आधुनिक समय से कहीं आगे था प्राचीन ज्ञान-विज्ञान 

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आधुनिक समय से कहीं आगे था प्राचीन ज्ञान-विज्ञान 
01 Apr 2022
7 min read

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भारतीय ज्ञान और विज्ञान सदैव से ही बुद्धिमता और संस्कृति के पैमाने पर आगे रहा है । आर्यभट्ट, वराहमिहिर, आदिगुरु शंकराचार्य का ज्ञान हो या गीता का सार या फिर महर्षि पतंजलि का योगशास्त्र, ऐसी कौन सी विद्या थी जिसमें यहाँ का ज्ञान आगे नहीं था। आज मैं आपसे उन सभी ज्ञान-विज्ञान के विषय में बात करूँगी जो मुझे लगता है कि हम सभी भूलते जा रहे हैं।

भारतीय ज्ञान और विज्ञान सदैव से ही बुद्धिमता और संस्कृति के पैमाने पर आगे रहा है । आर्यभट्ट, वराहमिहिर, आदिगुरु शंकराचार्य का ज्ञान हो या गीता का सार या फिर महर्षि पतंजलि का योगशास्त्र, ऐसी कौन सी विद्या थी जिसमें यहाँ का ज्ञान आगे नहीं था। आज मैं आपसे उन सभी ज्ञान-विज्ञान के विषय में बात करूँगी जो मुझे लगता है कि हम सभी भूलते जा रहे हैं।

गणित का ज्ञान-

आर्यभट्ट के ज्ञान को भला कौन भूल सकता है, आर्यभट्ट  का भारत और विश्व के ज्योतिष सिद्धान्त पर बहुत प्रभाव रहा है।आर्यभट भारतीय गणितज्ञों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन्होंने 120 आर्याछंदों में ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांत और उससे संबंधित गणित को सूत्ररूप में अपने आर्यभट्टीय ग्रंथ में लिखा है। खगोलविज्ञान में सबसे पहली बार उदाहरण के साथ यह घोषित किया गया कि स्वयं पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। 

आर्यभट ने ज्योतिषशास्त्र के आजकल के उन्नत साधनों के बिना जो खोज की थी, अपने तीव्र बुद्धि के द्वारा  प्राप्त यह ज्ञान उनकी महत्ता है। कॉपरनिकस copernicus (1473 से 1543 ई.) ने जो खोज की थी उस खोज को तो आर्यभट हजार वर्ष पहले ही  कर चुके थे। "गोलपाद" में आर्यभट ने लिखा है "नाव में बैठा हुआ मनुष्य जब प्रवाह के साथ आगे बढ़ता है, तब वह समझता है कि अचर वृक्ष, पाषाण, पर्वत आदि पदार्थ उल्टी गति से जा रहे हैं। उसी प्रकार गतिमान पृथ्वी पर से स्थिर नक्षत्र भी उलटी गति से जाते हुए दिखाई देते हैं।" इस प्रकार आर्यभट ने सर्वप्रथम यह सिद्ध किया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है। 

इन्होंने सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग को समान माना है। इनके अनुसार एक कल्प में 14 मन्वंतर और एक मन्वंतर में 72 महायुग (चतुर्युग) तथा एक चतुर्युग में सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलियुग को समान माना है।

आर्यभट्ट के शिष्य थे महान - वराहमिहिर, यह चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे। इनके अलावा भास्कराचार्य, बौधायन, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य प्रथम भी महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे । 

साहित्य-

विलियम शेक्सपियर william shakespeare का नाम तो सभी को याद होगा पर क्या आपको कालिदास, भरतमुनि, विष्णुगुप्त आदि का नाम याद है ? 

कालिदास के न जाने किनते काव्य-महाकाव्यों ने इतिहास रचा है, पीढ़ियों को पढ़ाया है । कालिदास की अभिज्ञान शाकुंतलम विश्व का पहला महाकाव्य है। कालिदास की लिखी- मेघदूतम, कुमारसंभावम,  विक्रमोर्वशीयम् इनसभी रचनाओं ने काल्पनिकता, वास्तविकता, लोककथाओं और संस्कृति को मिलाकर ऐसी रचनाएं तैयार की, कि आजतक इनकी कोई तुलना नहीं। 

विष्णुगुप्त ने पंचतंत्र की कथाओं द्वारा जन-जन को सही-गलत के ज्ञान और नैतिक शिक्षा से जोड़ा । 

भरतमुनि ने नाट्यशस्त्र द्वारा विश्व को नाटक drama की कला का वरदान दिया । 

योग-

आज जिस योग और ध्यान को पूरा विश्व इतना महत्व दे रहा है उसका ज्ञान  महर्षि पातंजली ने पूरे विश्व को कितने वर्षों पूर्व ही दे दिया था। योग और ध्यान की अवस्था  को तो भारतीय जीवनशैली और ऋषि मुनि पहले से ही अपनाते थे, महत्व तो हम अब दे रहे हैं। 

शिक्षा-

जब शिक्षा की बात आती है तो सबसे पहले शिक्षकों और शिक्षा के स्थान की बात आती है। स्मरण करिए कि हमारे पास अलग-अलग समयों पर शिक्षा के केंद्र उपलब्ध रहें है जैसे-  

तक्षशिला विश्वविद्यालय  Ancient taxila university

नालंदा विश्वविद्यालय  Ancient Nalanda University

विक्रमशिला विश्वविद्यालय  Ancient Vikramshila university

वल्लभी विश्वविद्यालय Ancient Vallabhi university

पुष्पगिरी विश्वविद्यालय Ancient Pushpagiri university

शिक्षकों में चाणक्य का नाम तो आप जानते ही होंगें, इसके अलावा आर्यभट्ट, वराहमिहिर और जो कोई भी अपने विषय के विद्वान होते थे वह इन विश्वविद्यालयों में अवश्य ही आमंत्रित होते थे। क्यूंकि यही वह शिक्षक थे जो समझते थे कि शिक्षा का अर्थ केवल साक्षर होना नहीं बल्कि समझना-जानना है । तभी तो चंद्रगुप्त को मौर्य साम्राज्य का सम्राट बनने की शिक्षा देने वाले गुरु चाणक्य को सदैव साथ बल (चंद्रगुप्त) और बुद्धि (चाणक्य)  का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण माना जाता है। 

आशा है कि मेरे इस लेख से आपको भारत के ज्ञान विज्ञान को जाने समझने की ओर  कुछ और रुचि हुई होगी । 

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