आजादी का अमृत महोत्सव - स्वतंत्रता आंदोलन की ये सशक्त महिलाएं

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आजादी का अमृत महोत्सव - स्वतंत्रता आंदोलन की ये सशक्त महिलाएं
13 Aug 2022
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आजादी के लिए और देश के लिए अहम योगदान देने वाले वीरों में देश की कुछ महान महिलाएं भी थीं। आजादी के लिए कुर्बानी देने में पुरुषों के साथ-साथ ये महिलाएं पीछे नहीं रही, उन सभी महिलाओं के लिए सिर्फ और सिर्फ देश सर्वोपरि था। उन अद्भुत, अद्वितीय महिलाओं के लिए लोगों के लिए दिलों में सम्मान और कृतज्ञता का भाव आजीवन रहेगा। आज आजादी के अमृत महोत्सव ‘Azadi Ka Amrit Mahotsav’ पर वक्त है उनके योगदानों को और उनके द्वारा देश के लिए किये गए कार्यों और संघर्षों को फिर से एक बार जीवित करने का। क्योंकि स्वतंत्रता आंदोलन की इन सशक्त महिलाओं का उल्लेख किये बिना आजादी के अमृत महोत्सव की चर्चा अधूरी है, तो चलिए आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर हम उन साहसी महिलाओं को याद करते हैं और नमन करते हैं, जिन्होंने अपना हर पल, हर क्षण इस भारत देश के लिए न्यौछावर किया। शायद इस आजादी के अमृत महोत्सव के पावन अवसर पर यह हमारा उनके प्रति एक सच्चा सम्मान होगा। भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। इस 15 अगस्त, 2022 को देश आजादी की 75 वर्षगाँठ मनायेगा। यानि इसमें देश की अदम्य भावना के उत्सव व सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे और भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने का उत्सव मनाया जायेगा। इन सभी महिलाओं ने राष्ट्र के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये सभी महिलाएं विलक्षण प्रतिभा की धनी थी। हम सबका फर्ज है कि हम भारतीय समाज और देश के लिए किये गए उनके बलिदान और कार्यों को हमेशा याद रखें। 

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महिलाओं ने समय-समय पर साबित किया है कि अगर हमें मौका दिया जाए तो हम नामुमकिन को भी मुमकिन में बदल सकते हैं । और ये सच भी है कि अगर पाबंदियां हटा दी जाये ये महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं और मेरा तो मानना है कि यदि ये साहसी और निडर महिलाएं जीवन में आगे बढ़ गयी तो फिर शायद रोशनी के लिए चिरागों की जरूरत नहीं पड़ेगी। जैसे कि हम सब जानते हैं कि महिलाएं किसी भी कार्य और क्षेत्र में पीछे नहीं है। इसी प्रकार से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम Indian freedom struggle में भी भारतीय महिलाओं का अभूतपूर्व सहयोग रहा। भारत को आज़ाद कराने के संघर्ष में कई साहसी और सशक्त महिलाओं Courageous and Strong Women ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाजें उठाई। इन महिलाओं में एक ग़ज़ब का साहस और प्रखर राष्ट्रवादी भावना strong nationalist sentiment थी। भारत की इन महिला स्वतंत्रता सेनानियों women freedom fighters ने देश की आज़ादी के लिए, कई परेशानियों से लड़ते हुए और हर चुनौती पर विजय पाते हुए देश एवं समाज के लिए जो लडाई लड़ी वह अविस्मरणीय है। एक स्वच्छ और स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण में उनके योगदानों को देश कभी भुला नहीं पायेगा। 

