यहाँ की मिट्टी सोना है

Share Us

7327
यहाँ की मिट्टी सोना है
31 Jul 2021
5 min read

Blog Post

आजमगढ़ जनपद के निजामाबाद क्षेत्र में एक विशेष प्रकार की काली मिट्टी से इन बर्तनों का निर्माण किया जाता है । यहाँ पर लगभग 200 से अधिक कारीगर इन बर्तनों का निर्माण करते हैं। इन बर्तनों में गुलदस्ते व अन्य बर्तन भी शामिल हैं। सजावट व दैनिक उपयोग के लिए भी इस कला की बहुत माँग होती है। 

आजमगढ़ समय की छाँव और धूप में पलते-पलते एक नई बुलंदी पर खड़ा होता जा रहा है, वहीँ दूसरी ओर शहर का औद्योगिक आधार बहुत मज़बूत नहीं है, राजनीतिक उथल-पुथल से आगे निकल कर अगर इस शहर को देखा जाए तो, निरन्तर विकास की तरफ इसके कदम जारी हैं। परन्तु इस जनपद में कृषि के क्षेत्र में काफी मजबूती है। इस जमीन की मिट्टी तथा किसानों की मेहनत और पसीना इस जमीन की उर्वरता बढ़ाती है। शायद इसीलिए इसका कृषि या कृषिकीय आधार बहुत मज़बूत कहा जाता है।

कृषि के बाद जो सबसे ख़ास है इस शहर के पास वह है, इस जनपद का एक पुरातन उद्योग, बर्तन उद्योग जो अभी भी यहाँ के लोगों के आर्थिक जीवन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है। निजामाबाद में बनाये जाने वाले सुंदर बर्तन विश्व प्रसिद्ध हैं। यहाँ के कुम्हार चाय के बर्तन, चीनी के बर्तन व अन्य कलात्मक बर्तनों का निर्माण करते हैं। मिट्टी के बर्तन व देवी-देवताओं की मूर्तियाँ विशेषकर गणेश, लक्ष्मी, शिव, दुर्गा और सरस्वती की मूर्तियाँ निर्मित की जाती हैं। इन उत्पादों की माँग पर्वों व त्योहारों में बहुत रहती है। शहर की मिट्टी काली मिट्टी है जो कि, विशिष्ट रूप से इस जनपद में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। बर्तनों की विशिष्टता उन्हें मिट्टी व सब्जियों के पानी में डुबा कर रखने से प्राप्त होती है। इसके बाद इन बर्तनों के सुंदर दिखने के लिए उनपर पारा, रांगा व जस्ते का प्रयोग किया जाता है। यह एक अध्भुत कलाकारी मानी जाती है आजमगढ़ शहर की। 

आजमगढ़ जनपद के निजामाबाद क्षेत्र में एक विशेष प्रकार की काली मिट्टी से इन बर्तनों का निर्माण किया जाता है । यहाँ पर लगभग 200 से अधिक कारीगर  इन बर्तनों का निर्माण करते हैं। इन बर्तनों में गुलदस्ते व अन्य बर्तन भी शामिल हैं। सजावट व दैनिक उपयोग के लिए भी इस कला की बहुत माँग होती है।

आजमगढ़ जनपद का सम्पूर्ण क्षेत्र ही वस्त्र उद्योग से बहुत पुराने समय से जुड़ा हुआ है।
साड़ी का फैशन, यहाँ के मुख्य पहनावे में शामिल होना ही इस उद्योग के विकसित होने का एक मुख्य कारण है। आजमगढ़ में रेशमी साड़ी निर्मित करने का उद्योग लघु उद्योग के रूप में विकसित है। यहाँ की साड़ियों में “पल्लू” पर रेशमी कढ़ाई कर साड़ी के शेष भाग के साथ बेहतरीन समायोजन किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह उद्योग फैला हुआ है। इस उद्योग की विशेषता यह है कि, इसके साथ कई अन्य उद्योग भी पल्लवित होते रहते हैं।
छपाई, डिजाइन, परिवहन व विपणन आदि क्षेत्रों में काम करने वाले लोग भी सीधे तौर पर इस उद्योग के साथ जुड़े हुए हैं |

आजमगढ़ में मिट्टी से बनने वाली कुछ वस्तओं के बारे में हम विस्तार से जानेंगे,

मिट्टी के बर्तन- किसानी के बाद आजमगढ़ का दूसरा सबसे व्यापक व्यवसाय मिट्टी के बर्तन निर्माण करना है, यहाँ के ज्यादातर घरों का व्यवसाय इससे जुड़ा है। परम्परागत व्यवसाय के तौर पर ये व्यवसाय आज भी भली-भाँति फल-फूल रहा है। इसमें कारीगरों की परम्परागत कलाकारी ज्यादा एहमियत रखती है। मिट्टी का आसानी से मिल जाना और चाक चलाने की परम्परा तथा हुनर, बर्तनों के प्रति ग्राहकों में आकर्षण पैदा करता है। जिससे कम लागत में अधिक नफ़ा कमाने के लिए बर्तन का व्यवसाय काफी कारगर है। यहाँ के बर्तन विश्व प्रसिद्ध हैं। 

देवी-देवताओं की मूर्तियों का निर्माण- जिस मिट्टी से ईश्वर अंकुर को वृक्ष बना देता है। उसी ईश्वर की आस्था में डूबा हुआ मनुष्य उसी की आकृति, उसी की मिट्टी के तन को सजाने-सवारने और उसे एक रूप देने की कलाकारी का काम करता है। कहने का तात्पर्य कि, यहाँ तमाम तरह की मूर्तियां बनाई जाती हैं जिसमें विशेषकर गणेश, लक्ष्मी, शिव, दुर्गा और सरस्वती की मूर्तियाँ देखने को मितली हैं। इन मूर्तियों की मांग अधिकतर किसी त्यौहार या पर्व में अधिक होती है। 


मिट्टी के बर्तनों और मूर्तियों के अलावा यहाँ पर वस्त्र उद्योग भी है -

रेशमी साड़ी- यहाँ रेशमी साड़ी की भी मांग अधिक हैं इसको यहाँ के लघु उद्योग के रूप में विकसित होते देखा जा सकता है। इन साड़ियों की मांग इसलिए भी अधिक है, क्योंकि यहाँ की महिलाओं का असल पहनावा साड़ी ही है। यहाँ की साड़ी के पल्लू में रेशम की कढ़ाई भी की जाती है, जो कि इस व्यवसाय को और भी आकर्षक बना देता है। 

अब यदि आप कोई टिकाऊ और प्रकति से जुड़ा कार्य करना चाहते है तो, आजमगढ़ के कुटीर व्यवसाय से भी सीख ले सकते हैं। किसी शहर की संस्कृति को बचाये रखना उस शहर के प्रत्येक व्यक्ति की अपनी ज़िम्मेदारी होती है। पर हमे संस्कृति और कुरीतियों में फर्क जरूर समझ लेना चाहिए। क्योंकि इस भूल में आकर संस्कृति तो मर ही जाती है और कुरीतियां बढ़ती चली जाती हैं।