के नाम अपना जीवन लगा दिया। उन वीर स्वतंत्रता सेनानियों को आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर याद किया जा रहा है। ऐसे में हम लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और चंद्रशेखर आज़ाद को अमृत महोत्सव और उनकी जयंती पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम करते हैं और भारत के इन महापुरुषों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जो स्वतंत्रता संग्राम के मैदान में कूद पड़े थे।
भारत माता के सपूत चंद्रशेखर आजाद Chandra Shekhar Azad ने अपने युवा दिनों में देश को आजाद करने के लिए खुद को झकझोर दिया था। आजाद ने बचपन से ही आजाद भारत के विचार को जिया व चरितार्थ किया और अंतिम सांस तक आजाद रहे। चंद्रशेखर आजाद का शौर्य ऐसा था कि अंग्रेज भी उनके सामने नतमस्तक हो जाते थे। उनके बलिदान ने स्वाधीनता की जो लौ जगाई वो और वह आज हर भारतवासी के ह्रदय में देशभक्ति की अमर ज्वाला बन धधक रही है। महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जी का नाम बहादुरी, राष्ट्रभक्ति और बलिदान Bravery, Patriotism and Sacrifice का पर्याय है। उनके हृदय में देश व मातृभूमि के लिए इतना प्रेम था कि उन्होंने बहुत छोटी उम्र से ही अंग्रेजों के विरुद्ध लोहा लेना शुरू किया और फिर अपना सम्पूर्ण जीवन देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया।'
देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले, अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद जी ने अपने अदम्य साहस, वीरता और राष्ट्र भक्ति से अंग्रेज़ी हुकूमत की नींव हिला दी थी। राष्ट्र के प्रति आपका असीम समर्पण आने वाली पीढ़ियों को युगों-युगों तक प्रेरणा देगा। चंद्रशेखर आज़ाद असाधारण वीरता, राष्ट्रभक्ति की प्रतिमूर्ति, स्वाधीनता संग्राम के प्रणेता Extraordinary bravery, an icon of patriotism, leader of the freedom struggle थे। देश के हीरो चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश Madhya Pradesh के भावरा में हुआ था। 1921 में ही चंद्रशेखर आज़ाद आज़ादी की लड़ाई में कूद गए थे। चंद्रशेखर आजाद कहते थे कि 'दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे'। एक वक्त था जब उनके इस नारे को हर युवा रोज दोहराता था। वो जिस शान से मंच से बोलते थे, हजारों युवा उनके साथ जान लुटाने को तैयार हो जाते थे। चंद्रशेखर आजाद बाद में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के मेंबर Member of Hindustan Republican Association भी बन गए। काकोरी कांड Kakori scandal समेत अंग्रेज़ों को मात देने वाली कई अन्य गतिविधियों में चंद्रशेखर आज़ाद की अहम भूमिका थी।
1920 में 14 वर्ष की आयु में चंद्रशेखर आजाद गांधी जी के असहयोग आंदोलन Gandhi's non-cooperation movement से जुड़े थे। देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेजों ने 15 कोड़ों की सजा दी थी। 14 साल की उम्र में ही वो गिरफ्तार हो गए थे। जज ने उनसे जब नाम पूछा तो उन्होंने कहा आजाद। इसके बाद पिता का नाम पूछा तो वह बोले, 'स्वतंत्रता' पता पूछने पर बोले- जेल। इस पर जज ने उन्हें सरेआम 15 कोड़े लगाने की सजा सुनाई और वह वंदे मातरम् Vande Mataram बोल रहे थे। चंद्रशेखर आजाद ने 1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर एसपी सॉन्डर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया था।
जब चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में सुखदेव और अपने एक मित्र के साथ योजना बना रहे थे। तभी उसी वक्त अचानक अंग्रेज पुलिस ने उन पर हमला कर दिया। पुलिस की गोलियों से आजाद बुरी तरह घायल हो गए थे। वह बहुत देर तक पुलिस वालों के सामने 20 मिनट तक लड़ते रहे। आखिर में उन्होंने अपना नारा “आजाद है आजाद रहेंगे “ को याद किया। यही वो दिन था जब 27 फरवरी, 1931 को उन्होंने खुद को गोली मार ली। वो कभी नहीं चाहते थे कि अंग्रेज़ उन्हें पकड़े और उनका ये प्रण भी था कि अंग्रेज़ कभी उन्हें ज़िंदा नहीं पकड़ पाएंगे। इस तरह उन्होंने खुद को गोली मार ली और मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी। चंद्रशेखर आज़ाद का कहना था कि ”एक विमान जब तक जमीन पर है वह सुरक्षित रहेगा, लेकिन विमान जमीन पर रखने के लिए नहीं बनाया जाता , बल्कि ये हमेशा महान ऊंचाइयों को हासिल करने के लिए जीवन में कुछ सार्थक जोखिम लेने के लिए बनाया जाता है।”