आजकल आजादी का अमृत महोत्सव ‘Azadi Ka Amrit Mahotsav’ एक चर्चित विषय बना हुआ है। आज हम सब आजादी के अमृत महोत्सव दिवस पर उन प्रेरणादायक एवं प्रतिभा की धनी महिलाओं के बलिदानों को याद करें तभी जाकर आजादी का अमृत महोत्सव का उत्सव सार्थक हो पायेगा। आजादी का अमृत महोत्सव भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने का एक अखिल भारतीय उत्सव An All India Celebration of 75 Years of Independence है। पूरे देश में हर कोई इस आजादी के जश्न को अपने अपने स्तर और तरीकों से मना रहा है। देश को अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों से निकालने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। आजाद भारत का सपना समय के साथ और प्रबल होता गया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने हंसते हंसते फांसी के फंदे को गले लगा दिया। इन सभी वीरों की गाथा आज भी लोगों के अंदर देश प्रेम का भाव जगा देती है। इनके अलावा भारत की भूमि पर कई ऐसी महिलाएं भी हुईं, जिन्होंने आजादी की लौ को जलाया। इन देश प्रेम से ओतप्रोत महिला स्वतंत्रता सेनानियों Women freedom fighters full of patriotism ने आजादी के लिए संघर्ष किया। उन महिलाओं ने आराम और चैन की जिंदगी को छोड़कर अपना पूरा सर्वस्व देश के नाम न्यौछावर कर दिया और स्वतंत्रता संग्राम के मैदान में कूद पड़ीं। चलिए आजादी के अमृत महोत्सव के इस मौके पर जानिए भारत की इन साहसी और आत्मविश्वास से भरपूर महिलाओं के बारे में। 

दुर्गावती देवी Durgawati Devi

दुर्गावती देवी को गुलाम भारत की आयरन लेडी iron lady कहा जाता है। वीरांगना दुर्गा भाभी का जन्म कौशांबी के सिराथू तहसील के शहजादपुर गांव में सात अक्टूबर 1907 को हुआ था। पति भगवती चरण वोहरा Bhagwati Charan Vohra के क्रांतिकारी भाव ने दुर्गा भाभी को भी देशप्रेम की भावना patriotism से भर दिया था इसलिए वह भी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी Hindustan Socialist Republican Army (HSRA) की सदस्य बन गईं। दुर्गा भाभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की प्रमुख सहयोगी थी। दुर्गावती देवी, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु Durgawati Devi, Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru की तरह भले ही दुर्गा भाभी देश के लिए फांसी पर न चढ़ी हों लेकिन उनके कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ती रहीं। दुर्गावती भारत की आजादी और ब्रिटिश सरकार को देश से बाहर खदेड़ने के लिए सशस्त्र क्रांति में सक्रिय भागीदार थीं। दुर्गा भाभी ने भगत सिंह और उनके साथियों की जमानत के लिए एक बार अपने गहने तक बेच दिए थे। उनके पति क्रांतिकारी थे इस वजह से वोहरा की पत्नी होने के नाते HSRA के अन्य सदस्य उन्हें भाभी कहते थे। इस तरह फिर दुर्गावती वोहरा Durgavati Vohra बन गईं दुर्गा भाभी और इसी नाम से मशहूर हो गईं। ‘दुर्गा भाभी’ नाम से मशहूर दुर्गा देवी बोहरा ने भगत सिंह को लाहौर जिले से छुड़ाने का प्रयास किया था। 

सन् 1927 में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिये लाहौर में बुलायी गई बैठक की अध्यक्षता भी दुर्गा भाभी ने की। बम्बई के गर्वनर हेली को मारने की योजना में टेलर नामक एक अंग्रेज अफसर घायल हो गया, जिस पर गोली दुर्गा भाभी ने ही चलायी थी। फिर 12 सितम्बर 1931 को दुर्गा भाभी को लाहौर से गिरफ्तार कर लिया गया। कभी मर्दों की वेष भूषा पहनकर कर उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया तो कभी बाल गंगाधर तिलक के गरम दल में शामिल होने पर गिरफ्तार हुई और इन्हे जेल भेज दिया गया। जेल में रहकर उन्होंने चक्की भी पीसी। दुर्गावती भारत की आजादी और ब्रिटिश सरकार को देश से बाहर खदेड़ने के लिए सशस्त्र क्रांति में सक्रिय भागीदार थीं। दुर्गाभाभी को पिस्तौल चलाने में महारथ हासिल थी और वह बम बनाना भी जानती थीं। दुर्गा भाभी का काम साथी क्रांतिकारियों के लिए राजस्थान से पिस्तौल, बम और बारूद लाना और ले जाना था। ऐसी थी वीरांगना दुर्गा भाभी, उस महान क्रांतिकारी दुर्गा भाभी को देश कभी भुला नहीं हो पायेगा। 

