फायदेमंद मक्के की खेती,कुछ तो है कहती

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फायदेमंद मक्के की खेती,कुछ तो है कहती
18 Sep 2021
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मक्के के स्वरुप भुट्टे को तो हमने बहुत खाया है, चलिए जानते है की मक्के के और कितने स्वरुप होते है और उसके क्या फायदे है। इसके साथ ही मक्के की खेती कब कैसे होती है इसकी सही जानकारी से पैदावार में बढ़ोत्तरी होती है। ह्रदय रोगियों को रक्तचाप सामान्य बनाये रखने में भी मक्के का दाना भी सहायक है। मौसम के बदलाव के साथ कोरोना काल में भी इम्युनिटी को बढ़ाने और सर्दी जुखाम से बचने के लिए भुनें भुट्टे का सेवन इसके इलाज में रामबाड़ है।

मोटे अनाजों में शामिल मक्का सेहत के लिए बहुत लाभदायक है। इसकी सबसे ख़ास बात यह है, की यह हर मौसम में उगाया जा सकता है। भारत में गेहूँ के बाद सबसे ज्यादा उगाई जानें वाली फसल मक्का है। किसान बड़ी आसानी से इस फसल को उगाते हैं, क्योकि इसकी खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है। वर्तमान समय में मक्का सभी मोटे अनाजों की श्रेणी में प्रथम है, और जहां गेहूं और अनाज की उपज में कठनाई आ रही, वहीं मक्का उपज के शिखर पर पहुंच रहा है। पैदावार के नए मानक को निरूपित करते हुए लगभग 5.98% की बढ़ोत्तरी पर पहुंच गया है। इसकी ख़ास बात यह भी है की इसे मैदानी क्षेत्रों में उगाया जाता है, जिससे किसानों को सिचाई या अन्य कोई परेशानी का सामना नहीं झेलना पड़ता है। भारत में मक्के की खेती 2600 ई० के अंत में शुरू हुई और मौजूदा समय में हाल यह है की, भारत दुनिया में मक्के का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है। इसके साथ ही भारत में कई तरह के मक्के उगाये जाते है जिसमे पॉप कॉर्न, स्वीट कॉर्न, फ्लिंट कॉर्न, वैक्सि कॉर्न, पॉड कॉर्न, सॉफ्ट कॉर्न और डेंट कॉर्न शामिल है। किसान इसकी अच्छी पैदावार के लिए इसे मुख्यता तीन तरह के मौसम -मार्च, अप्रैल (जायद) जून के आरम्भ में और सितंबर-अक्टूबर में इसकी खेती करते हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में इसकी काफी जायदा मांग है, वैसे मक्के को भुट्टे के रूप में पका के खाया जाता है या उसके दानों को पॉपकार्न की तरह भी बहुत चाव से पसंद किया जाता है। बारिश के मौसम में भुट्टे को भून कर नमक के साथ खानें का अलग ही मजा है। चलिए जानें की आखिर कैसे मक्का हमारे सेहत के लिए कैसे लाभदायी साबित होता है?    

मक्का क्यों है सेहत के लिए लाभदायक?

मक्का औषधीय गुणों और फायदों का बहुत महत्वपूर्ण स्रोत है। पथरी या मूत्र सम्बन्धी समस्या से निपटने के लिए, इसके पत्ते को खानें से और उसके दानों का काढ़ा बना कर पीने से लम्बे समय तक राहत मिल सकती है। ह्रदय रोगियों को रक्तचाप सामान्य बनाये रखने में भी मक्के का दाना भी सहायक है। मौसम के बदलाव के साथ कोरोना काल में भी इम्युनिटी को बढ़ाने और सर्दी जुखाम से बचने के लिए भुनें भुट्टे का सेवन इसके इलाज में रामबाड़ है। आजकल की दौड़-भाग भरी जिंदगी में हम अपने खानपान पर उतना ध्यान नहीं दे पाते। फ़ास्ट फ़ूड और मसालेदार खाने से अधिकतर लोग पाइल्स या बवासीर जैसे बीमारियों से ग्रसित है। मक्के का काढ़ा बना कर पीने से इस घातक बीमारी से निजात पाया जा सकता है। इसके साथ ही माहवारी के समय कुछ औरतों को हद से ज्यादा ब्लीडिंग होने लगती है। जिससे दर्द उतपन्न होता, उसे रोकने के लिए मक्के का स्वरुप भुट्टा बहुत अच्छा उपचार है। खासी की बीमारी टीबी और लिवर समस्या से इजात के लिए भी मक्का या भुट्टा बहुत लाभकारी है। 

मक्के का एक स्वरुप उसके दानों को पीस कर बना आटा भी होता है। जिसके सेवन करने से डायबिटीज, आँखों की समस्या और हाइपरटेंशन की बीमारी से बचा जा सकता है। इसके साथ ही इसमें विटामिन ए के साथ फाइबर पाया जाता है। इसलिए मक्के का आटा अपने शरीर को हस्टपुष्ट और तंदुरूस्त रखने वाले व्यक्तियों की सबसे पहली पसंद होती है। इसको सेवन करने से खून की कमी नहीं होती और वजन भी नहीं बढ़ता। मक्के के विभिन्न स्वरुप है, भुट्टे और आटे के साथ इससे बने तेल को भी अच्छी सेहत के लिए उपयोग किया जा सकता है। इसके साथ भी पशु भी इसे चारे के रूप में सेवन करते हैं। मक्के के इतने सारे लाभदायक फायदे जानने के बाद चलिए जानते है किसान कैसे मक्के की खेती कर सकते है? 

कैसे कर सकते है मक्के की खेती?

मक्के की खेती के लिए मैदानी क्षेत्र होना जरुरी है, जहाँ पानी की पहुंच और निकाय सही तरह से हो सके। किसान खातों में पड़े कंकड़-पत्थर को हटाने के बाद उसमें पाटा चला देते है और इस प्रक्रिया को हैरो कहते है। रबी के मौसम में कल्टीवेटर चलाने के बाद दो बार हैरो की जाती है। यदि खाद गोबर का है तो  अंतिम जुताई के पूर्व खाद डाल देना जाना चाहिए। उसके बाद बीज रोपण की प्रक्रिया शुरू करने से पहले कीटनाशक डालना बहुत अहम फसल की पैदावार में अहम भूमिका निभाता है। इसके उपज में पानी का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसलिए हमेशा बरसात में या उससे 15 दिन पहले ही बीज बोना चाहिए।बुवाई का तरीका किसी भी प्रकार हो सकता है बस पौधों की संख्या 50-80 हजार हेक्टेयर किया जाना चाहिए। मेढ़ो के ऊपर किनारे रोपण करने से खाद अच्छी तरह से उपज में सहायक होता है।