भारत में महिला शिक्षा की प्रणेता : सावित्रीबाई फुले

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 भारत में महिला शिक्षा की प्रणेता : सावित्रीबाई फुले
05 Sep 2023
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ये बात उस दौर की है, जब पुरुषों को भी पढ़ने-लिखने में कितने पापड़ बेलने पड़ते थे। उस समय कोई महिला ही महिलाओं के हित की बात करे ये तो वही बात हो गयी कि किसी ने सूखे पत्तों को जीवन देने की बात कह दी हो।

एक समय ऐसा भी रहा है कि जब पूरी दुनिया तरक़्क़ी के परवाज़ को छू रही थी, उस समय हमारे देश में महिला शिक्षा की बात करना व्यर्थ की बात करने जैसा ही था। जब पूरा देश गुलामी की जंजीर में पड़ा सो रहा था तब साबित्री बाई फुले ने महिला शिक्षा पर जोर देने का कार्य किया।

महिला शिक्षा का महत्व सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक उन्नति के लिए अपार है। सावित्री बाई फुले जैसे महान सामाजिक सुधारक ने महिला शिक्षा के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। सावित्री बाई फुले भारतीय इतिहास में एक महिला के रूप में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।

उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में एक अद्वितीय योगदान दिया। उनके साहसिक कार्यों ने समाज को सकारात्मक परिवर्तन के मार्ग पर आगे बढ़ाया और आधुनिक भारतीय महिलाओं के लिए महिला शिक्षा की महत्ता को साबित किया।

आज 5  सितम्बर 2023 को शिक्षक दिवस Teacher's Day 2023 के इस पावन अवसर पर हम  सावित्री बाई फुले के जीवन Life of Savitri Bai Phule, उनके महत्वपूर्ण कार्य और महिला शिक्षा Women's Education में उनके योगदान को विस्तार से जानेंगे।

इस पूरी दुनिया में समय-समय time by time  पर हज़ारो महान हस्तियों famous personality ने जन्म लिया और आज भी ये सिलसिला निरंतर चलता ही आ रहा है। किसी ने सच ही कहा है कि  जब तक यह दुनिया है, तब तक महान इंसानों का जन्म होता ही रहेगा।

हम हर दिन अपने आस-पास इस समाज को बनता और बिगड़ता देखते ही रहते हैं, क्योंकि प्रत्येक दिन लोगों का अच्छा और बुरा बर्ताव हमारे आस-पास के वातावरण को बदलता ही रहता है।

अगर हम बात करें उन सभ्यताओं civilizations की जिन्होनें हमें सदियों तक गुलाम बनाकर रखा और आज भी हम किसी न किसी सभ्यता, किसी न किसी क़ौम के विचारों से बंधे ही हुए हैं।

इतनी सारी बंदिशों के बाद भी कुछ लोग ऐसे उभर कर निकलते हैं जैसे दरिया को चीर कर एक मछली समंदर को पा जाती है, साथ ही साथ वह अपने पीछे इतनी संभावनाएं छोड़ कर जाती है कि उसके ही जैसे लोग उससे प्रेरित होकर अपने आप को किसी दलदल से निकाल पाने में सक्षम हो पाते हैं।

साबित्री बाई फुले Savitribai Phule भी एक ऐसी शख़्सियत रही हैं। 

ये बात उस दौर की है, जब पुरुषों को भी पढ़ने-लिखने में कितने पापड़ बेलने पड़ते थे। उस समय कोई महिला ही महिलाओं के हित की बात करे ये तो वही बात हो गयी कि किसी ने सूखे पत्तों को जीवन देने की बात कह दी हो।

एक समय ऐसा भी रहा है कि जब पूरी दुनिया तरक़्क़ी के परवाज़ को छू रही थी, फिर चाहे आप अमरीका America की बात करें या रूस Russia की। उस समय में हमारे देश में महिला शिक्षा women education की बात करना व्यर्थ की बात करने जैसा ही था।