अरूणा आसफ अली Aruna Asaf Ali

अरूणा आसफ अली को भारत की आजादी के लिए लड़ने वाली एक सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में पहचाना जाता है। अरुणा आसफ अली का जन्म 16 जुलाई 1909 को कालका (हरियाणा) के एक रूढ़िवादी हिंदू बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पति आसफ अली स्वतंत्रता संग्राम Freedom Struggle से पूरी तरह से जुड़े हुए थे, इसलिए अरुणा आसफ अली भी उनके साथ जुड़ गयीं। 1930 में नमक सत्याग्रह Salt Satyagraha के दौरान उन्होंने सार्वजनिक सभाओं को सम्बोधित किया और जुलूस निकाला। उन्होंने एक कार्यकर्ता होने के नाते नमक सत्याग्रह में भाग लिया और लोगों को अपने साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें एक साल जेल की सजा सुनाई लेकिन एक जन आंदोलन के कारण ब्रिटिश सरकार को उन्हें छोड़ना पड़ा। 

अरुणा आसफ अली ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन Quit India Movement में सक्रिय रूप से भाग लिया था। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मासिक पत्रिका ‘इंकलाब’ Monthly magazine 'Inquilab' का भी संपादन किया। उन्होंने मुंबई के गवालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर अंग्रेजों को भारत छोड़ने की चुनौती दे डाली थी। फिर वह बीमार हो गईं और गांधी जी ने उन्हें आत्मसमर्पण करने की सलाह दी। 26 जनवरी 1946 में जब उन्हें गिरफ्तार करने का वारंट रद्द किया गया तब अरुणा आसफ अली ने स्वयं आत्मसमर्पण किया। वह दिल्ली की प्रथम मेयर चुनी गईं। 1975 में उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार Lenin Peace Prize और 1991 में अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान के लिए जवाहर लाल नेहरू पुरुस्कार से भी सम्मानित किया गया। साल 1998 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था और भारतीय डाक सेवा द्वारा जारी किए गए एक डाक टिकट से सम्मानित किया गया। आजादी की लड़ाई में एक नायिका के तौर पर उभरने वाली और अद्भुत कौशल से परिपूर्ण इस आंदोलनकारी अरुणा आसफ अली का 29 जुलाई 1996 को देहांत हो गया। हम सब भारतवासी आजादी के अमृत महोत्सव पर उन्हें सलामी देते हैं। 

कस्तूरबा गांधी Kasturba Gandhi

कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल 1869 में हुआ था। इनकी मात्र 13 साल की उम्र में शादी कर दी गई। जब कस्तूरबा सात साल की थीं तभी उनकी सगाई गांधीजी से कर दी गई और फिर बाद में शादी। कस्तूरबा गांधी का जीवन कठिन संघर्षों में गुजरा। उन्होंने कभी गांधी जी से शिकायत नहीं की। गांधी जी देश सेवा में जुट गए और साधारण सूती धोती पहन आश्रमों में रहे। उन्होंने बेहद सादा जीवन जिया लेकिन कस्तूरबा ने इन संघर्षों को बिना किसी शिकायत के जिया। उन्होंने बापू से पति धर्म निभाने की उम्मीद नहीं रखी, बल्कि खुद बापू की ताकत बन उन्हें संघर्ष करने के लिए हिम्मत देती रही। कस्तूरबा ने पूरी उम्र गांधीजी का साथ दिया। यहाँ तक कि गांधी जी स्वतंत्रता संग्राम के लिए जेल गए तो कस्तूरबा ने उनका साथ दिया। कस्तूरबा मोहनदास के साथ हर पल रहती थी। गांधीजी धरना प्रदर्शन करते तो कस्तूरबा उनकी देखभाल करतीं। कस्तूरबा गंभीर ब्रोंकाइटिस रोग से पीड़ित थीं। 

