लिखता हूँ

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 लिखता हूँ
31 Jul 2021
4 min read

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इस रचना में कवि यह बताना चाहता है कि उसकी सोच उसका भाव क्या है ? मैं लेखक हूँ और मैं क्या क्या लिखता हूँ, इस भाव को कवि प्रस्तुत कर रहा है। 

जो ज़हन में आए बातें तमाम लिखता हूँ,
सदाकत ज़िन्दगी की सरेआम लिखता हूँ !!!

लिखे होंगे सबने ही, कलमे हक़ीक़त के,
मैं तजुर्बे की कलम से कलाम लिखता हूँ !!!

तन्हा दिनों को लिख दिया तक़दीर में मेरी,
मैं हिज्र की रातें वस्ल के नाम लिखता हूँ !!!

मुझसे पूछते हैं वो, मेरी मिल्कियत क्या है,
उनको बता दो मैं खुशी का दाम लिखता हूँ !!!

नहीं मैं चाहता हर कोई मेरी कैफ़ियत पूछे,
मेरे अपने सलामत हों यही पैग़ाम लिखता हूँ !!!

मस्ज़िद में आरती मंदिर में अज़ान लिखता हूँ,
अली की दिवाली राम का रमज़ान लिखता हूँ !!!

मज़हब में ना बंटा उसे भारत महान लिखता हूँ,
हिन्दी, उर्दू मोहब्ब्त को हिन्दुस्तान लिखता हूँ !!!