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जब पूरा देश गुलामी की जंजीर में पड़ा सो रहा था तब साबित्री बाई फुले ने महिला शिक्षा पर जोर देने का कार्य किया। इतने बड़े काम के चलते आज पूरी दुनिया उन्हें भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका social reformer एवं मराठी कवियत्री Marathi poetess के नाम से जानती है। 

महिला शिक्षा की आवश्यकता Need for Women's Education:

महिला शिक्षा समाज के लिए आवश्यक है। यह न केवल महिलाओं के व्यक्तित्व और स्वावलंबन को विकसित करती है, बल्कि समाज को भी समृद्ध और प्रगतिशील बनाती है। महिला शिक्षा के माध्यम से महिलाओं को स्वतंत्रता, सामरिकता, आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की प्राप्ति होती है।

महिला शिक्षा की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि शिक्षित महिलाएं अपनी पूरी क्षमता से सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक विकास में योगदान कर सकती हैं। शिक्षित महिलाएं अपने अधिकारों को समझती हैं और उन्हें प्रयोग करने की क्षमता रखती हैं। इससे महिलाओं का समाज में सक्रिय और सामरिक भूमिका बढ़ती है, जिससे समाज की संपूर्णता और समृद्धि होती है।

महिला शिक्षा से महिलाओं को स्वतंत्रता की अनुभूति होती है। शिक्षित महिलाएं अपने निर्णयों को स्वतंत्रता से लेती हैं और अपने जीवन की प्रगति पर नियंत्रण रखती हैं।

महिलाओं को स्वतंत्र रूप से अपनी आवश्यकताओं, सपनों, और योजनाओं को पूरा करने की सामर्थ्य मिलती है। शिक्षा के माध्यम से महिलाएं नई विचारधारा विकसित करती हैं और खुद को सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक रूप से स्वावलंबी बनाती हैं। वे अपने जीवन में नए अवसर खोज सकती हैं और अपने करियर के क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकती हैं।

महिला शिक्षा द्वारा महिलाओं को सामरिकता की अनुभूति होती है। शिक्षित महिलाएं समाज में समानता के माध्यम से स्थान प्राप्त करती हैं और अपने अधिकारों की रक्षा करती हैं। वे स्वयं को सामाजिक और राजनीतिक निर्णयों में सक्रिय रूप से शामिल करती हैं और अपने विचारों और मतों को प्रदर्शित करने का साहस दिखाती हैं। महिला शिक्षा से उन्हें अपने परिवार, समाज, और देश के मामलों में सक्रिय भूमिका निभाने की प्रेरणा मिलती है।

महिला शिक्षा की दाई साबित्रीबाई Sabitribai phule the icon of women education

  • परिचय और संघर्ष Introduction and Conflict

साबित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ, यूँ समझिये की एक महिला समाज सुधारक के रूप में नए वर्ष में कोई सुगन्धित पुष्प खिला हो। ये भारतीयों के लिए आज भी एक आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत मानी जाती हैं। फिर तो पीछे इन्होनें 1852 में बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना school establishment की।

इनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे महिला शिक्षा माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले Jyotiba Phule से हुआ था, जिन्होंने इन्हें पढ़ाया लिखाया और शिक्षित बनाया। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि शादी के पश्चात तक इनको पढ़ना-लिखना नहीं आता था।

विवाह के बाद ज्योतिबा फुले ने इनको स्वयं ही पढ़ाया, उसके बाद तो ये भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक founder रहीं। इनका सबसे बड़ा रोल या किरदार दलित समाज dalit society की महिलाओं को पढ़ाने और उनको उनके हक़ दिलाने के रूप में देखा जाता है। 

जिस दौर में वे समाज सुधारक के रूप में कार्य कर रहीं थीं आप सभी जानते हैं कि वह कैसा समय था, अंग्रेजों की गुलामी और दलित के नाम का ठप्पा पूरा हिन्दुस्तान झेल रहा था। इतनी सारी विषमताओं के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी, आज पूरा देश उनको एक महानायिका social leader के रूप में देखता है मगर यही समाज पहले उन पर पत्थर मारता था, जब वे स्कूल जाती थीं या उनके विद्यालय जाने का विरोध करता था।