एक समय ऐसा आया जब कस्तूरबा सिर्फ गांधी जी की पत्नी नहीं थी बल्कि वह हर देशवासी की 'बा' बन गईं। एक संपन्न परिवार की बेटी महात्मा गांधी Mahatma Gandhi के साथ आश्रम में रहने आ गई। अपने कामों से हर देशवासी की 'बा' बन गईं। यह उपाधि कस्तूरबा को उनके कामों की वजह से मिली। जब गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था तब इस ओर पहली बार ध्यान कस्तूरबा गांधी का ही गया था। कम ही लोगों को पता है कि इसमें कस्तूरबा की भूमिका कितनी अहम थीं। उन्होंने आवाज उठाई तो तीन महीने के लिए कस्तूरबा को जेल की सजा हो गई। जेल में भी कस्तूरबा रूकी नहीं, उन्होंने जेल में कैदियों को प्रार्थना का महत्व सिखाया। कैदियों के दुख दर्द की साथी बनी। उनके इसी व्यवहार से देख लोग उन्हें बा कहने लगे। महात्मा गांधी स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसा का पथ पर चलते हुए देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष करते रहे। कस्तूरबा गांधी उनके हर कदम से कदम मिलाकर चलती रही। उन्होंने आजादी के लिए भुला दिया कि महात्मा गांधी उनके पति हैं। 

सरोजिनी नायडू Sarojini Naidu

भारतीय कोकिला Indian Nightingale के नाम से मशहूर सरोजिनी नायडू सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ही नहीं, बल्कि बहुत अच्छी कवियत्री भी थी। सरोजिनी नायडू ने खिलाफत आंदोलन की बागडोर संभाली और अग्रेजों को भारत निकालने में अहम योगदान दिया। भारत की महान सफल महिलाओं की लिस्ट में सरोजिनी नायडू का नाम सबसे उपर आता है। सरोजिनी जी का जन्म एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके एक भाई वीरेन्द्रनाथ क्रन्तिकारी थे, जिन्होंने बर्लिन कमिटी बनाने में मुख्य भूमिका निभाई थी। सरोजिनी नायडू को उर्दू, तेलगु, इंग्लिश, बंगाली आदि सभी भाषाओं का अच्छे से ज्ञान था। सरोजिनी नायडू ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के गिरतों कॉलेज से पढाई की। कॉलेज की पढाई के दौरान सरोजिनी जी की मुलाकात डॉ गोविन्द राजुलू नायडू Dr. Govind Rajulu Naidu से हुई। 19 साल की उम्र में पढाई ख़त्म करने के बाद सरोजिनी जी ने अपनी पसंद से 1897 में दूसरी कास्ट में शादी कर ली थी। सरोजिनी जी बहुत सुंदर सुंदर कविता लिखा करती थी, जिसे लोग गाने के रूप में गाते थे। जवाहरलाल नेहरु, रवीन्द्रनाथ टैगोर Jawaharlal Nehru, Rabindranath Tagore जैसे महान लोग भी थे उनकी कविताओं को पसंद करते थे। वे इंग्लिश में भी अपनी कविता लिखा करती थी, उनकी कविताओं में भारतीयता झलकती थी। 

गोपाल कृष्ण गोखले Gopal Krishna Gokhale ने उनसे कहा कि कि वह अपनी कविताओं में क्रांतिकारीपन लायें और स्वतंत्रता की लड़ाई में साथ देने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करें और जागरूक करें। फिर जब वह 1916 में महात्मा गाँधी से मिली तो उनकी सोच पूरी तरह से बदल गई, उन्होंने अपनी पूरी ताकत देश को आजाद कराने में लगा दी। फिर वह जहाँ भी गई वहां उन्होंने लोगों को देश की आजादी के बारे में बताया। देश की आजादी उनके जेहन में भर चुकी थी। सरोजिनी जी ने औरतों को उनके अधिकार के बारे में बताया, उन्हें घर से बाहर निकाला। साथ ही देश की आजादी की लड़ाई में आगे आने को प्रोत्साहित किया। 1925 में सरोजिनी जी कानपूर से इंडियन नेशनल कांग्रेस की अध्यक्ष बन गयी। उन्होंने गांधीजी के अहिंसावादी बातों को माना और उसे लोगों तक पहुँचाया। 1930 में सरोजिनी जी ने गांधीजी के नमक सत्याग्रह में अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद जब 1930 में गांधीजी को गिरफ्तार किया गया तब सरोजिनी जी गांधीजी की जगह कमान संभाली थी। साथ ही उनकी 1942 में गाँधीजी के भारत छोड़ो आन्दोलन में मुख्य भूमिका थी। यहाँ तक कि उन्हें गांधीजी के साथ 21 महीनों तक जेल में भी डाला गया था। 1947 में देश की आजादी के बाद सरोजनी जी को उत्तर प्रदेश का गवर्नर बनाया गया, वह पहली महिला गवर्नर first woman governor थी। 

