खिलाड़ियों में उत्पन्न होते मानसिक तनाव
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खेलकूद का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है, स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह महत्वपूर्ण होता है। शरीर को तंदुरुस्त बनाने के लिए इनको अपनाना अच्छा विचार होता है। बढ़ते समय के साथ-साथ खेलकूद को मनोरंजन के साधन के साथ-साथ एक पेशे के रूप में भी अपनाया जाने लगा है।
खेलकूद का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है, स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह महत्वपूर्ण होता है। शरीर को तंदुरुस्त बनाने के लिए इनको अपनाना अच्छा विचार होता है। बढ़ते समय के साथ-साथ खेलकूद को मनोरंजन के साधन के साथ-साथ एक पेशे के रूप में भी अपनाया जाने लगा है। अधिक से अधिक लोग इसमें रुचि दिखाने लगे हैं। लेकिन खेलकूद में हार जीत तो लगी रहती है लेकिन दर्शक अपने पसंदीदा खिलाड़ियों से हमेशा जीत की उम्मीद लगाए रहते हैं। अतः पराजय मिलने पर उनमें आक्रोश की भावना जन्म लेती है, जो खिलाड़ियों के मानसिक तनाव को बढ़ाती है। जिसके कारण उनके स्वास्थ्य पर असर भी पड़ता है और कई बार यह भावनाएं घातक भी साबित होती हैं। इससे निपटने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि खिलाड़ी स्वयं को प्रेरित करें और अपनी गलतियों से सीख उसमें सुधार करें। साथ ही दर्शकों को भी अपनी आक्रोश को दबाए रखना चाहिए और खेलों का आनंद उठाना चाहिए।
खेल-कूद का महत्त्व
खेल प्रत्येक मानव के जीवन के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है जो उन्हें फिट रखने में सहायक होता है और शारीरिक ताकत को बनाए रखता है। जीवन के प्रत्येक चरण में इसका बहुत महत्व है। यह मनुष्य को शारीरिक और मानसिक दोनों तरीकों से स्वस्थ रखता है। शरीर में चुस्ती और फुर्ती बनाने के साथ-साथ शारीरिक क्षमता को बढ़ाता है। यह कहने में कोई संदेह नहीं है कि स्वस्थ जीवनशैली के लिए खेल-कूद की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। हर किसी को इसके प्रति जागरूक होना चाहिए।
वर्तमान समय में, हर कोई खास कर के युवा वर्ग अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक होता दिखाई दे रहा है। इसके लिए लोग अनेक प्रकार की प्रणालियों को अपनाते हैं जिनमें से स्पोर्ट्स एक लोकप्रिय गतिविधि है।
खेल-कूद, एक पेशा
हालांकि पुराने ज़माने में स्पोर्ट्स (खेल-कूद) को सिर्फ मनोरंजन का साधन माना जाता था लेकिन आज देखा जाए तो यह मनोरंजन के साथ-साथ लोगों के लिए एक पेशा भी बन गई है। युवा पीढ़ी इसे आजीविका के लिए भी अपना रही है। क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, टेनिस आदि खेलों में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं और इसे अपने पेशे के रूप में अपना रहे हैं। सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं बल्कि आम लोगों भी इन खेल-कूद में अपनी रूचि दिखाते हैं। आज विश्व स्तरों पर यह स्पोर्ट्स आयोजित किए जाते हैं और अपने राष्ट्र को प्रदर्शित करते हैं, जिन्हें देखने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। लोग अच्छे खिलाड़ियों को अपना प्रेरणास्रोत (रोल-मॉडल) मानने लगते हैं और उनसे जीत की आशाएं रखते हैं। हालांकि हर खिलाड़ी भी जीत की आशा के साथ ही खेलता है और दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतरने का पूरा प्रयास करता है। लेकिन वह किसी कारणवश अच्छा प्रदर्शन न कर पाए और हार गए। इसका खिलाड़ियों के मस्तिष्क पर कैसा असर होता है यह भी विचार आवश्यक है।
खिलाड़ियों की मानसिक स्थिति पर प्रभाव
खिलाड़ी अक्सर लक्ष्य उन्मुख होते हैं और अपना उत्तम प्रदर्शन करने का प्रयास करते हैं। लेकिन हर चीज़ में जीत और हार दोनों को स्वीकार करना पड़ता है। दर्शकों द्वारा इतनी आशाओं के कारण खिलाड़ियों के पराजित होने पर उनमें ग्लानि की भावना जन्म लेने लगती है। कई बार यह भावना उनके मस्तिष्क को बुरी तरह प्रभावित करती है। उनपर अनेक प्रकार के दबाव होते हैं। पराजय मिलने पर दर्शकों का उस विशेष खिलाड़ी के प्रति आक्रोश, उनकी इस भावना को और बढ़ा देता है। नए खिलाड़ियों में यह भावना आने की संभावना अधिक होती है। यदि निरंतर हार मिलती रहे तो उनमें हीन भावना जन्म लेती है और आगे न बढ़ पाने की सोच जागृत होती है। ऐसा मनोभाव आने पर खिलाड़ियों में अवसाद (डिप्रेशन) और चिंता बढ़ जाती है। कई बार तो ऐसा भी देखा गया है कि कुछ खिलाड़ी इस कारण आत्महत्या तक कर लेते हैं जो दुख और चिंता का विषय है।
घातक भावनाओं का समाधान
खिलाड़ियों के मन से इस भावना को निकालने के लिए उन्हें चाहिए कि वे स्वयं को प्रेरित करते रहें और अपनी कमियों पर पुनर्विचार करें। अपनी गलतियों पर ग़ौर करें और उसपर काम करें जिससे आगे वह अच्छा प्रदर्शन कर सकें। खिलाड़ियों के साथ-साथ दर्शकों को भी इस बात पर गौर अवश्य करना चाहिए कि उनका द्वेष और आक्रोश खिलाड़ियों के मस्तिष्क पर कितना गहरा प्रभाव डाल सकता है। खेल को मात्र मनोरंजन की तरह देखना चाहिए। हार और जीत दोनों ही खेल का हिस्सा होते हैं अतः इनमें समान भाव रखना चाहिए। ऐसे खेल का कोई मतलब नहीं जो किसी खिलाड़ी की मानसिक स्थिति पर प्रभाव डाले और उनमें आत्मघाती विचारों को जन्म दे। खिलाड़ियों को निरंतर स्वयं को प्रेरित करना चाहिए कि उनके मन में ऐसी घातक भावनाएं न पैदा हों।
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