हर महान हस्ती के विरोधी कहाँ नहीं होते; सच तो ये है कठिन परिस्थितियों में जीने वाला ही महान बनता है। आप जान के हैरान होंगे कि लोग उन पर गंदगी भी फेंक देते थे। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं, तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर तक फेंका करते थे। इसलिए सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं।

उनकी यह धारणा से अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से दी उन्होंने। आज से 171 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप  माना जाता था तब ऐसा होता था। उन्होंने फिर भी ऊंच-नीच की खायी पाटने का काम करते हुए हर धर्म, हर जात और हर बिरादरी की महिलाओं के लिए काम किया।

  • सावित्री बाई फुले का योगदान Contribution of Savitri Bai Phule:

सावित्री बाई फुले, भारतीय महिला समाज की प्रथम शिक्षिका और सामाजिक सुधारक थीं। उन्होंने महिलाओं के शिक्षा के लिए अपसावित्री बाई फुले ने महिला शिक्षा के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। उन्होंने महिलाओं के लिए शिक्षा संस्थानों की स्थापना की, जहां महिलाएं पढ़ाई कर सकती थीं। उन्होंने महिलाओं को ज्ञान, स्वावलंबन और स्वतंत्रता की प्राप्ति के माध्यम से सशक्त बनाने का संदेश दिया। उनके द्वारा स्थापित की गई स्कूलों और शिक्षा संस्थानों ने हजारों महिलाओं को शिक्षा का लाभ पहुंचाया।

सावित्री बाई फुले ने विधवा और अपंग महिलाओं के लिए आश्रय स्थापित किए, जहां उन्हें स्वास्थ्य सेवाएं, रोटी-कपड़ा और शिक्षा की सुविधा मिलती थी। उन्होंने महिला शोषण और दाहिनिकता के खिलाफ लड़ाई लड़कर महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए संघर्ष किया।

सावित्री बाई फुले के महिला शिक्षा के प्रति समर्पण ने उन्हें एक सामाजिक सुधारक के रूप में प्रमुखता प्राप्त कराया। उन्होंने महिलाओं की आवाज बुलंद की और उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से महिला शिक्षा को लेकर सावित्री बाई फुले के समर्पण ने उन्हें एक सामाजिक सुधारक के रूप में प्रमुखता प्राप्त कराया। उन्होंने समाज में महिलाओं की मान्यता और सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने महिलाओं को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया और उन्हें समाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से सशक्त बनाने का प्रयास किया।

उनके संघर्ष ने महिलाओं को आत्मविश्वास, स्वावलंबन और समानता की भावना से परिपूर्ण किया। उन्होंने महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक किया और उन्हें स्वतंत्र निर्णय लेने की प्रेरणा दी। उन्होंने स्त्री शिक्षा के माध्यम से समाज में बदलाव की बुनियाद रखी।

सावित्री बाई फुले ने एक सामाजिक क्रांति के रूप में महिला शिक्षा को अपना महत्वपूर्ण उद्देश्य बनाया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में अपने अद्वितीय योगदान के लिए भारतीय समाज द्वारा सम्मानित किया जाता है। उनकी साहस और पराक्रम से भरी जीवन यात्रा ने महिला शिक्षा के क्षेत्र में एक नया मानचित्र बनाया।

सावित्री बाई फुले ने महिलाओं के लिए संघर्ष किया, उन्हें उद्धार किया और उन्हें एक नया दिशा-निर्देश प्रदान किया। उन्होंने विशेष रूप से विधवा, दिव्यांग और सामाजिक रूप से पिछड़ी महिलाओं के पक्ष में आवाज बुलंद की।

उनके संघर्षों ने भारतीय समाज को महिला शिक्षा के प्रति आकर्षित किया और उसे स्वतंत्रता, समानता और उन्नति की ओर आगे बढ़ाया। उन्होंने समाज को जागृत करने का कार्य किया और महिलाओं को उच्चतम शिक्षा के अवसर प्रदान किए। उनके प्रयासों से महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ और उन्हें समाज का हिस्सा बनाने के लिए आवाज बढ़ी।