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विजया लक्ष्मी पंडित Vijaya Lakshmi Pandit

विजया लक्ष्मी पंडित एक कुलीन परिवार से ताल्लुक रखती थीं। विजय लक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 को गांधी-नेहरू परिवार में हुआ था। विजय लक्ष्मी पंडित, देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू First Prime Minister Pandit Jawaharlal Nehru की बहन थी। उन्होंने भी आज़ादी की लडाई में हिस्सा लिया और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अपना अमूल्य योगदान दिया। वह जवाहर लाल नेहरू की बहन थीं लेकिन देश की आजादी के लिए वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ीं। आंदोलनों मे भाग लेने के कारण उन्हें जेल मे भी बंद किया गया। वह हर आन्दोलन में आगे रहती और जेल भी जाती। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा लेकिन वह डरी नहीं। ब्रिटिश राज के दौरान किसी कैबिनेट पद पर रहने वाली प्रथम महिला विजयलक्ष्मी पंडित ही थीं। विजय लक्ष्मी पंडित भारत की संविधान सभा की सदस्य member of the constituent assembly भी थी। भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली मंत्री भी थी। वह संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष और स्वंत्रत भारत की पहली महिला राजदूत First woman ambassador of independent India थी, जिन्होंने मॉस्को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् वे राजनयिक सेवाओं का हिस्सा बनीं तथा उन्होंने विश्व के अनेक देशों में भारत के राजनयिक के पद पर कार्य किया। विजय लक्ष्मी पंडित ने अपने पति के साथ आजादी के आन्दोलन में भाग लिया और वो हमेशा राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय रही। गांधीजी से प्रभावित होकर उन्होंने भी आज़ादी के लिए आंदोलनों में भाग लेना आरम्भ कर दिया। फिर उन्होंने गाँधीजी के 'असहयोग आन्दोलन' Non cooperation movement में भी भाग लिया। आन्दोलन में भाग लेने के कारण विजयलक्ष्मी पण्डित को 1932 में गिरफ़्तार भी किया गया। सन 1940 से 1942 तक वह आल इंडिया womens कान्फ्रेंस के अध्यक्ष के पद पर भी रही। इसके अलावा विजयलक्ष्मी पण्डित देश-विदेश के अनेक महिला संगठनों से भी जुड़ी हुई थीं। 1962 से 1964 तक वे महाराष्ट्र के राज्यपाल के पद रहीं। 1979 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया।

