आर्थिक मंदी क्या है और इसके क्या कारण हैं ?

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आर्थिक मंदी क्या है और इसके क्या कारण हैं ?
10 Mar 2022
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किसी भी देश का विकास वहां की अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है और जब इस अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट होती है तो फिर आर्थिक मंदी शुरू हो जाती है। आर्थिक मंदी की स्थिति में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में निरन्तर गिरावट दर्ज की जाती है। इस ब्लॉग के माध्यम से आप आर्थिक मंदी और उसके कारणों के बारे में स्पष्ट रूप से जान पाएंगे। 

जब हम किसी देश को उसकी समस्त आर्थिक क्रियाओं के रूप में परिभाषित करते हैं तो उसे हम अर्थव्यवस्था Economy कहते हैं। आर्थिक का अर्थ धन, सम्पत्ति अथवा मुद्रा से होता है और इस धन और संपत्ति के द्वारा लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। अर्थव्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जो लोगों को जीविका प्रदान करती है। एक देश की अर्थव्यवस्था में कृषि, उद्योग, व्यापार, सेवा आदि क्षेत्र मिलकर राष्ट्रीय उत्पादन का निर्माण करते हैं। ताकि समाज के सभी लोग अपने जीवन में मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति भलीभांति कर सकें। साथ ही इस व्यवस्था या प्रक्रिया से जीविका प्राप्त कर सकें। मनुष्य अपने अनुरूप अपनी जीविका के संचालन की व्यवस्था कर सके। उत्पादन, उपभोग एवं निवेश production, consumption and investment अर्थव्यवस्था के आधारभूत स्तंभ हैं। जिनका संचालन मनुष्यों द्वारा किया जाता है। साधारण शब्दों में अर्थव्यवस्था, मनुष्यों द्वारा मनुष्यों की आर्थिक उन्नति के लिए की जाने वाली व्यवस्थित कार्यप्रणाली है। जिसमें समुचित आर्थिक विकास जुड़ा होता है लेकिन जब यही कार्यप्रणाली कुछ कारणों से अव्यवस्थित हो जाती है तो पूरी अर्थव्यवस्था हिल जाती है तो ऐसी परिस्थिति में आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ता है। अब यह आर्थिक मंदी क्या है और इसके क्या कारण हैं इस ब्लॉग के माध्यम से विस्तार से जानते हैं। 

आर्थिक मंदी क्या है?

किसी भी देश का विकास निर्भर करता है उस देश की अर्थव्यवस्था पर और जब इसी अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट होती है तो उसे हम आर्थिक मंदी कहते हैं। आर्थिक मंदी, को “फाइनेंसियल क्राइसिस (Financial Crisis) या इकोनोमिकल स्लोडाउन (Economic Slowdown) भी कहा जाता है।  यदि किसी अर्थव्यवस्था की growth rate विकास दर या GDP जीडीपी तिमाही-दर-तिमाही लगातार घट रही है, तो इस स्थिति को आर्थिक मंदी का बड़ा संकेत माना जाता है। किसी अर्थव्यवस्था Economy के मंदी की तरफ बढ़ने पर आर्थिक गतिविधियों में हर तरफ गिरावट आनी शुरू हो जाती है। हम कह सकते हैं कि आर्थिक मंदी के दौरान वस्तुओं की डिमांड कम हो जाती है, इसकी वजह से उत्पादित माल की बिक्री में काफी गिरावट आ जाती है। जब वस्तुओं की बिक्री नहीं होगी तो, इसका असर उत्पादित करने वाली कंपनियों पर साफ़ तौर पर पड़ता है। मंदी के कारण उत्पादित करने वाली कंपनियों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है। आर्थिक मंदी को हम साधारण सी भाषा में समझें तो यह कह सकते हैं कि लोगों के पास जब पैसे की कमी हो जाती है तब वे अपनी आवश्यकताओं को कम कर देते हैं। जब आवश्यकताएं कम हो जाती हैं तो उत्पादित माल की बिक्री नहीं हो पाती है और जब माल की बिक्री नहीं होगी तो कम्पनी को नुकसान हो जाता है। जब कंपनियों को नुकसान होता है तो वह अपने कर्मचारियों की संख्या भी कम कर देती है। जिससे कई लोग बेरोजगार Unemployed हो जाते हैं और उनके ऊपर आर्थिक संकट मंडराने लगता है और अपने परिवार का पालन पोषण करने में असमर्थ होने पर कई लोग अपनी जान तक दे देते हैं और इसके अलावा भी देश में कई तरह की अन्य समस्याएं भी उत्पन्न हो जाती हैं। ऐसे ही जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार वस्तुओं और सेवाओ के उत्पादन में गिरावट हो जाती है और सकल घरेलू उत्पाद Gross Domestic Product कम से कम तीन महीने डाउन ग्रोथ में पहुंच जाता है तो इस स्थिति को world economic recession विश्व आर्थिक मन्दी कहते हैं। 

आर्थिक मंदी के क्या कारण हैं ?