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की बात करें तो वह अंग्रेजी हुकूमत से भारत की राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक स्वतंत्रता के प्रबल पक्षधर, स्वदेशी उद्यमशीलता से ओत-प्रोत थे। उनके विचार सदैव हम भारतवासियों को प्रेरित करते रहेंगे। बाल गंगाधर तिलक, जिन्हें लोकमान्य तिलक के नाम से जाना जाता था, उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि Ratnagiri of Maharashtra के चिखली गांव में हुआ था। इस साल, हम 'स्वराज' नेता की 164 वीं जयंती मना रहे हैं। इतिहास के अनुसार, तिलक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पहले नेता थे। उन्हें 'लोकमान्य' की उपाधि से भी सम्मानित किया गया। लोकमान्य का अर्थ है 'लोगों द्वारा उन्हें नेता के रूप में स्वीकार करना।
बाल गंगाधर तिलक का नारा “स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच, जिसका हिंदी में अर्थ होता है- स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा”, देशवासियों की धमनियों में लहू बनकर ऐसा दौड़ा कि उसका नतीजा आजाद भारत के तौर पर सामने आया। महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी ने स्वराज के नारे को चरितार्थ करने के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया और स्वतंत्रता आंदोलन को जन आंदोलन में बदलकर नई दिशा दी। वह कहते थे “प्रगति स्वतंत्रता में निहित है”। बिना स्वशासन के न औद्योगिक विकास संभव है, न ही राष्ट्र के लिए शैक्षिक योजनाओं की कोई उपयोगिता है। देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करना सामाजिक सुधारों Social Reforms से अधिक महत्वपूर्ण है।”
बाल गंगाधर तिलक अस्पृश्यता के प्रबल विरोधी थे और राष्ट्रवाद को ही राष्ट्रधर्म मानते थे। साथ ही कहा कि लोकमान्य तिलक जी ने स्वभाषा व स्वसंस्कृति के अपने विचारों व सिद्धांतो से भारतीय समाज में एक नई चेतना जागृत करने का काम किया। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे। ऐसे अप्रतिम राष्ट्र नायक की जयंती पर उनके चरणों में कोटि-कोटि वंदन। राष्ट्र के प्रखर नेता, शिक्षक, समाज सुधारक और वकील Strong leader, teacher, social reformer and lawyer बाल गंगाधर तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लोकप्रिय नेताओं में रहे हैं। उनका आदर्शपूर्ण जीवन, संघर्ष और देशप्रेम आज भी सभी भारतीयों के मन में राष्ट्रवाद की भावना Sense of nationalism जागृत करता है।
बाल गंगाधर तिलक का कहना था कि ”धर्म और व्यावहारिक जीवन अलग नहीं हैं। संन्यास लेना जीवन का परित्याग करना नहीं है। असली भावना सिर्फ अपने लिए काम करने की बजाय देश को अपना परिवार बनाकर मिलजुल कर काम करना है। इसके बाद का कदम मानवता की सेवा करना है और अगला कदम ईश्वर की सेवा करना है।”
हम कह सकते हैं कि 23 जुलाई का मतलब सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि यह दो महान स्वतंत्रता सेनानियों का जन्मदिन होता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे पहले लोकप्रिय नेता कहे जाने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और चंद्रशेखर आज़ाद अपने नाम भर से ही अंग्रेजों की बेचैनी बढ़ाते थे। ये सच है कि देश की इन दो महान विभूतियों की कही बातें अगर आज की पीढ़ी 1 फीसदी भी जीवन में उतार पाए तो न सिर्फ व्यक्तिगत बल्कि, देश और दुनिया का कल्याण होगा, क्योंकि किसी भी देश की सफलता उसमें रह रहे सफल व्यक्तित्वों में निहित होती है।
इन स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में तो हम यही कह सकते हैं कि -
"आज तिरंगा फहराता है अपनी पूरी शान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से"।