गुलामी की ज़ंजीरों को तोड़ फेंकने वाला दिवस
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गुलामी की ज़ंजीरों में बंधा हुआ इंसान अपने अस्तित्व तक को भूल जाता है। गुलामों का अस्तित्व भले ही ना होता हो लेकिन गुलामी का अस्तित्व आज भी है। आज भी अफ्रीका जैसे गरीब देशों में गुलामी जिंदा है, और इसका जिंदा होना मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा। गुलामों के परिवार में पैदा होने वाले भी कुछ सोंच समझ पाने से पहले ही गुलाम बन चुके होते हैं। यह घटनाक्रम ऐसे ही चलता रहता है, जो गुलामी को उखाड़ फेंकने में सबसे बड़ा अवरोध है।
गुलामी दुनिया की सबसे भयंकर त्रासदी में से एक है। गुलामी की जंजीरों में बंधा हुआ इंसान अपने अस्तित्व तक को भूल जाता है। गुलाम इंसान सही और गलत के बीच का अंतर भूल जाता है। गुलाम की कोई इच्छाएं नहीं होती, ऐसा व्यक्ति सिर्फ अपने स्वामी की सेवा को ही अपना लक्ष्य समझता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 23 अगस्त का दिन गुलामी की इसी दास्तां को तोड़ने, गुलामों को सम्मानित करने और दुनिया में दास प्रथा का बहिष्कार करने के लिए समर्पित किया गया है।
गुलामी के इस दौर से गुजर चुका है भारत-
किसी ना किसी समय में दुनिया के अधिकतम देश गुलामी के इस दौर से गुजर चुके हैं। भारत भी गुलामी से अछूता नहीं रहा। लगभग 200 साल अंग्रेजों का गुलाम रहा भारत इस दर्द को अच्छे से समझता है। अंग्रेजों के शासन काल में भारतीयों के साथ गुलामों की तरह व्यवहार किया जाता है। हमारे ही देश में, हमारे ही संसाधनों का इस्तेमाल कर हमें ही गुलामों की तरह रखा जाता था। अंग्रेजों के शासन से पहले मुगल काल के दौरान भी भारतीयों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता था। गुलामों का जीवन नर्क से बुरा होता है। कहते हैं सबसे दर्दनाक होता है किसी की इच्छाओं का मर जाना, यह कथन गुलामों के जीवन पर बिल्कुल सटीक बैठता है। गुलामों को कई प्रकार की दर्दनाक यातनाएं दी जाती है। इस दर्दनाक यातनाओं का गुलामों में इस कदर डर बैठ जाता है कि वो चाह कर भी विद्रोह नहीं कर पाते। गुलामों का यही डर उनके दर्द का कारण है। हाथी के पास पार शारीरिक शक्ति होती है लेकिन जब उसे एक छोटे से खूँटे से बांध दिया जाता है तो वह खुद को आजाद करने के लिए अपने बल का प्रयोग नहीं कर पाता, क्योंकि वो अपनी शक्ति को भूल चुका होता है। ठीक इसी प्रकार एक गुलाम भी अपनी शक्ति, अपने अस्तित्व को खो देता है।
गुलामों का अस्तित्व भले ही ना होता हो लेकिन गुलामी का अस्तित्व आज भी है। आज भी अफ्रीका जैसे गरीब देशों में गुलामी जिंदा है, और इसका जिंदा होना मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा। गुलामों के परिवार में पैदा होने वाले भी कुछ सोंच समझ पाने से पहले ही गुलाम बन चुके होते हैं। यह घटनाक्रम ऐसे ही चलता रहता है, जो गुलामी को उखाड़ फेंकने में सबसे बड़ा अवरोध है।
समय के साथ-साथ गुलामी और भी व्यापक हो गई है, गुलामी मुख्यतः दो प्रकार की होती है।
शारीरिक गुलामी- कुछ सदियों पहले इस प्रकार की गुलामी अधिकतर देशों में देखने को मिल जाती थी, जहां गुलाम अपनी सारी शारीरिक शक्ति का प्रयोग अपने स्वामी को संतुष्ट करने के लिए करते थे। इसमें कई प्रकार की शारीरिक यातनाओं का सामना करना पड़ता था। हालांकि वर्तमान में इस प्रकार की गुलामी में कमी आई है।
मानसिक गुलामी- मानसिक गुलामी का अर्थ है मानसिक रूप से किसी चीज के अधीन हो जाना। यह काफी हद तक इंसान के व्यक्तित्व पर भी निर्भर करता है। हर इंसान किसी ना किसी चीज का मानसिक रूप से गुलाम अवश्य होता है। यह अलग-अलग इंसान में कम और ज्यादा की मात्रा में मौजूद होता है। कोई इंसान अपनी महत्वकांक्षा का गुलाम होता है कोई लालच का। शारीरिक गुलामी से निकलना तो एक बार को संभव भी है पर मानसिक गुलामी से निकालना असंभव है।
इंसान आज भी अपनी सोंच का अपनी बुरी आदतों का गुलाम है। लिंग,धर्म,जाति,भाषा के आधार पर भेदभाव हो या दूसरों के प्रति ईर्ष्या, द्वेष और घृणा की भावना यह सब मानसिक गुलामी की श्रेणी में आता है। गुलामी काफी पहले से चली आ रही एक प्रथा है, जिसका अंत अब आवश्यक है। इसके लिए सबको मानवता के पथ पर चलना होगा। यह समय है जब संपूर्ण मानव समाज को साथ आकार दास प्रथा का बहिष्कार करना होगा। जब तक समाज में शारीरिक या मानसिक किसी भी प्रकार के गुलाम मौजूद रहेंगे, तब तक समाज का कल्याण असंभव है। विश्व को गुलामी के बंधन से मुक्त करने और मानवता के उत्थान के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकजुट प्रयास आवश्यक है।
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