लक्ष्मी सहगल Lakshmi Sehgal

लक्ष्मी सहगल के नाम से आज कुछ लोग ही वाकिफ हैं लेकिन अपने कार्यों की वजह से वह कुछ चुनिंदा लोगों की स्मृति में हमेशा के लिए विराजमान हैं। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है शायद लक्ष्मी पर कोई बायोपिक नहीं बनी है इसलिए देशभर की जनता इस नाम से परिचित नहीं है। डॉक्टर लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्तूबर 1914 को एक तमिल परिवार में हुआ था। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद लक्ष्मी ने मेडिकल की पढ़ाई शुरू की और 1938 में मद्रास मेडिकल कॉलेज से पासआउट होकर एक डॉक्टर बन गईं। लक्ष्मी सहगल ने पेशे से डॉक्टर रहते हुए भी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर प्रमुख भूमिका निभाई थी। लक्ष्मी सहगल ने साल 2002 के राष्ट्रपति चुनावों में भी हिस्सेदारी निभाई थी। वो राष्ट्रपति चुनाव में वाम-मोर्चे की उम्मीदवार थीं लेकिन एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें हरा दिया था। उनका पूरा नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन सहगल था। लक्ष्मी के घरवाले आज़ादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे। लक्ष्मी भी बदलाव का कारण बनना चाहती थी और इस सिलसिले में वो सिंगापुर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से मिलीं। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने नेताजी से अपने को भी शामिल करने की इच्छा व्यक्त की थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस Netaji Subhash Chandra Bose की अनुयायी के तौर पर वे इंडियन नेशनल आर्मी Indian National Army में शामिल हुईं थीं। नेताजी ने लक्ष्मी सहगल का लगभग 5 घंटे का इंटरव्यू लिया और सिर्फ़ महिलाओं की 'रानी झांसी रेजिमेंट' Rani of Jhansi Regiment बनाने का निर्णय लिया। रेजिमेंट की कमान लक्ष्मी के हाथों में दी गई और वो डॉक्टर से कैप्टन बन गईं। 

1943 में डॉ. लक्ष्मी ने रानी झाँसी रेजिमेंट में कैप्टेन पद पर कार्यभार संभाला। 1500 स्वतंत्रता सेनानी और 200 नर्सों को रेजिमेंट में शामिल किया गया। 23 अक्टूबर, 1943 को रेजिमेंट की ट्रेनिंग सिंगापूर और रंगून में शुरु हुई। अपने साहस और अद्भुत कार्य की बदौलत ही उन्हें कर्नल का पद मिला था। इम्फाल में फौज ने जापानी आर्मी के साथ मिलकर हमला किया था जिसे अंग्रेज़ों ने बुरी तरह दबाया। हारकर फौज को वापस लौटना पड़ा। फौज ने बर्मा में ही अंग्रेज़ों को मुंहतोड़ जवाब दिया। रानी झांसी रेजिमेंट को निरस्त कर दिया गया और बर्मा में उनके परिवारों के पास वापस भेजा गया। लक्ष्मी ने आज़ाद हिन्द फौज के अस्पताल में अपनी सेवाएं देने का निर्णय लिया। जून 1945 में लक्ष्मी और फौज के कई लोग गिरफ़्तार कर लिए गए। लक्ष्मी को रनगून भेजा गया और नज़रबंद रखा गया। मार्च, 1946 में लक्ष्मी को वापस भारत भेज दिया गया। देश की आज़ादी के बाद लक्ष्मी ने दोबारा डॉक्टर कोट पहना और मरीज़ों की सेवा जारी रखी। महिलाओं की दशा बदलने के लिए उन्होंने ताउम्र संघर्ष किया। उन्हें वर्ष 1998 में पद्म विभूषण Padma Vibhushan से नवाजा गया था। स्‍वतंत्रता सेनानी, डॉक्‍टर, सांसद, समाजसेवी के रूप में यह देश उनके किये कार्यों को और उन्‍हें सदैव याद रखेगा। दितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद ब्रिटिश सेनाओं ने आज़ाद हिंद फ़ौज Azad Hind Fauj के सैनिकों को भी पकड़ना शुरू किया। सिंगापुर में पकड़े गये आज़ाद हिन्द सैनिकों में लक्ष्मी सहगल भी थी। इसके बाद वह सक्रिय राजनीति में भी आयीं और सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में कैप्‍टन रहीं डॉक्टर लक्ष्मी सहगल का 23 जुलाई, 2012 की सुबह कानपुर के एक अस्‍पताल में निधन हो गया। 

अंत में इन साहसी महिलाओं के बारे ये कुछ पंक्तियाँ कि -

“बलिदान तुम्हारा ये देश क़भी न भूल पाएगा

याद करेग़ा तुमको और वंदे मातरम् गाएगा ।

देश मे तुम एक़ नई ऊर्जा क़ा बीज़ बो गये

फिर से वीर भारत माँ क़े शहीद हो गये।”