सावित्री बाई फुले ने जीवनभर महिला शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए लगातार कार्य किया। उनके नेतृत्व में स्थापित हुए शिक्षा संस्थान और महिला सभाएं आज भी उनकी प्रतिष्ठा का प्रमाण हैं। 

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  • किस तरह की विद्यालय स्थापना और उनका निधन 

ये बात उन दिनों की है जब उनके पति ने कहा कि महिलाओं का उत्थान upliftment of women करने के लिए हमें एक विद्यालय की स्थापना की आवश्यकता होगी। तब उन्होंने 3 जनवरी 1848 पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।

एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार the then government ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल a female principal के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती।

लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया। 

वैसे तो आज उनके जन्मदिन के उपलक्ष में उनकी मर्त्यु की बात की जाये, ये थोड़ा बेबुनियाद सा लगता है। मगर जीवन की असल नियति यही है कि मर्त्यु एक मार्मिक सत्य है और सत्य पर पर्दा नहीं रखा जा सकता। आपको बता दें कि इस  महान नायिका साबित्रीबाई फुले जी का देहांत 10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण हो गया था।

  • कवियत्री के रूप में सावित्रीबाई फुले Savitribai Phule as a poet

सावित्रीबाई फुले के सामाजिक सुधारक के रूप में, वे कवित्री के रूप में भी मशहूर हुईं। उन्होंने कविताओं के माध्यम से अपने संघर्षों, आंदोलनों, और महिला शिक्षा के महत्व को व्यक्त किया। उनकी कविताएं समाज को जागरूक करने, जनता को संवेदनशील करने और न्याय के प्रति उत्साहित करने का कार्य करती थीं।

सावित्रीबाई फुले की कविताओं में सामाजिक और नैतिक संदेश होते थे जो महिलाओं के स्वाधीनता, समानता और उन्नति की मांग को दर्शाते थे। उनकी कविताएं बाधाओं, परिस्थितियों और समाज के अन्यायों के खिलाफ आवाज बुलंद करती थीं। वे महिलाओं के आंदोलन के प्रमुख उदाहरणों में से एक थीं और उनकी कविताओं के माध्यम से वे आपसी सद्भाव, समानता और न्याय के लिए आवाज उठाती थीं।

सावित्रीबाई फुले की कविताओं में एक गहरा भावुकता और संवेदनशीलता का महसूस होता है जो सामाजिक बदलाव और महिला सशक्तिकरण की मांग को प्रकट करता है।

सावित्रीबाई फुले की कविताएं साहित्यिक उत्कृष्टता का प्रमाण हैं और उनकी साहित्यिक प्रवृत्ति महिला और समाज के प्रति उनकी संवेदनशीलता और सामाजिक जगरूकता को दर्शाती हैं। 

की कविताओं में स्पष्ट रूप से महिलाओं के अधिकार, स्वावलंबन, आत्म-सम्मान और स्वतंत्रता की मांग की प्रकटि होती है। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से महिलाओं के जीवन में बदलाव का संकेत दिया। उनकी कविताओं में समाज के विभिन्न मुद्दों पर उनकी आवाज को मिलाकर एक विचारशीलता और संवेदनशीलता की भावना प्रतिफलित होती है।

उनकी कविताओं में उनके सामाजिक और राष्ट्रीय विचारधारा का भी प्रतिफलन होता है। वे महिला सशक्तिकरण के महत्व को समझती थीं और इसे अपनी कविताओं के माध्यम से समाज के सामाजिक जीवन में फैलाने का प्रयास करती थीं। उनकी कविताएं महिला शिक्षा, बाल विवाह, दहेज प्रथा, सामाजिक अंतरविरोध, जाति-धर्म भेदभाव, स्त्री दुर्गमीकरण, स्वतंत्रता संग्राम आदि विषयों पर उठती हैं।

