धार्मिक पवित्रता के कारण हम फूलों को यहां-वहां फेंक नहीं सकते हैं, ऐसे में फूलों से अगरबत्तियां बनाने का तरीका भी अच्छा है। इससे बेकार पड़े फूलों का भी उपयोग हो जाएगा। इस व्यवसाय को करने से प्रदूषण भी कम होगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा। इस व्यवसाय को शुरू करने से फूलों को नष्ट करने की समस्या का भी हल हो जाएगा।
हम हर रोज मंदिरों में न जाने कितने फूल भगवान को चढ़ाते हैं और फिर वही फूल मुरझाने या सूखने के बाद ढेर के रूप में यहाँ-वहाँ पड़े रहते हैं और कचरे का रूप ले लेते हैं। इन बर्बाद हुए फूलों को कोई तालाब में तो कोई नदी में फेंक देता है या फिर कहीं ढेर लगाकर छोड़ देता है। इससे प्रदूषण होता है जो वातावरण को नुकसान पहुँचाता है। लेकिन अब हमें इनको न फेंकने की ज़रूरत पड़ेगी न कहीं ढेर लगाकर छोड़ने की और अब प्रदूषण की भी कोई चिंता नहीं होगी। अब हम इन बेकार पड़े फूलों को फिर से प्रयोग करके अगरबत्ती बना सकते हैं। मंदिर, गुरूद्वारे, चर्च और मस्जिदों में जमा हुए फूलों के कचरे से अगरबत्ती बना सकते हैं यानि बर्बाद हुए फूलों से अगरबत्ती बनाने का व्यवसाय कर सकते हैं। इस तरह से प्रयोग करके फूलों को हम कूड़ा होने से भी बचा सकते हैं। गुजरात के दो छात्रों ने भी मिलकर यह व्यवसाय शुरू किया है। जिस वजह से पूरे राज्य में उनके कार्य की प्रशंसा हो रही है कि किस तरह से वे बेकार पड़े फूलों का प्रयोग करके अच्छी कमाई करने के साथ-साथ वातावरण को भी प्रदूषित होने से बचा रहे हैं।
सूखे मुरझाये और फेंके गए फूलों को रिसायकल करके पूजा में प्रयोग होने वाली अगरबत्ती बना कर उपयोग में ला सकते हैं और इस वजह से गंदगी भी नहीं होगी क्योंकि इन फूलों को नदी में फेंकने से पानी गंदा हो जाता है जिस वजह से कई बीमारियाँ हो जाती हैं। अगरबत्ती बनाने का यह व्यवसाय शुरू करके हम अच्छी कमाई के साथ-साथ औरों को भी रोजगार दे सकते हैं। ये एक अच्छी पहल है, जिससे हमें कई रूपों में फायदा होगा। क्योंकि इस काम को शुरू करने से और लोगों को भी रोजगार मिलेगा। अगर हम इन फूलों का इस्तेमाल इस तरह से प्रोडक्ट्स बनाने में करते हैं तो प्रोडक्ट्स भी काम आ जाएंगे, गन्दगी भी नहीं होगी और कई लोगों को रोजगार भी मिल जाएगा। अगर हम कोई भी स्टार्टअप करते हैं तो सरकार भी इसमें मदद करती है। वैज्ञानिक विशेषज्ञता पाने के लिए निगम वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिसिनल एंड एरोमेटिक्स प्लांट्स (सीआईएमपी) के साथ भी काम कर रहे हैं। कुछ पॉलिसी या स्कीम के द्वारा सरकार भी हमारी स्टार्टअप में मदद करती है।
इनोवेशन पॉलिसी एसएसआइपी के तहत दो लाख की मदद मिलती है। इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए आपको मंदिरों में बात करनी पड़ेगी। वहाँ पर स्पेशल डस्टबिन रखवाकर दो दिन बाद उनको खाली करना होगा। इसके बाद आपको मशीनों की आवश्यकता होती है। इसमें मुख्य रूप से तीन मशीनों की ज़रूरत होती है। एक क्विंटल ताजे फूलों से करीब 30 से 35 किलोग्राम अगरबत्तियां बनती हैं । फूलों के चूरे को एक पाउडर में मिलाकर मशीन में डाला जाता है। मशीन इस चूरे से अगरबत्ती में प्रयोग किये जाने वाले पाउडर को तैयार करती है। फिर इन्हें धूप में सुखाया जाता है। इन अगरबत्तियों का बंडल बनाया जाता है।
देश के कई राज्यों में फूलों से अगरबत्तियां बनाई जाती हैं। सूखने के बाद 10-12 पीस एक डिब्बी में पैक किए जाते हैं। फिर अगरबत्तियां डिब्बियों में भरकर बाज़ार में पहुंचा दी जाती हैं। यहां 15-20 रुपये प्रति डिब्बी बेची जाती है। कई महिलाएं भी इस काम से जुड़ी हैं। कई महिलाओं का समूह अगरबत्तियां बनाने का काम कर रहा है। लोगों को इस व्यवसाय में बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। फूलों से अगरबत्तियां बनाने से पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी रोजगार मिल रहा है, क्योंकि इस काम में महिलायें अधिक हिस्सा ले रही हैं। सरकार द्वारा भी ऐसी यूनिट लगाई जाएंगी जिससे गरीब व जरूरतमंद लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाया जा सके। सब लोग हाथों से बनी इन अगरबत्तियों को खरीद रहे हैं। इससे पूजा घर तो महकने ही लगे हैं, गरीब महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है। कुल मिलाकर ये व्यवसाय फायदेमंद है और इसको हम शुरू कर सकते हैं।
इस व्यवसाय को शुरू करने से फूलों को नष्ट करने की समस्या का भी हल हो जाएगा। धार्मिक पवित्रता के कारण हम फूलों को यहां-वहां फेंक नहीं सकते हैं, ऐसे में फूलों से अगरबत्तियां बनाने का तरीका भी अच्छा है। इससे बेकार पड़े फूलों का भी उपयोग हो जाएगा। इस व्यवसाय को करने से प्रदूषण भी कम होगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा।