6 अगस्त - जापान के इतिहास का वो काला दिन
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जापान ने जिस तरह विषम परिस्थियों का सामना करते हुए खुद को एक प्रभावशाली देश साबित किया है। उस समय को सोच कर हम इसकी अपेक्षा भी नहीं कर सकते। कठिन परिस्थियों में भी हिम्मत न हारकर खुद को फिर से खड़ा करना बहुत ही मुश्किल होता है और इसके लिए जापान के लिए कहे जाने वाले शब्द शायद कम ही हों।
कहते हैं युद्ध कभी किसी का भला नहीं करती। जीत किसी भी पक्ष की हो, पर इंसानियत दोनों ही तरफ हारती है। कभी-कभी युद्ध के परिणाम इतने भयानक होते हैं कि उसकी कल्पना भी रूह को झकजोर देती है। कभी-कभी ऐसा होता है कि हम युद्ध नहीं चाहते परन्तु परिस्थियों की मार से हम खुद को बचा नहीं पाते और कूद जाते हैं एक अनचाही आग में जलने के लिए। युद्ध किसी भी कारणों से हों और इसे किसी भी पक्ष की तरफ से शुरू किया गया हो, परन्तु इसकी मांग कोई नहीं करता। इस संसार ने ना जाने कितने ऐसे युद्ध देखे हैं, जिन्होंने लोगों के वर्तमान को ही नहीं भविष्य को भी प्रभावित किया है। प्रभाव ऐसा जिसे लाख कोशिशों के बाद भी शायद ख़त्म नहीं किया जा सकता। ऐसे कई देश हैं, जिन्होंने युद्ध की आंच में अपने अस्तित्व को खो दिया। जिसके कारण ज़िन्दगियों को सामान्य रास्ते पर लाने में काफी समय लग गया और कुछ तो कभी सामान्य हो ही नहीं पाए। परन्तु इसी कड़ी में कुछ देश ऐसे भी हुए जिन्होंने युद्ध की मार को झेलते हुए अपने अस्तित्व को खोने के बाद फिर से अपना वजूद स्थापित किया। कठिन परिस्थितियों को झेलते हुए उन्होंने फिर अपनी पहचान बनाई, और पहचान ऐसी कि आज पूरी दुनिया उनकी क्षमता का लोहा मानती है।
युद्ध की आग में जला विश्व
1939, सदी का वो वर्ष जिसने लगभग सारे विकसित देशों को युद्ध की आग में झोंक दिया। जर्मनी और पोलैंड के विवाद के कारण शुरू हुआ युद्ध हीरोशिमा और नागासाकी के लोगों के लिए काल का वजह बन गया। एक तरफ जर्मनी, इटली,जापान जैसे देश, तो दूसरी तरफ फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन और यूनाइटेड स्टेट्स जैसे देश युद्ध के लिए तैयार थे, जिसका अंत विश्व की भयानक बर्बादी के साथ हुआ। जापान के दो शहरों का निर्दयी रूप से दुर्दशा करने के बाद इस युद्ध ने अंतिम सांस ली। हिरोशिमा और नागासाकी इस युद्ध के घातक परिणामों का असर आज भी झेल रहे हैं। 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के लिए जापान के आत्मसमर्पण के लिए अमेरिका की तरफ से एक खतरनाक कदम उठाया गया। जापान के दो स्थानों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए गए। 6 अगस्त 1945 का वो काला दिन जिस दिन हिरोशिमा भयानक दृश्य का प्रमाण बनी।
हिरोशिमा, नागासाकी पर परमाणु हमला
अमेरिका द्वारा हिरोशिमा पर लिटिल बॉय नाम के परमाणु बम गिराए जाने से हिरोशिमा की लगभग 80 परसेंट आबादी प्रभावित हुई। लगभग 80,000 जापानियों की जान चली गयी और 35,000 लोग घायल हुए। इसके साथ 65 प्रतिशत की मात्रा में इमारत ढ़ह कर जमीन पर समतल हो गए। यह पहली बार था जब किसी देश ने युद्ध में दूसरे देश के खिलाफ पर परमाणु बम का इस्तेमाल किया था। हिरोशिमा अभी इस मार को झेल ही रहा था कि अमेरिका ने फैट मैन नाम का दूसरा परमाणु बम 3 दिन बाद 9 अगस्त को जापान के दूसरे शहर नागासाकी पर छोड़ दिया। इस हमले के बाद पूरा जापान हिल गया। जापान क्या पूरे विश्व ने ऐसा भयावह मंजर आज से पहले कभी नहीं देखा था। वहां के शासक ने इसके बाद ही 15 अगस्त को विरोधी पक्ष के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दोनों शहरों के निर्दोष नागरिक इस आग में झुलस चुके थे। अब वहां पर बची थी, तो केवल झुलसे सपनों और आशाओं की राख। इस प्रकार लम्बे समय से चल रहा युद्ध समाप्त हुआ।
जापान ने फिर किया खुद को स्थापित
युद्ध तो समाप्त हो गया परन्तु जापान के लोगों की मुश्किलें वही रहीं। इस हादसे के दूरगामी परिणाम हुए। उस परमाणु बम का प्रभाव तो इतना घातक था कि आने वाली पीढ़ी भी भयंकर बीमारियों का शिकार होने लगी। आज भी कैंसर जैसी घातक बीमारियां उनकी परेशानी का सबब बनी हुई हैं। बावजूद इसके जापान ने खुद को एक मजबूत शक्ति के रूप में स्थापित किया है। जापान की कार्य क्षमता विश्वभर में मशहूर है। वहां की कार्य शैली बाकी देशों के लिए प्रेरणा का कारण बनती है। जापान आज विश्व में फिर से एक विकसित देश के रूप में खुद को स्थापित किया है।
आज उस हादसे को 76 वर्ष हो गए, जिसे पूरा विश्व हिरोशिमा डे के रूप में मनाता है। इन 76 वर्षों में जापान ने कई उतार-चढ़ाव देखे परन्तु वो कभी थका नहीं, कभी हार नहीं मानी। जापान अपने अथक प्रयासों से लगातार अनेक सफलता की कहानियां लिखता रहा। 6 अगस्त को मनाने का मुख्या कारण उस हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देना और शांति की राजनीति करने के लिए प्रेरित करना है।
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