सावित्रीबाई फुले की कविताओं में एक गहरा भावुकता और संवेदनशीलता का महसूस होता है जो सामाजिक बदलाव और महिला सशक्तिकरण की मांग को प्रकट करता है।

  • सावित्रीबाई फुले के सामाजिक कार्य Social work of Savitribai Phule

सावित्रीबाई फुले ने अपने सामाजिक कार्यों के माध्यम से महिला समाज को सशक्त बनाने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने भारतीय समाज में महिला शिक्षा को प्राथमिकता दी और महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं आरंभ की। उन्होंने नहीं सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में नई संस्थाएं स्थापित कीं, बल्कि महिलाओं की व्यावसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था को भी सुनिश्चित किया।

सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं के लिए एक निःशुल्क शिक्षा संस्था स्थापित की जिसका नाम "बालिका विद्यालय" "girls school" था। इस संस्था के माध्यम से वह महिलाओं को आधारभूत शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ महिलाओं को व्यावसायिक और वैज्ञानिक शिक्षा भी देती थीं। इससे महिलाओं की आत्मविश्वास और आत्मभरोसा मजबूत होता था और वे स्वयं को समाज में सशक्त महसूस करने लगती थीं।

सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं के लिए जाति-धर्म भेदभाव के खिलाफ सशक्त संघर्ष किया। उन्होंने सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं को चुनौती देते हुए महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने विवाह और बाल विवाह की प्रथाओं का खुलासा किया और जाति-धर्म के बाधाओं के बावजूद शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी।

उन्होंने समाज में जाति-धर्म भेदभाव को खत्म करने के लिए विभिन्न आंदोलनों और अभियानों का संचालन किया। उन्होंने महिलाओं को संघर्ष के लिए सशक्त बनाने के लिए सामाजिक समागमों, जनसभाओं, आंदोलनों, और प्रदर्शनों में भाग लिया। उन्होंने जाति-धर्म भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़कर महिलाओं को स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों का अनुभव कराया।

सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं को शिक्षा के माध्यम से जाति-धर्म भेदभाव के खिलाफ जागरूक किया।

सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं को शिक्षा के माध्यम से जाति-धर्म भेदभाव के खिलाफ जागरूक किया। उन्होंने महिलाओं के लिए निःशुल्क शिक्षा संस्थान खोला और उन्हें अवसर प्रदान किया जहां से महिलाओं को उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने का मार्ग मिला। उन्होंने जाति, धर्म, या लिंग के आधार पर शिक्षा में भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

उनके निःशुल्क शिक्षा संस्थान "बालिका विद्यालय" में, महिलाओं को विज्ञान, गणित, अंग्रेजी, और सामाजिक विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषयों की पढ़ाई कराई जाती थी। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि महिलाओं को शिक्षा के अधिकारों का उचित उपयोग करना सिखाया जाए, ताकि वे स्वयं को सशक्त बनाकर समाज में आगे बढ़ सकें।

सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं को शिक्षा में स्वावलंबी बनाने के लिए कई उपाय अपनाए।

निष्कर्ष 

सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं को शिक्षा में स्वावलंबी बनाने के लिए कई उपाय अपनाए। उन्होंने महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण, कौशल विकास, और रोजगार के अवसरों के बारे में जागरूक किया। उनका मुख्य उद्देश्य था महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए उपायों को प्रोत्साहित करना।

सावित्रीबाई फुले ने निर्माण कार्यों और उद्योगों में महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर सुनिश्चित किए। उन्होंने महिलाओं को टेक्सटाइल उद्योग, पोतकारी, कच्छी कारी, किताब बिंदी, और विभिन्न शिल्प और व्यापारिक क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिया।

इसके अलावा, उन्होंने कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित किए जहां महिलाओं को नौकरी प्राप्त करने के लिए आवश्यक योग्यताएं प्रदान की जाती थीं।

सावित्रीबाई फुले ने स्त्री उत्थान के लिए नारी सत्याग्रहों का आयोजन किया।