आर्थिक मंदी के कई कारण होते हैं, जैसे कि अभी पीछे संपूर्ण विश्व को भयानक रूप से आर्थिक मंदी झेलनी पड़ी थी और देखा जाये तो यह अब तक की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी है। इसके कारण अभी भी देश ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में आर्थिक मंदी का दौर चल रहा है और इसका कारण था ‘कोरोना वायरस’ corona virus जिसकी वजह से पूरी दुनिया जैसे थम सी गयी थी। न जाने कितने लोग बेरोजगार हो गए थे। आर्थिक मंदी के कारण आम जनता की भविष्य के प्रति उम्मीद खत्म हो जाती है। आर्थिक मंदी का मुख्य कारण धन का प्रवाह रुक जाना होता है। मतलब लोगों की खरीदने की क्षमता कम हो जाती है या घट जाती है जिसके कारण बचत भी कम हो जाती है। दूसरा कारण आयात के मुकाबले निर्यात में गिरावट आ जाती है। जिससे देश के राजकोषीय स्तर में बढ़ोत्तरी हो जाती है और इसी वजह से विदेशी मुद्रा भंडार में कमी हो जाती है। इसके अलावा मुख्य कारण देशों के बीच जंग का होना war between countries है जैसे कि आजकल रूस और यूक्रेन Russia and Ukraine के बीच युद्ध चल रहा है। जिसकी खामियाजा आर्थिक मंदी के रूप में झेलने को मिलेगा। साथ ही मंदी के समय लोगों की आय कम हो जाती है जिसके कारण निवेश कम हो जाता है। आर्थिक मंदी का एक कारण डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में गिरावट होना भी है साथ ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने के कारण महंगाई बढ़ जाती है। शेयर बाजार में गिरावट stock market crash भी आर्थिक मंदी का कारण है। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि खपत यानी कंजम्प्शन में गिरावट आना Decline in consumption, औद्योगिक उत्पादन में गिरावट decline in industrial production, बेरोजगारी में वृद्धि increase in unemployment, और बचत और निवेश में कमी decrease in savings and investment आर्थिक मंदी के संकेत हैं। 

आर्थिक मंदी के प्रभाव 

मंदी के दौर में निवेश कम हो जाता है क्योंकि लोगों की कमाई कम हो जाती है और इस स्थिति में उनकी कुछ भी खरीदने की क्षमता भी घट जाती है। वे साथ ही बचत भी नहीं कर पाते हैं। इस कारण से लोग बैंक या निवेश के अन्य साधनों में भी कम पैसा लगाते हैं। लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसा ही नहीं बच पाता है। मतलब बचत और निवेश में कमी होती है। आर्थिक मंदी का जो सबसे बड़ा दुष्प्रभाव है वह है आर्थिक मंदी से बेरोजगारी में वृद्धि होना। कोरोना वायरस से पूर्व विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी साल 1929 में आई मंदी को माना जाता था। 1930 के दशक की महामंदी को दुनिया की सबसे विध्वंसक आर्थिक त्रासदी माना जाता है। इस त्रासदी ने लाखों लोगों की जिंदगी बर्बाद कर दी और कई लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। उस दौरान 1 करोड़ 30 लाख लोग बेरोजगार हो गए थे। दरअसल इसकी शुरुआत 29 अक्टूबर 1929 को अमेरिका America में शेयर मार्केट के गिरने से हुई थी। इसका खामियाजा लगभग अगले एक दशक तक दुनिया के अधिकांश देशों को भुगतना पड़ा था। इसकी वजह से आर्थिक गतिविधियां ठप्प हो गयी थी। अंतरराष्ट्रीय व्यापार international trade भी खत्म हो गया था। उस वक्त 5 हजार से भी अधिक बैंक बंद हो गए। 1929 से 1932 के बीच औद्योगिक उत्पादन में 45 फीसदी की गिरावट आई। साथ ही 1929 से 1932 के दौरान आवास निर्माण की दर में 80 फीसदी तक की कमी हो गई। कृषि उत्पादन में भी 60 फीसदी तक की कमी हो गई। आर्थिक मंदी के प्रभाव से आर्थिक विकास दर लगातार गिरती रहती है। इसके साथ ही औद्योगिक उत्पादन में गिरावट हो जाती है।